नई दिल्ली। वन रैंक वन पेंशन मामले में केंद्र को सुप्रीम कोर्ट से बड़ी राहत मिली है। केंद्र की ओआरओपी योजना को सुप्रीम कोर्ट ने बरकरार रखने की मंजूरी दी है। सुप्रीम कोर्ट ने याचिकाकर्ता पूर्व सैनिकों के तर्कों को खारिज कर दिया कि सरकार ओआरओपी को लागू करने के अपने वादे से पीछे हट गए।
सुप्रीम कोर्ट ने सरकार के फैसले और वन रैंक, वन पेंशन (ओआरओपी) के पूर्ण कार्यान्वयन के लिए तैयार की गई योजना को बरकरार रखा और कहा कि उसे ओआरओपी सिद्धांत और 7 नवंबर, 2015 की अधिसूचना पर कोई संवैधानिक दोष नहीं लगता है। न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ की अध्यक्षता वाली पीठ ने फैसला सुनाया कि हमें अपनाए गए ऑरोप सिद्धांत में कोई संवैधानिक दोष नहीं है। सुप्रीम कोर्ट ने कहा, ”सरकार का ‘वन रैंक-वन पेंशन’ (ओआरओपी) का फैसला मनमाना नहीं है और किसी संवैधानिक अशक्तता से ग्रस्त नहीं है। कोर्ट ने कहा कि ‘वन रैंक-वन पेंशन’ सरकार का नीतिगत निर्णय है और नीतिगत मामलों के निर्णय में अदालत हस्तक्षेप नहीं करता।
दरअसल याचिकाकर्ता भारतीय भूतपूर्व सैनिक आंदोलन (आईईएसएम) ने 7 नवंबर 2015 के OROP नीति के फैसले को चुनौती दी थी। इसमें उन्होंने दलील दी थी कि यह फैसला मनमाना और दुर्भावनापूर्ण है क्योंकि यह वर्ग के भीतर वर्ग बनाता है और प्रभावी रूप से एक रैंक को अलग-अलग पेंशन देता है।
संस्था ने सुप्रीम कोर्ट में कहा था कि इस नीति से वन रैंक वन पेंशन का मूल उद्देश्य पूरा नहीं हो रहा है। इसकी हर साल समीक्षा होनी चाहिए, लेकिन इसमें पांच साल में समीक्षा का प्रावधान है। अलग-अलग समय पर रिटायर हुए लोगों को अब भी अलग पेंशन मिल रही है। बता दें केंद्र सरकार ने 7 नवंबर 2015 को ‘वन रैंक वन पेंशन’ (OROP) योजना की अधिसूचना जारी की थी। इसमें कहा गया था कि योजना 1 जुलाई, 2014 से प्रभावी मानी जाएगी।