मणिपुर: राहत शिविर में नौ वर्षीय बच्ची की संदिग्ध हत्या, दुष्कर्म की आशंका

मणिपुर के चुराचांदपुर जिले के एक राहत शिविर में शुक्रवार रात एक नौ वर्षीय बच्ची मृत पाई गई। इस हृदयविदारक घटना से इलाके में भय और आक्रोश फैल गया है। बच्ची शाम से लापता थी, जिसके बाद उसके परिजनों और स्थानीय लोगों ने उसकी तलाश शुरू की। देर रात जब उसका शव राहत शिविर परिसर में मिला, तो पूरे क्षेत्र में शोक की लहर दौड़ गई। अधिकारियों के मुताबिक, बच्ची के शव पर कई चोटों के निशान पाए गए हैं, जिससे दुष्कर्म की आशंका भी जताई जा रही है।
कैसे हुआ यह दर्दनाक हादसा?
मीडिया रिपोर्ट्स के अनुसार, बच्ची गुरुवार शाम करीब 6:30 बजे से लापता थी। परिजन और अन्य स्थानीय लोग रातभर उसे ढूंढते रहे, लेकिन उसका कोई सुराग नहीं मिला। अंततः रात करीब 12 बजे राहत शिविर परिसर में ही उसका शव बरामद हुआ। शव की हालत देखकर सभी स्तब्ध रह गए—गले पर गहरे निशान थे और शरीर पर चोटों के कई निशान दिखाई दे रहे थे।
बच्ची चुराचांदपुर के वे मार्क अकादमी स्कूल में पढ़ती थी। उसके माता-पिता का कहना है कि यह स्पष्ट रूप से एक हत्या का मामला है और इसे साजिशन अंजाम दिया गया है।
सामाजिक संगठनों ने उठाई न्याय की मांग
इस घटना ने पूरे समुदाय को झकझोर कर रख दिया है। स्थानीय सामाजिक संगठनों, जिनमें जोमी मदर्स एसोसिएशन और यंग वैफेई एसोसिएशन शामिल हैं, ने इस नृशंस हत्या की कड़ी निंदा की है। उन्होंने पुलिस प्रशासन से अपील की है कि जल्द से जल्द दोषियों को गिरफ्तार कर सख्त से सख्त सजा दी जाए।
प्रशासन की प्रतिक्रिया और पुलिस की जांच
घटना की जानकारी मिलते ही पुलिस ने तत्काल कार्रवाई शुरू कर दी और शव को पोस्टमॉर्टम के लिए भेज दिया गया। प्रारंभिक जांच में दुष्कर्म की आशंका जताई गई है, हालांकि अंतिम पुष्टि रिपोर्ट आने के बाद ही होगी। पुलिस ने अज्ञात अपराधियों के खिलाफ मामला दर्ज कर लिया है और पॉक्सो एक्ट के तहत जांच शुरू कर दी है।
पूर्व मुख्यमंत्री एन. बीरेन सिंह ने इस घटना की निंदा करते हुए शोक संतप्त परिवार के प्रति अपनी संवेदना व्यक्त की। उन्होंने कहा, “मैं इस अमानवीय और जघन्य अपराध की कड़ी निंदा करता हूं। दोषियों को किसी भी हाल में बख्शा नहीं जाएगा।”
राहत शिविरों में बच्चों की सुरक्षा पर उठे सवाल
इस दर्दनाक घटना ने राहत शिविरों में रह रहे बच्चों की सुरक्षा को लेकर गंभीर सवाल खड़े कर दिए हैं। राज्य में जातीय हिंसा और अन्य कारणों से हजारों लोग राहत शिविरों में रह रहे हैं, जहां बुनियादी सुविधाओं की कमी के साथ-साथ सुरक्षा की भी भारी चिंता बनी हुई है।
सवाल यह उठता है कि जब एक राहत शिविर में बच्चों की सुरक्षा सुनिश्चित नहीं हो सकती, तो ऐसे हालात में उनका भविष्य कितना सुरक्षित है? सरकार और प्रशासन को अब यह सुनिश्चित करने की जरूरत है कि इस तरह की घटनाएं दोबारा न हों और राहत शिविरों में रह रहे लोगों, विशेषकर बच्चों और महिलाओं की सुरक्षा के लिए ठोस कदम उठाए जाएं।
न्याय की उम्मीद में परिवार
बच्ची के माता-पिता और स्थानीय लोगों की अब केवल एक ही मांग है—इंसाफ। वे चाहते हैं कि दोषियों को जल्द से जल्द गिरफ्तार कर उन्हें कठोरतम सजा दी जाए ताकि भविष्य में कोई और मासूम इस तरह की बर्बरता का शिकार न हो।
यह घटना केवल एक बच्ची की हत्या भर नहीं है, बल्कि यह हमारे समाज की सुरक्षा व्यवस्था पर भी एक गंभीर सवालिया निशान खड़ा करती है। जब तक दोषियों को सख्त सजा नहीं दी जाती, तब तक ऐसे अपराधों पर अंकुश लगाना मुश्किल होगा।
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