जातिवाद: एक सामाजिक व्यवस्था, न कि धर्म की उपज

भारत में जातिवाद का सवाल अक्सर हिंदू धर्म से जोड़ा जाता है। यह सत्य है कि जातियां हमारे समाज में गहराई तक समाई हुई हैं, लेकिन यह कहना गलत होगा कि यह समस्या केवल हिंदू धर्म तक सीमित है। जातिवाद दरअसल एक सामाजिक संरचना है, जो ऐतिहासिक, भूगोलिक और सांस्कृतिक कारकों का परिणाम है। आज यह समस्या सभी धर्मों में मौजूद है।
जातियां: एक ऐतिहासिक और सांस्कृतिक परंपरा
जाति व्यवस्था का प्रारंभ भारतीय समाज में कार्य और पेशे के आधार पर हुआ। यह व्यवस्था पहले लचीली थी लेकिन समय के साथ कठोर हो गई।
संस्कृति के प्रभाव
भारत में 3000 से अधिक जातियां और 25,000 से अधिक उपजातियां हैं (स्रोत: मानव विज्ञान सर्वेक्षण)।
संवैधानिक मान्यता:
संविधान के अनुसार अनुसूचित जातियां (SC), अनुसूचित जनजातियां (ST), और अन्य पिछड़ा वर्ग (OBC) के तहत वर्गीकरण किया गया है, जो जाति आधारित संरचना को दर्शाता है।
अन्य धर्मों में जातिवाद
जातिवाद केवल हिंदू समाज तक सीमित नहीं है। भारतीय उपमहाद्वीप में रहने वाले विभिन्न धर्मों में भी जातिगत विभाजन देखने को मिलता है।
1. इस्लाम में जातियां और फिरके
इस्लाम समानता का संदेश देता है, लेकिन भारतीय मुसलमानों में भी जातिगत भेदभाव स्पष्ट है।
समाज का विभाजन
अशरफ: उच्च वर्ग, जिनका दावा है कि वे अरब, तुर्क या फारसी मूल के हैं।
अजलफ: पिछड़े वर्ग, जो स्थानीय जातियों से इस्लाम में परिवर्तित हुए।
अरजाल: सबसे निचले वर्ग, जिन्हें ‘दलित मुसलमान’ कहा जाता है।
फिरकों का विभाजन:
भारत में मुसलमान 72 फिरकों में बंटे हुए हैं। सुन्नी, शिया, बोहरा, और वहाबी जैसे फिरके अक्सर सामाजिक और धार्मिक विभाजन को बढ़ाते हैं।
तथ्य:
भारत में करीब 85% मुसलमान सुन्नी और 15% शिया हैं। (स्रोत: Pew Research Center)
2. ईसाई धर्म में जातिवाद
भारत में ईसाई धर्म भी जातिगत विभाजन से अछूता नहीं है।
दलित ईसाई
अनुसूचित जातियों से ईसाई बने लोगों को उच्च वर्ग के ईसाई (सिरो-मालाबार, रोमन कैथोलिक) अलग नजरिए से देखते हैं।
केरल और तमिलनाडु में भेदभाव:
उच्च वर्ग के ईसाई दलित ईसाइयों के साथ अलग बैठने या प्रार्थना करने से कतराते हैं।
आंकड़े:
भारत के 2.3 करोड़ ईसाइयों में लगभग 70% दलित ईसाई हैं।
3. सिख धर्म में जातियां
सिख धर्म समानता का संदेश देता है, लेकिन व्यवहार में सिख समाज भी जातियों में बंटा हुआ है।
जाट सिख
पंजाब के सिख समुदाय में सबसे प्रभावशाली वर्ग।
मजहबी सिख और रामगढ़िया:
इन्हें समाज में निम्न स्तर का माना जाता है।
आंकड़े:
पंजाब में 60% से अधिक दलित सिख हैं, जो जातिगत भेदभाव का सामना करते हैं।
4. बौद्ध धर्म में जातिवाद
बौद्ध धर्म समानता और भाईचारे की शिक्षा देता है, लेकिन भारतीय बौद्ध समाज भी जातीय विभाजन का शिकार है।
परिवर्तित दलित
बौद्ध धर्म में परिवर्तित दलित अक्सर अपनी पुरानी जातीय पहचान से पूरी तरह मुक्त नहीं हो पाते।
तथ्य:
2011 की जनगणना के अनुसार, भारत में 79% बौद्ध महार जाति से हैं, जो जातिगत भेदभाव का सामना करते रहे हैं।
जातिवाद का असली कारण: सामाजिक ढांचा
जातिवाद का मूल कारण हमारी सामाजिक संरचना और ऐतिहासिक विकास है।
इतिहास का प्रभाव
वर्ण व्यवस्था के गलत उपयोग ने समाज में असमानता पैदा की।
राजनीति का खेल:
जाति आधारित राजनीति ने इसे और बढ़ावा दिया।
राजनीति और जातिवाद का दुष्प्रभाव
समाजवादी पार्टी:
यादव और मुसलमानों पर आधारित वोट बैंक।
बहुजन समाज पार्टी:
दलित और मुसलमानों का समर्थन।
भारतीय जनता पार्टी:
हिंदू एकता का सहारा।
आंकड़े:
2019 के लोकसभा चुनाव में 70% दलित वोट विपक्षी दलों में बंटे, जबकि ओबीसी का 44% वोट भाजपा के पक्ष में गया।
जातिवाद का समाधान और समाज के लिए संदेश
जातियां किसी धर्म का हिस्सा नहीं हैं। यह हमारी सांस्कृतिक और सामाजिक संरचना का परिणाम है।
समाज में जागरूकता के उपाय
शिक्षा और समानता:
जातिवाद को मिटाने के लिए शिक्षा और जागरूकता सबसे बड़ा हथियार हैं।
राजनीतिक सुधार:
जाति आधारित राजनीति का विरोध करें।
सामाजिक पहल
सभी धर्मों और समुदायों को जातिवाद के खिलाफ एकजुट होना चाहिए।
जातिवाद धर्म से नहीं, बल्कि हमारी सामाजिक संरचना से जुड़ा है। इसे समाप्त करने के लिए हमें सभी धर्मों और समुदायों में समानता, शिक्षा और जागरूकता फैलानी होगी।
आइए, समाज को बांटने वाली इस जड़ को पहचानें और इसे समाप्त करने के लिए मिलकर काम करें। यह लड़ाई किसी धर्म के खिलाफ नहीं, बल्कि सामाजिक अन्याय के खिलाफ है।
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