Chandrayaan 3: भारत के मून मिशन की एक और कामयाबी, अलग हुआ विक्रम लैंडर

नई दिल्ली। चंद्रयान-3 का मुख्य यान अभी तक चांद की कक्षा में चक्कर लगा रहा था। इस बीच गुरुवार को उसे एक और कामयाबी मिल गयी, जहां उसके प्रोपल्शन मॉड्यूल से विक्रम लैंडर अलग हो गया। इसके साथ ही चांद के दक्षिणी ध्रुव पर उसके उतरने की प्रक्रिया शुरू हो गई।

चंद्रयान 3 से विक्रम लैंडर गुरुवार दोपहर 1.15 बजे अलग हो गया है। अब आगे का सफर इस लैंडर को ही तय करना है। प्रोपल्शन मॉड्यूल और लैंडर मॉड्यूल 100 km x 100 km ऑर्बिट में अलग होकर घूमने जा रहे हैं। 23 अगस्त को चंद्रयान चांद के दक्षिणी ध्रुव पर लैंडिंग करने जा रहा है। चंद्रयान-3 को करीब पौने चार लाख किलोमीटर का सफर तय करना है। अब सिर्फ 100 किमी का सफर बाकी है। चंद्रयान-3 धीमे-धीमे अपनी स्पीड कम करेगा। इसके लिए चंद्रायन अपने इंजनों यानी थ्रस्टर्स का इस्तेमाल करके अपनी गति धीमी करनी है।

इसरो ने बताया कि 18 अगस्त शाम करीब 4 बजे डीऑर्बिटिंग के जरिए विक्रम लैंडर को 30 किलोमीटर वाले पेरील्यून और 100 किलोमीटर वाले एपोल्यून ऑर्बिट में डाला जाएगा। पेरील्यून यानी चांद की सतह से कम दूरी। एपोल्यून यानी चांद की सतह से ज्यादा दूरी. अब तक की यात्रा प्रोपल्शन मॉड्यूल ने पूरी कराई है।

20 अगस्त के बाद कठिन सफर होगा शुरू
चंद्रयान-3 के लिए अब सफर काफी कठिन होने वाला है। सबसे मुश्किल काम चंद्रयान की स्पीड को कम करना है। एक बार जब विक्रम लैंडर को 30 km x 100 km की ऑर्बिट मिल जाएगी उसके बाद सॉफ्ट लैंडिंग की प्रक्रिया शुरू की जाएगी। चंद्रयान-2 के दौरान उसकी गति को कम करने के दौरान ही वह हादसे का शिकार हुआ था।

इस तरह पहुंचा चांद के पास
14 जुलाई को श्रीहरिकोटा से रवाना होने के बाद चंद्रयान-3 ने तीन हफ्तों में कई चरणों को पार किया। पांच अगस्त को पहली बार चांद की कक्षा में दाखिल हुआ था। इसके बाद 6, 9 और 14 अगस्त को चंद्रयान-3 ने अलग-अलग चरण में प्रवेश किया। इसरो ने इन तीन हफ्तों में चंद्रयान-3 को पृथ्वी से बहुत दूर स्थित कक्षाओं में स्थापित किया।

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