नोएडा प्राधिकरण के 3 अफसर सस्पेंड, सुप्रीम कोर्ट से भी सुपरटेक ट्विन टावर को राहत नहीं

लखनऊ। उत्तर प्रदेश सरकार ने नोएडा में सुपरटेक के 40 मंजिला दो ट्विन टावरों के अवैध निर्माण में कथित तौर पर भूमिका को लेकर नोएडा विकास प्राधिकरण के तीन अधिकारियों को रविवार को सस्पेंड कर दिया। वहीं सुप्रीम कोर्ट ने सुपरटेक एमराल्ड कोर्ट (Supertech Emerald Court) के दो 40 मंजिला टावरों को गिराने के अपने आदेश में संशोधन की मांग से जुड़ी कंपनी की याचिका सोमवार को खारिज कर दी। कोर्ट ने गंभीर अनियमितताओं के कारण इन टावरों को गिराने का आदेश दिया था। सुपरटेक ने इस याचिका में कहा था कि वह भवन निर्माण मानकों के अनुरूप एक टावर के 224 फ्लैटों को आंशिक रूप से ध्वस्त कर देगी। उसने इसके साथ ही टावर के ग्राउंड फ्लोर पर स्थित सामुदायिक क्षेत्र को गिराने की भी बात कही थी।

एक सरकारी बयान के मुताबिक, इस मामले की जांच कर रहे एक विशेष जांच दल (एसआईटी) ने नोएडा के 26 अधिकारियों को दोषी पाया है, जिनमें से 20 रिटायर हो चुके हैं, दो की मौत हो चुकी है जबकि चार अभी भी सेवारत हैं।

आधिकारिक बयान में कहा गया कि दोषी पाए गए चार सेवारत अधिकारियों में से एक को पहले ही सस्पेंड कर दिया गया था। अब तीन अन्य सेवारत अधिकारियों को सस्पेंड कर दिया गया है और उनके खिलाफ विभागीय जांच शुरू की जा रही है। रिटायर हो चुके अधिकारियों के खिलाफ भी प्रक्रिया के अनुसार कार्रवाई के आदेश जारी किए गए हैं। एसआईटी की रिपोर्ट के आधार पर राज्य सरकार ने रविवार को कहा कि उसने निर्देश दिया है कि मामले में शामिल नोएडा के अधिकारियों, चार निदेशकों और सुपरटेक लिमिटेड के दो वास्तुकारों के खिलाफ राज्य सतर्कता आयोग में प्राथमिकी दर्ज की जाए।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि इस तरह की राहत देना इस न्यायालय के फैसले और विभिन्न फैसलों पर पुनर्विचार करने के समान है। कोर्ट ने इस बात पर जोर दिया कि पुनर्विचार के लिए विविध आवेदनों या स्पष्टीकरण के नाम पर ऐसे आवेदन करने की मंजूरी नहीं दी जा सकती।

जस्टिस डी वाई चंद्रचूड़ और जस्टिस बी.वी. नागरत्ना की बेंच ने कहा कि सुपरटेक लिमिटेड के इस आवेदन में कोई दम नहीं है और इसलिए इसे खारिज किया जाता है। बेचं ने कहा कि विविध आवेदनों के साथ कोशिश साफ तौर पर न्यायालय के फैसले में विस्तृत संशोधन की मांग करना है। विविध आवेदनों में इस तरह की कोशिश को मंजूरी नहीं दी सकती।

सुपरटेक ने अपनी याचिका में कहा था कि टावर-17 (सेयेन) के दूसरे रिहायशी टावरों के पास होने की वजह से वह विस्फोटकों के माध्यम से इमारत को ध्वस्त नहीं कर सकती है और उसे धीरे-धीरे तोड़ना होगा। कंपनी ने कहा था कि प्रस्तावित संशोधनों का अंतर्निहित आधार यह है कि अगर इसकी मंजूरी मिलती है, तो करोड़ों रुपये के संसाधन बर्बाद होने से बच जाएंगे, क्योंकि वह टावर टी-16 (एपेक्स) और टावर टी-17 (सेयेन) के निर्माण में पहले ही करोड़ों रुपये की सामग्री का इस्तेमाल कर चुकी है। कंपनी ने साथ ही कहा था कि वह 31 अगस्त के आदेश पर पुनर्विचार का अनुरोध नहीं कर रही है।

गौरतलब है कि कोर्ट ने 31 अगस्त के अपने फैसले में रियल एस्टेट कंपनी सुपरटेक को एक बड़ा झटका देते हुए कंपनी द्वारा नोएडा में उसके एक हाउसिंग प्रोजेक्ट में बनाए गए दो 40-मंजिल टावरों को ध्वस्त करने का आदेश दिया था। सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि इन टावरों का निर्माण नोएडा प्राधिकरण और सुपरटेक के अधिकारियों के बीच मिलीभगत का परिणाम था।

सुपरटेक ने 31 अगस्त को सुप्रीम कोर्ट द्वारा दिए गए फैसले में संशोधन की अपील की थी जिसमें जस्टिस डी.वाई. चंद्रचूड़ और जस्टिस एम.आर. शाह की बेंच ने कहा था कि इलाहाबाद हाईकोर्ट के 11 अप्रैल 2014 के फैसले में किसी हस्तक्षेप की जरूरत नहीं है। हाईकोर्ट ने भी अपने फैसले में इन दो टावरों को गिराने के निर्देश दिए थे।

सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि सुपरटेक के 915 फ्लैट और दुकानों वाले 40 मंजिला दो ट्विन टावरों का निर्माण नोएडा प्राधिकरण के साथ साठगांठ कर किया गया है और हाईकोर्ट का यह विचार सही था। बेंच ने कहा था कि दो टावरों को नोएडा प्राधिकरण और विशेषज्ञ एजेंसी की निगरानी में तीन माह के भीतर गिराया जाए और इसका पूरा खर्च सुपरटेक लिमिटेड को उठाना होगा। सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में यह भी कहा था कि घर खरीदारों का पूरा पैसा बुकिंग के समय से लेकर 12 प्रतिशत ब्याज के साथ लौटाया जाए। साथ ही रेजिडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन को दो टावरों के निर्माण से हुई परेशानी के लिए दो करोड़ रुपये का भुगतान किया जाए।

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