‘एक देश एक चुनाव’ क्या है? इन मौकों पर जब प्रधानमंत्री ने खुलकर की थी बात

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नई दिल्ली। मोदी सरकार ने ‘2024’ से पहले ‘एक राष्ट्र एक चुनाव’ के रास्ते पर गंभीरता से चलने का इरादा जता दिया है। ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’ की अवधारणा पर आगे बढ़ाने के मकसद से सरकार ने पूर्व राष्ट्रपति राम नाथ कोविन्द की अध्यक्षता में एक समिति गठित कर दी है। यहां हम आपको पीएम मोदी के वो तीन बयान सुनाना चाहते हैं जो उन्होंने वन नेशन वन, इलेक्शन को लेकर सार्वजनिक तौर पर दिया है।

26 जून 2019 को पीएम मोदी ने संसद में अपने भाषण में क्या कहा था। पीएम मोदी ने अपने संबोधन में वन नेशन वन इलेक्शन की चर्चा करते हुए कहा-1952 लेकर आज तक लगातार चुनाव में रिफॉर्म होते रहे और होते रहने चाहिए। मैं मानता हूं कि इसकी खुले मन से चर्चा भी होती रहनी चाहिए। लेकिन आउटराइट ये कह देना की एक देश एक चुनाव नहीं… अरे भाई चर्चा तो करो। आपके विचार होंगे.. मैंने कई बड़े-बडे नेताओं से मिला हूं वो कहते हैं कि इस बीमारी से मुक्ति मिले। एक बार चुनाव आए.. महीना दो महीने उत्सव चले फिर सबको काम में लग जाना चाहिए। ये बात सबने बताई है।

26 नवंबर 2020 को भी अपने संबोधन में पीएम मोदी ने ‘वन नेशन, वन इलेक्शन’को देश की जरूरत बताया। उन्होंने अपने संबोधन में कहा- .. सिर्फ चर्चा का विषय नहीं बल्कि भारत की जरूरत है। हर कुछ महीने में देश में कहीं न कहीं चुनाव हो रहे होते हैं.. इससे विकास के कार्यों पर जो असर पड़ता है उसे आप सब भलीभांति जानते हैं। ऐसे में ‘वन नेशन,वन इलेक्शन’ पर गहन अध्ययन और मंथन आवश्यक है।

15 अगस्त 2019 को लालकिले की प्राचीर से देश संबोधित करते हुए पीएम मोदी ने कहा-सरदार साहब के एक भारत के सपने को चरितार्थ करने में लगे हुए हैं तब हम ऐसी व्यवस्थाओं को जन्म दें जोड़ने के लिए सिमेंटिंग फोर्स के रूप में उभरकर आए । ये प्रक्रिया निरंतर चलती रहनी चाहिए। हमने वन नेशन वन टैक्स के सपने को साकार किया। और आज देश में व्पापक रूप से एक देश और एक साथ चुनाव की चर्चा चल रही है .. ये चर्चा होनी चाहिए.. लोकतांत्रिक तरीके से होनी चाहिए। और कभी न कभी एक भारत श्रेष्ठ भारत के सपनों को साकार करने के लिए और भी ऐसी चीजों को हमें जोड़ना होगा।

‘वन नेशन वन इलेक्शन’ क्या है?
भारत में फिलहाल राज्यों के विधानसभा और देश के लोकसभा चुनाव अलग-अलग समय पर होते हैं। वन नेशन वन इलेक्शन का मतलब है कि पूरे देश में एक साथ ही लोकसभा और विधानसभाओं के चुनाव हों। यानी मतदाता लोकसभा और राज्य के विधानसभाओं के सदस्यों को चुनने के लिए एक ही दिन, एक ही समय पर या चरणबद्ध तरीके से अपना वोट डालेंगे। आजादी के बाद 1952, 1957, 1962 और 1967 में लोकसभा और विधानसभा के चुनाव एक साथ ही होते थे, लेकिन 1968 और 1969 में कई विधानसभाएं समय से पहले ही भंग कर दी गईं। उसके बाद 1970 में लोकसभा भी भंग कर दी गई। इस वजह से एक देश-एक चुनाव की परंपरा टूट गई।

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