वायु प्रदूषण के साथ ध्वनि प्रदूषण भी है चिंता का सबब

एआरटीओ प्रवर्तन प्रणव झा

गाजियाबाद। अगर आप ध्वनि प्रदूषण को नजरअंदाज कर रहे हैं तो सावधान हो जाइये इससे न केवल आप बहरे हो सकते हैं बल्कि याददाश्त एवं एकाग्रता में कमी, चिड़चिड़ापन, अवसाद जैसी बीमारियों के अलावा जानलेवा बीमारियों की चपेट में भी आ सकते हैं। ध्वनि प्रदूषण उतना ही खतरनाक है जितना वायु प्रदूषण। एआरटीओ प्रवर्तन प्रणव झा बताते हैं कि ध्वनि प्रदूषण के खिलाफ लगातार जागरूकता अभियान चलाए जा रहे हैं साथ ही प्रेशर हॉर्न, डुप्लीकेट साइलेंसर इस्तेमाल करने वाले वाहनों पर भी लगाम लगाई जा रही है।

एआरटीओ प्रवर्तन प्रणव झा ने बताया कि प्रेशर हॉर्न और मोडिफाइड साइलेंसर वाले वाहनों के कारण ध्वनि प्रदूषण बढ़ रहा है। कंपनी बुलेट में साइलेंसर लगाने के साथ उसकी आवाज उतनी रखती है जिससे ध्वनि प्रदूषण नहीं फैले लेकिन कुछ लोग कंपनी की ओर से लगे साइलेंसर को निकालकर तेज आवाज या ऐसे साइलेंसर लगाते हैं जिससे अचानक तेज आवाज निकलती है। अचानक आवाज सुनकर पास खड़े लोग डर जाते हैं। कई बार वाहन चालक चौराहों और व्यस्ततम इलाकों में बेवजह हॉर्न का इस्तेमाल करते हैं, ऑटो चालक अपने वाहन में तेज आवाज में गाने बजाते हैं।

उन्होंने बताया कि मोटर व्हीकल एक्ट के तहत वाहनों पर प्रेशर हार्न की पाबंदी है। ऐसा इसलिए है क्योंकि प्रेशर हार्न ध्वनि प्रदूषण बढ़ाने के साथ-साथ हृदय रोगियों और बीमार लोगों के लिए बड़ा घातक साबित होता है। साथ ही प्रेशर हार्न बजते अधिकतर बार सुनाई देते हैं। कई बार साथ से गुजरने वाले वाहन चालक प्रेशर हार्न की आवाज से अनियंत्रित हो जाते हैं और उनका वाहन पर कंट्रोल नहीं रहता है जिससे हादसा हो जाता है, जिसमें कई इंसानी जिंदगियां चले जाने की नौबत आ जाती है।

मोडिफाइड साइलेंसर, प्रेशर हॉर्न और हूटर, डेक आदि इस्तेमाल करने वालों को प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, ट्रेफिक पुलिस के साथ मिलकर समझाया जाता है, इसके बावजूद भी लोग नहीं मानते हैं तो चालान किया जाता है।

इन्सान की सुरक्षा ज्यादा जरुरी
प्रणव झा ने बताया कि तेज गति से वाहन चलाना, हेलमेट और सीट बेल्ट का इस्तेमाल न करना, ड्राइविग करते समय मोबाइल फोन का इस्तेमाल करना, नशे में ड्राईविंग करना खुद को नुकसान पहुँचाना है। उन्होंने बताया कि सड़क हादसों से बचने के लिए स्कूलों में रोड सेफ्टी की पाठशाला चलाई जाती है। इस दौरान अलग-अलग स्कूलों में बच्चों की क्लास लेकर उन्हें ट्रैफिक नियमों के बारे में जागरूक किया जाता है। साथ ही बच्चों के साथ मिलकर जागरूकता रैली निकाली जाती है। सड़क पर वाहन चलाते वक्त इन्सान की सुरक्षा ज्यादा जरूरी है।

उन्होंने बताया गया कि एक ही स्पॉट पर अधिक हादसे हों तो उन स्थानों को ब्लैक स्पाट के रूप में चिन्हित किया जाता है। ब्लैक स्पॉट से गुजरने वाले राहगीरों व यात्रियों को जागरूक करने के लिए सड़क किनारे बोर्ड लगाया जाता है। इसके अलावा पीडब्ल्यूडी विभाग समेत अन्य विभागों के साथ मिलकर ब्लैक स्पाट की तकनीकी खामी को दूर किया जाता है।

एआरटीओ प्रवर्तन प्रणव झा ने बताया कि दुर्घटनाओं में काफी जान चालक की लापरवाही से जा रही हैं। वाहन चलाते समय नियमों का पालन करें तो हादसों को कम किया जा सकता है। ठंड के दिनों में कोहरे के वक्त काफी हादसे होते हैं, ट्रैक्टर-ट्रालियों से काफी हादसे होते हैं इसलिए ट्राली पर रिफ्लेक्टर, रेडियम की पट्टी और कपड़े का इस्तेमाल करना चाहिए।

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