वाशिंगटन। अमेरिका में एचआईवी (HIV) संक्रमित महिला ने वायरस को मात दी है। महिला का इलाज कर रहे डॉक्टरों ने बताया कि इस पूरे इलाज को स्टेमसेल ट्रांसप्लांट के जरिए पूरा किया गया है।
डॉक्टरों के मुताबिक, स्टेमसेल एक ऐसे शख्स ने दान किया जिसमें एचआईवी के खिलाफ प्रतिरोधक क्षमता थी। डॉक्टर की टीम ने बताया कि कैलिफोर्निया यूनिवर्सिटी के डॉ. इवोन ब्राइसन और बालटीमोर की जॉन हॉपकिंस यूनिवर्सिटी की डॉ. डेब्रा परसॉड के नेतृत्व में इस इलाज की पूरी प्रक्रिया को अंजाम दिया गया है। इलाज के दौरान डॉक्टरों ने पहली बार गर्भनाल के खून का इस्तेमाल महिला के ल्युकेमिया का इलाज करने के लिए किया। फिलहाल महिला 14 महीने से स्वस्थ है, और उसे किसी भी दवा की जरूरत नहीं पड़ी है।
जानकारी के मुताबिक, इससे पहले दो एचआईवी मरीजों ने वायरस को मात दी थी। वहीं, अब पहली बार एक महिला ने एचआईवी को मात दे दी है।
क्या है ये नई तकनीक
HIV से ग्रस्त महिला का इलाज एक नई तकनीक से किया गया। इसमें अम्बिलिकल कॉर्ड (Umbilical Cord ) यानी गर्भनाल के खून का इस्तेमाल किया गया। इस तकनीक में अम्बिलिकल कॉर्ड स्टेम सेल को डोनर से ज्यादा मिलाने की भी जरूरत नहीं पड़ती है जैसे कि बोन मैरो ट्रांसप्लांट में होता है।
वैसे भी एचआईवी मरीजों के लिए बोन मैरो ट्रांसप्लांट बहुत अच्छा विकल्प नहीं है। ये ट्रांसप्लांट काफी खतरनाक होता है इसलिए इससे उन्हीं लोगों का इलाज किया जाता है जो कैंसर से पीड़ित हों और कोई दूसरा रास्ता ना बचा हो।
ऐसे होता है उपचार
डॉक्टरों ने पहले एचआईवी पीड़ित मरीजों पर परीक्षण कर उनकी कीमोथेरेपी की। ताकि कैंसर कोशिकाओं को खत्म किया जा सके। उसके बाद विशेष जेनेटिक म्यूटेशन वाले व्यक्ति से स्टेमसेल लेकर उसे मरीज के शरीर में ट्रांसप्लांट करते हैं। इस पर अध्ययन कर रहे शोधकर्ताओं का मानना है कि ट्रांसप्लांट के बाद मरीजों में एचआईवी के प्रतिरोधक क्षमता विकसित हो जाती है।