तलाकशुदा मुस्लिम महिला को पूर्व शौहर से आजीवन गुजारा भत्ता पाने का अधिकार

लखनऊ। तलाकशुदा मुस्लिम महिलाओं के गुजारा भत्‍ता पर एक महत्वपूर्ण फैसले में इलाहाबाद हाईकोर्ट ने कहा है कि ऐसी महिला पूर्व शौहर से इद्दत तक ही नहीं, बल्कि जीवनभर गुजारा भत्ता पाने की हकदार है। कोर्ट ने कहा कि गुजारा भत्ता इस तरह का हो कि वह तलाक से पहले जैसा जीवन बिता रही थी, उसी तरह जी सके।

यह फैसला न्यायमूर्ति एसपी केसरवानी तथा न्यायमूर्ति एमएएच इदरीसी की खंडपीठ ने जाहिद खातून की अपील को मंजूर करते हुए दिया है। कोर्ट ने कहा कि तलाकशुदा मुस्लिम महिला को मुस्लिम महिला संरक्षण कानून के तहत मजिस्ट्रेट को अर्जी देने का अधिकार है। वह मजिस्ट्रेट की अदालत में पूर्व शौहर से गुजारा भत्ता दिलाने की अर्जी दाखिल कर सकती है इसी के साथ कोर्ट ने परिवार न्यायालय गाजीपुर के प्रधान न्यायाधीश द्वारा केवल इद्दत अवधि तक ही गुजारा भत्ता के आदेश को अवैध करार देते हुए रद्द कर दिया।

क्या है मामला?
जाहिद खातून व नूरुल हक खान का निकाह 21 मई, 1989 को हुआ था। शादी के बाद शौहर को पोस्ट आफिस में नौकरी मिली। उसने 28 जून, 2000 को तलाक दे दिया और दो साल बाद दूसरी शादी कर ली। जाहिद ने अपर मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट कनिष्ठ श्रेणी गाजीपुर के समक्ष 10 सितंबर, 2002 को धारा 3 मुस्लिम महिला संरक्षण कानून के तहत अर्जी दी। इसे जिला जज ने परिवार अदालत में स्थानांतरित कर दिया। उसने धारा 125 सीआरपीसी की अर्जी भी दी। इस पर मजिस्ट्रेट ने 1500 रुपये प्रतिमाह तलाक से पूर्व अवधि तक का भुगतान का आदेश दिया।

इसके खिलाफ पुनरीक्षण अर्जी खारिज हो गई। इसके खिलाफ अपील नहीं की गई। हाई कोर्ट ने यह मुद्दा कोर्ट में न होने के कारण विचार नहीं किया। परिवार अदालत ने इद्दत अवधि तीन माह 13 दिन 1500 मासिक एवं 1001 रुपये इद्दत व सामान की कीमत 5000 रुपये देने का फैसला दिया। इसे अपील में चुनौती दी गई थी। कोर्ट में सवाल था कि क्या तलाकशुदा मुस्लिम महिला को इद्दत अवधि के बाद भी गुजारा भत्ता पाने का हक है। पवित्र कुरान शरीफ भी शौहर पर तलाक के बाद अपनी बीवी का ख्याल रखने का आदेश देता है। मुस्लिम महिला संरक्षण कानून कल्याणकारी, मानवाधिकार को संरक्षित करने वाला, लैंगिक सामाजिक न्याय दिलाने का कानून है। उसकी व्याख्या इसी तर्ज पर की जानी चाहिए।

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