‘अगर व्यापार की सोचता तो एलन मस्क से ज्यादा अमीर होता’, रामदेव ने क्यों कही ये बात?

नई दिल्ली। योग गुरु स्वामी रामदेव ने कहा है कि अगर वो देश की जगह व्यापार की सोचते तो बिजनेसमैन एलन मस्क से ज्यादा अमीर होते। एक मीडिया कॉन्क्लेव में बोलते हुए उन्होंने कई बड़ी बातें कहीं।

इंडिया टुडे के न्यूज फ्लेटफार्म आजतक की की ओर आयोजित के मीडिय कॉन्क्लेव में बोलते हुए स्वामी ने कि अगर वो देश की जगह व्यापार की सोचते तो बिजनेसमैन एलॉन मस्क से ज्यादा अमीर होते। योग गुरू ने जोर देते हुए कहा कि उन्हें जो भी ज्ञान वेदों, पुराणों, रामायण, महाभारत, भगवद्गीता के अलावा पूर्वजों से मिला, उसी पर शोध किया। उन्होंने दावा किया अगर वे इस अनमोल इंटलेक्चुअल प्रॉपर्टी को पेटेंट करा लेते तो एलॉन मस्क से ज्यादा अमीर बन सकते थे। लेकिन उन्होंने ऐसा नहीं किया। रामदेव ने अपने एक बयान की याद दिलाते हुए कहा कि सन्यासी सबके के लिए जीता है। ऐसे में उनका समय दुनिया के टॉप उद्योगपतियों से भी महंगा है। इसका कारण उन्होंने बताया कि उद्योगपति अपने लिए जीता है, जबकि सन्यासी सबसे लिए जीता है। इसलिए सन्यासियों का समय अधिक कीमती है।

गंभीर बीमारी वाले मरीजों को ठीक किया
बाबा रामदेव ने इसके दावा किया कि हमने कई गंभीर बीमारियों से ग्रसित लोगों को आयुर्वेद के जरिए ठीक कर दिखाया। उन्होंने कहा कि मेडिकल माफिया एक तरफ, दूसरे पॉलिटिकल माफिया, रिलीजियस माफिया, इंटलैक्चुअल माफिया, मैंने कभी मीडिया माफिया नहीं कहा, लेकिन चारों ओर माफियागीरी चल रही है, हम सबके लिए लड़ते हैं। पूरा मेडिकल सिस्टम नहीं कर पाया, लेकिन हमने डंके की चोट पर करके दिखाया। शुगर के मरीज ठीक नहीं हो सकते हैं, हमने ऐसा करके दिखाया। 100-200 यूनिट इंसुलिन लेने वाले को छुड़वाया। हमने बीपी, थॉयराइड, लीवर, किडनी ट्रांसप्लांट से बचाया। हमने कैंसर को एक-दो महीने में ठीक करके दिखाया। पूरी दुनिया योग-आयुर्वेद और सनातन को फॉलो करेगी। जीवन जीने का कोई और दूसरा तरीका नहीं है।

साहित्य के साथ हुई छेड़छाड़
इससे पहले स्वामी रामदेव ने कहा कि साहित्य के साथ छेड़छाड़ हुई है। इतिहास की पुनर्लेखन की न सही, लेकिन पुनर्व्याख्या की जरूरत है। जिस तरह से भारत का गौरवशाली अतीत रहा है। इसमें हमने कुछ संघर्ष झेले हैं। उन्होंने कहा कि हम 200 साल से पढ़ते आ रहे हैं कि भारत 1000 साल तक गुलाम रहा, भारत गुलाम नहीं, संघर्षरत रहा। हमने कभी मुगलों या अंग्रेजों की पराधीनता स्वीकार नहीं की।

Exit mobile version