‘तमिलनाडु की संस्कृति का हिस्सा’, जल्लीकट्टू को सुप्रीम कोर्ट ने दी मंजूरी

नई दिल्ली। तमिलनाडु में जल्लीकट्टू खेल की परंपरा पर रोक लगाने से सुप्रीम कोर्ट ने इनकार कर दिया है। शीर्ष अदालत की संवैधानिक बेंच ने कहा कि यह तमिलनाडु की संस्कृति और विरासत का हिस्सा है। इसमें कुछ भी गलत नहीं है। इसके साथ ही अदालत ने राज्य सरकार की ओर से इसे मंजूरी देने वाले कानून पर रोक लगाने से भी इनकार कर दिया।

सुप्रीम कोर्ट ने 2014 में पशु कल्याण विभाग और ए नागराज के केस में जल्लीकट्टू पर बैन लगाया था। इसके बाद तमिलनाडु सरकार ने कानून में संशोधन किया। सुप्रीम कोर्ट की बेंच ने गुरुवार को कहा- कानून में बदलाव 2014 में नागराज केस में दिए गए फैसले के खिलाफ नहीं हैं। उस केस में कानून के जो खराब पहलू थे, वह बदलावों के बाद हट गए। इन बदलावों के चलते वास्तव में पशुओं को होने वाला दर्द और यातना कम हुई है। इन बदलावों को राष्ट्रपति की मंजूरी भी मिली थी। इसमें भी गलती नहीं हो सकती है।

कोर्ट ने कहा कि हम इस बात से आश्वस्त हैं कि तमिलनाडु में जल्लीकट्टू पिछली एक सदी से होता आ रहा है। क्या तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत में इसे शामिल किए जाने पर और ज्यादा विस्तार से चर्चा की जरूरत है? हम यह नहीं कर सकते हैं। जब विधानसभा ने यह घोषित कर दिया कि जल्लीकट्टू तमिलनाडु की सांस्कृतिक विरासत है, तब हम इस पर कोई अलग नजरिया नहीं रख सकते हैं। इस पर फैसला करने के लिए विधानसभा ही सबसे अच्छी जगह है।

तमिलनाडु सरकार ने कहा था- जल्लीकट्टू में सांडों से कोई क्रूरता नहीं होती
पिछली सुनवाई में सरकार ने हलफनामे में कहा था कि जल्लीकट्टू केवल मनोरंजन का काम नहीं है, बल्कि महान ऐतिहासिक, सांस्कृतिक और धार्मिक महत्व वाला कार्यक्रम है। इस खेल में सांडों पर कोई क्रूरता नहीं होती है। राज्य सरकार ने कहा कि पेरू, कोलंबिया और स्पेन जैसे देश भी बुल फाइटिंग को अपनी सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा मानते हैं। इसके अलावा सरकार ने तर्क दिया कि जल्लीकट्टू में शामिल सांडों को साल भर किसान ट्रेनिंग देते हैं ताकि कोई खतरा न हो।

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