अयोध्या। राममंदिर निर्माण के साथ 22 जनवरी को होने वाली प्राण प्रतिश्ठा की तैयारियां चरम पर हैं। अब रामलला की प्राण प्रतिष्ठा से पहले 450 किलोमीटर दूर मिथिला से उपहार अयोध्या लाया गया है। भगवान रामलला के लिए ससुराल से वस्त्र, फल, मेवा, चांदी के खड़ाऊ और आभूषण लाए गए हैं। जनकपुरवासी 5000 उपहार लेकर अयोध्या पहुंचे हैं। ये यात्रा जनकपुर से निकलकर अयोध्या कारसेवकपुरम पहुंची है। यात्रा में 500 लोग शामिल हैं।
इस यात्रा की शुरुआत जनकपुर धाम के मेयर मनोज कुमार शाह और जानकी मंदिर के महंत रामतपेश्वर दास की अगुआई में हुई। यात्रा के साथ जानकी मंदिर के उत्तराधिकारी राम रोशन दास अयोध्या पहुंचे हैं। यात्रा नेपाल के पश्चिम चंपारण, कुशीनगर, गोरखपुर होकर अयोध्या पहुंची है। यह उपहार जनकपुर के घर-घर से लोगों ने इकट्ठा किया है। कहा जा रहा है कि उपहार में फल और पकवान भी शामिल हैं। इनमें से करीब 2 हजार टोकरी अयोध्या के अन्य मंदिरों में विराजमान भगवान सीताराम को भोग के लिए अर्पित किए जाएंगे। इसके बाद यह यात्रा जनकपुर लौट जाएगी। यह उपहार जनकपुर की परिपाटी के तहत श्रीराम के लिए भेजा गया है। वहां परपंरा है कि बेटी का घर गृहस्थी बसाने के लिए मायके से नेग भेजा जाता है। इस प्राचीन परंपरा और भारत नेपाल के त्रेतायुगीन रिश्तों की डोर को और मजबूत करने के लिए यह उपहार अयोध्या भेजे गए हैं। बताते चले कि अयोध्या से अपना प्रगाढ़ रिश्ता मानते हुए हर साल सीताराम विवाह उत्सव पर सैकड़ों की संख्या में मिथिला की सखियां आकर मंगल गीत गाती हैं। लक्ष्मण किला मिथिला की सखियों का बड़ा केंद्र है। राम विवाह में यहां आकर मिथिला के लोक खुद को सौभाग्यशाली मानते हैं।
नेपाल की नदियों का जल भी पहुंचा
इससे पहले नेपाल की 16 नदियों का पवित्र जल रामलला के अभिषेक के लिए 31 दिसंबर को अयोध्या लाया गया है। मंदिर में रामलला की मूर्ति की प्राण प्रतिष्ठा 22 जनवरी को होनी है। कार्यक्रम में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी मुख्य यजमान होंगे। रामलला की प्राण प्रतिष्ठा में जिस जल से अभिषेक किया जाएगा, उसे जल नेपाल की पवित्र नदियों से लाया गया है। नेपाल के भक्तों ने जनकपुर से जल लाकर राम मंदिर ट्रस्ट के महासचिव चंपत राय को सौंप दिया है। इस जल को पवित्र यज्ञ शाला में रख दिया गया है। इससे पहले नेपाल के पोखरा से दो शालिग्राम शिलाएं 30 जनवरी 23 को अयोध्या लाई गई थीं। इन शिलाओं से रामलला की मूर्ति बनाने का दावा था। यह शिलाएं अभी रामसेवकपुरम में भक्तों के दर्शन के लिए रखी हुई हैं।