लखनऊ। सुप्रीम कोर्ट ने यूपी सरकार से राज्य में 2017 से अब तक हुए 183 एनकाउंटर की जांच पर स्टेटस रिपोर्ट तलब की है। शीर्ष कोर्ट ने पूछा है कि इनमें से कितने मामले संदिग्ध पाए गए। उनमें किन लोगों की गिरफ्तारी हुई और इस समय मुकदमों की क्या स्थिति है? कोर्ट ने यूपी सरकार से चार हफ्ते में जवाब दाखिल करने के लिए कहा है।
न्यायमूर्ति एस आर भट्ट और न्यायमूर्ति अरविंद कुमार की पीठ ने शुक्रवार को उत्तर प्रदेश के महाधिवक्ता अजय कुमार मिश्रा से यह सुनिश्चित करने को कहा कि राज्य सरकार छह सप्ताह में एक हलफनामा दाखिल करे, जिसमें पिछले छह वर्षों में हुई सभी एनकाउंटर में हुई मौतों की जांच की स्थिति का विवरण दिया जाए। कोर्ट ने यह भी कहा कि उन मामलों का उल्लेख किया जाए, जिनमें आरोप पत्र दाखिल हो चुके हैं और मुकदमे की सुनवाई चल रही है। हालांकि, जनहित याचिका दायर करने वाले याचिकाकर्ता विशाल तिवारी ने एनकाउंटर में हुई मौतों की जांच के लिए स्वतंत्र न्यायिक आयोग के गठन की मांग की। सुप्रीम कोर्ट ने उनके स्तर पर होने वाली मांग को खारिज कर दिया। कोर्ट ने कहा कि राज्य सरकार ने पहले ही एक न्यायिक जांच आयोग का गठन कर दिया है। हम एनकाउंटर्स किलिंग की जांच के लिए दिशा-निर्देश तय करने से संबंधित मुद्दे से निपटेंगे।
शीर्ष अदालत ने यह भी सवाल उठाया कि अतीक की हत्या करने वालों को कैसे पता था कि उसे कहां ले जाया जा रहा है? हालांकि कोर्ट ने साफ किया है कि वह किसी एक मामले पर सुनवाई करने के बजाय भविष्य के लिए दिशानिर्देश बनाने पर विचार करेगा। यूपी सरकार की ओर से पेश वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी और एडवोकेट जनरल अजय कुमार मिश्रा ने पीठ को बताया कि 183 में से 144 एनकाउंटर में क्लोजर रिपोर्ट दाखिल हो चुकी है।
मुकुल रोहतगी ने रखा पक्ष
यूपी सरकार की ओर से पेश हुए वरिष्ठ वकील मुकुल रोहतगी ने कहा कि न्यायमूर्ति बीएस चौहान को पहले विकास दुबे मुठभेड़ की जांच के लिए सुप्रीम कोर्ट की ओर से नियुक्त किया गया था। वर्तमान याचिकाकर्ता ने उनकी नियुक्ति को चुनौती दी थी। कोर्ट ने उनकी चुनौती को नहीं माना। सीनियर वकील ने आगे कहा कि अतीक अहमद और परिवार की हत्याओं के संबंध में 2 न्यायिक आयोगों की जांच चल रही है। जस्टिस भट्ट ने इस पर कहा कि आयोग की जांच बंद नहीं की जा रही है, बल्कि पीठ को उचित दिशा-निर्देश की आवश्यकता का निर्धारण करना है। मुकुल रोहतगी ने पीयूसीएल (पीपुल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज) के मामले में जारी दिशा-निर्देशों के अस्तित्व की ओर इशारा किया। जस्टिस भट्ट ने इस मामले में आश्वासन दिया कि हम इन दिशा-निर्देशों को नहीं दोहराएंगे।
जस्टिस भट्ट का ध्यान इसके बाद मामले के व्यापक संदर्भ और एक निगरानी तंत्र की आवश्यकता पर गया। उन्होंने मुकुल रोहतगी से पूछा कि इतने सारे मामले सामने आए हैं, क्या समय-समय पर कोई निगरानी तंत्र बनाया गया है? अभियोजन कैसा चल रहा है? इसके जवाब में मुकुल रोहतगी ने सुप्रीम कोर्ट के समक्ष 28 अप्रैल, 2023 की एक स्टेटस रिपोर्ट का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि हलफनामे में जस्टिस चौहान की ओर से सुझाए गए सुधारों की एक श्रृंखला का विवरण दिया गया है। इसमें एक अलग जांच इकाई और कानून प्रवर्तन अधिकारियों की वकालत की गई है। यह यूपी में विशेष रूप से कानून और व्यवस्था बनाए रखने पर ध्यान केंद्रित करते हैं। कोर्ट ने सुनवाई के बाद विस्तृत हलफनामा दायर करने का निर्देश दिया।