भारत-चीन संबंधों में सुधार के संकेत: विदेश मंत्री जयशंकर की अहम टिप्पणी

द्विपक्षीय संबंधों में धीरे-धीरे सुधार के संकेत मिल रहे हैं। विदेश मंत्री एस. जयशंकर ने बुधवार को कहा कि भारत और चीन के बीच 2020 के सीमा विवाद के बाद अब संबंधों में कुछ सकारात्मक प्रगति हुई है। दोनों देश विभिन्न पहलुओं पर कार्य कर रहे हैं ताकि आपसी संवाद और सहयोग को फिर से स्थापित किया जा सके। उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि 2020 में हुई घटनाएं द्विपक्षीय मुद्दों के समाधान का सही तरीका नहीं थीं।
भारत-चीन संबंधों का ऐतिहासिक परिप्रेक्ष्य
जयशंकर ने एशिया सोसाइटी के क्यूंग-वा कांग के साथ बातचीत में भारत-चीन संबंधों के ऐतिहासिक पहलुओं पर प्रकाश डाला। उन्होंने कहा कि 1962 में दोनों देशों के बीच युद्ध हुआ था, जिसके बाद संबंधों को सामान्य बनाने में दशकों का समय लगा। भारत को अपना राजदूत चीन भेजने में 14 वर्ष लगे, जबकि भारतीय प्रधानमंत्री को वहां जाने में 12 वर्ष का समय लगा।
1988 में दोनों देशों के बीच एक समझ बनी, जिसके आधार पर संबंधों को फिर से स्थापित किया गया। हालांकि, सीमा मुद्दों का पूर्ण समाधान नहीं हो सका, लेकिन आपसी संबंधों को प्रबंधित करने के लिए एक संतुलन बनाया गया। 1988 से 2020 के बीच सीमावर्ती क्षेत्रों में घटनाएं हुईं, लेकिन कोई बड़ा संघर्ष या रक्तपात नहीं हुआ। 2020 की घटना से 45 वर्षों बाद पहली बार हिंसक झड़प हुई, जिससे दोनों देशों के संबंधों में काफी तनाव आ गया।
2020 सीमा विवाद और उसके प्रभाव
विदेश मंत्री ने बताया कि 2020 का भारत-चीन सीमा गतिरोध वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चीन की सैन्य गतिविधियों के कारण उत्पन्न हुआ था। इस घटना ने न केवल सीमा पर हिंसक संघर्ष को जन्म दिया, बल्कि दोनों देशों के बीच पहले से बने लिखित समझौतों की अवहेलना भी की।
जयशंकर ने यह भी कहा कि 2020 से लेकर अब तक भारत और चीन अपने संबंधों को फिर से स्थिर करने और पूर्व स्थिति में लाने का प्रयास कर रहे हैं। हालांकि, यह प्रक्रिया अभी पूरी तरह समाप्त नहीं हुई है और 2020 से 2025 की अवधि दोनों देशों के हित में नहीं रही है।
भारत-चीन कूटनीतिक संवाद और प्रगति
बुधवार को बीजिंग में भारत और चीन के विदेश मंत्रालयों के बीच एक आधिकारिक परामर्श बैठक हुई। इसमें दोनों पक्षों ने रणनीतिक मुद्दों पर चर्चा की और 2025 में कैलास मानसरोवर यात्रा को पुनः शुरू करने की दिशा में प्रगति की समीक्षा की। इस बैठक में भारतीय विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) गौरांगलाल दास और चीनी विदेश मंत्रालय के एशियाई मामलों के विभाग के महानिदेशक लियू जिनसोंग शामिल थे।
इसके अतिरिक्त, दोनों देशों के वरिष्ठ अधिकारी जनवरी 2025 में होने वाली बैठक में विशेष रणनीतिक निर्णयों को लागू करने और संबंधों को स्थिर बनाने के लिए उठाए गए कदमों की समीक्षा करेंगे।
संबंधों को सुधारने के लिए उठाए गए कदम
भारत और चीन ने पारस्परिक सहयोग को बढ़ावा देने के लिए कई महत्वपूर्ण निर्णय लिए हैं। इनमें प्रमुख रूप से निम्नलिखित शामिल हैं:
सीधी उड़ानों को फिर से शुरू करना: दोनों देशों के बीच व्यापार और सांस्कृतिक आदान-प्रदान को बढ़ावा देने के लिए हवाई यात्रा को पुनः संचालित किया जाएगा।
मीडिया और थिंक टैंकों के बीच संवाद: विचार-विमर्श को प्रोत्साहित करने के लिए मीडिया संगठनों और नीति-निर्माण संस्थानों के बीच बातचीत को बढ़ावा दिया जाएगा।
राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ का आयोजन: भारत और चीन के बीच औपचारिक राजनयिक संबंधों की 75वीं वर्षगांठ मनाने के लिए विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जाएगा।
कैलास मानसरोवर यात्रा की बहाली: 2025 में भारतीय तीर्थयात्रियों के लिए कैलास मानसरोवर यात्रा को फिर से शुरू करने के लिए विस्तृत योजना बनाई जा रही है।
आगे की राह
भारत और चीन के बीच संबंधों को स्थिर करने के लिए कूटनीतिक वार्ता की निरंतरता महत्वपूर्ण है। दोनों देशों ने चरणबद्ध तरीके से वार्ता तंत्र को बहाल करने पर सहमति जताई है, ताकि आपसी हितों और चिंताओं को प्राथमिकता दी जा सके।
यह स्पष्ट है कि भारत और चीन के बीच के रिश्ते जटिल हैं, लेकिन बातचीत और सहयोग के माध्यम से तनाव को कम करने के प्रयास किए जा रहे हैं। दोनों देशों के बीच जारी संवाद और आपसी समझौते भविष्य में संबंधों को और मजबूत बना सकते हैं।
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