रामवीर तंवर: ‘पॉन्ड मैन ऑफ इंडिया’ की प्रेरणादायक यात्रा

भारत में जल संरक्षण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य करने वाले रामवीर तंवर को ‘पॉन्ड मैन ऑफ इंडिया’ के नाम से जाना जाता है। उन्होंने अब तक सात राज्यों में 80 से अधिक तालाबों का पुनर्जीवन किया है। उनकी इस पहल को 500 से अधिक स्वयंसेवकों का समर्थन प्राप्त है और यहां तक कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी सराहना की है। लेकिन यह सफर इतना आसान नहीं था।
बचपन की यादें और प्रेरणा
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गांव में जन्मे रामवीर तंवर ने अपने बचपन में स्वच्छ और जीवंत तालाबों को देखा था। वे तालाब उनके खेल का मैदान हुआ करते थे, जहां वे दोस्तों के साथ तैरते, खेलते और पानी की निर्मलता का आनंद लेते थे।
लेकिन समय के साथ उन्होंने देखा कि वही तालाब कूड़े के ढेर में तब्दील हो गए। प्लास्टिक, गंदगी और कचरे ने इन जल स्रोतों को दूषित कर दिया। “जहां मैं और मेरे दोस्त कभी तैरते थे, आज वहां गंदगी और कचरे का अंबार है,” वे कहते हैं। यही वह क्षण था जब उन्होंने तय किया कि वे जल संरक्षण के लिए कुछ करेंगे।
संघर्ष और बदलाव की शुरुआत
जल संरक्षण की इस मुहिम को अपनाने के लिए रामवीर ने अपनी कॉर्पोरेट नौकरी छोड़ दी। हालांकि, उनके परिवार और समाज ने इस निर्णय को व्यावहारिक नहीं माना और उन पर सवाल उठाए। लेकिन उन्होंने हार नहीं मानी। उन्होंने जल संरक्षण और तालाबों के पुनर्जीवन को अपना मिशन बना लिया।
“अब नहीं तो कभी नहीं! जब तक लोगों की सोच नहीं बदलेगी, हम काम करना जारी रखेंगे,” वे दृढ़ता से कहते हैं।
80 तालाबों का पुनर्जीवन: चुनौतीपूर्ण सफर
अब तक रामवीर और उनकी टीम ने 80 से अधिक तालाबों को साफ कर दिया है। इन तालाबों से प्लास्टिक, मलबा, मृत जानवर, जहरीले सांप और बिच्छू निकाले गए। यह एक कठिन कार्य था, लेकिन उन्होंने कभी भी कठिनाइयों से घबराकर पीछे हटने का विचार नहीं किया। वे हर मौसम में – बारिश हो या आंधी – बिना रुके काम करते हैं।
उनका यह सफर आसान नहीं था। उन्हें वित्तीय कठिनाइयों का सामना करना पड़ा, अतिक्रमणकारियों से लड़ना पड़ा और कई बार सामाजिक उपेक्षा का भी शिकार होना पड़ा। लेकिन उनकी निष्ठा और मेहनत ने 500 से अधिक स्वयंसेवकों की एक टीम को प्रेरित किया, जो उनके साथ कंधे से कंधा मिलाकर काम कर रही है।
प्रधानमंत्री की सराहना और भविष्य की योजनाएँ
रामवीर तंवर के कार्यों की गूंज राष्ट्रीय स्तर तक पहुंची और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी उनकी पहल की सराहना की। लेकिन उनके लिए यह सफर यहीं खत्म नहीं हुआ। वे कहते हैं, “दुर्भाग्यवश, हमारे जल स्रोत अब लैंडफिल की तरह दिखने लगे हैं। जब तक लोगों की मानसिकता नहीं बदलेगी, मैं इन्हें साफ करता रहूंगा।”
रामवीर का सपना है कि भारत के सभी पारंपरिक जल स्रोतों को पुनर्जीवित किया जाए और जल संरक्षण को लेकर जन-जागरूकता बढ़े। उनकी यह प्रेरणादायक यात्रा हमें सिखाती है कि अगर नीयत सही हो और संकल्प मजबूत हो, तो कोई भी बदलाव संभव है।
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