पढ़िये दैनिक जागरण की ये खास खबर….
यह सही समय है कि सीबीआइ अपने घर को ठीक करे और उन तत्वों से छुटकारा पाए जो भ्रष्टाचार से लड़ने के बजाय उसे संरक्षण देने का काम कर रहे हैं। सीबीआइ के अफसर ही भ्रष्टाचारियों से मिल जाएंगे तो जांच एजेंसी की साख का क्या होगा?
केंद्रीय जांच ब्यूरो(सीबीआइ) को जिन परिस्थितियों में सब इंस्पेक्टर रैंक के अपने अफसर अभिषेक तिवारी को गिरफ्तार करना पड़ा उससे कुल मिलाकर इस जांच एजेंसी की ही किरकिरी हुई। अभिषेक तिवारी को महाराष्ट्र के पूर्व गृह मंत्री अनिल देशमुख से मिलीभगत के आरोप में गिरफ्तार किया गया। अभिषेक पर आरोप है कि उसने देशमुख के करीबी लोगों से रिश्वत ली। वह देशमुख के वकील के संपर्क में था। माना जाता है कि उसने वकील के जरिये ही रिश्वत ली और उसके एवज में एक ऐसी रिपोर्ट तैयार की, जिसमें कथित तौर पर यह लिखा गया कि देशमुख के खिलाफ कोई संज्ञेय अपराध नहीं बनता था।
इतना ही नहीं, उनके खिलाफ जारी जांच को बंद करने की भी सिफारिश की गई। यह अंधेरगर्दी एक नए किस्म के भ्रष्टाचार को बयान कर रही है। यदि सीबीआइ के अफसर ही भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों से घिरे नेताओं से मिल जाएंगे तो फिर इस जांच एजेंसी की साख का क्या होगा? इससे संतुष्ट नहीं हुआ जा सकता कि सीबीआइ ने अपने भ्रष्ट अफसर को गिरफ्तार कर लिया, क्योंकि अब इसकी आशंका बढ़ गई है कि जांच एजेंसी के अंदर ऐसे अन्य तत्व होंगे जो भ्रष्टाचार के मामलों की छानबीन में इसी तरह लीपापोती करते होंगे।
यह सही समय है कि सीबीआइ अपने घर को ठीक करे और उन तत्वों से छुटकारा पाए जो भ्रष्टाचार से लड़ने के बजाय उसे संरक्षण देने का काम कर रहे हैं। सीबीआइ अफसर के अनिल देशमुख से मिल जाने के मामले से यह भी पता चलता है कि भ्रष्टाचार के गंभीर आरोपों का सामना कर रहे समर्थ लोगों को न्याय के कठघरे में खड़ा करना कितना कठिन काम है।
चूंकि इस मामले में देशमुख के वकील की भी गिरफ्तारी हुई है इसलिए यह भी प्रकट हो रहा है कि भ्रष्ट तत्वों की जड़ें किस बड़े पैमाने पर चारों ओर फैली हुई हैं। यह वह स्थिति है जिसमें भ्रष्ट तत्वों को उनके किए की सजा दिलाना कहीं अधिक कठिन है। इससे अधिक चिंताजनक बात कोई और नहीं कि जिन पर भ्रष्ट तत्वों से निपटने का दायित्व है वे ऐसे तत्वों से मिल जाएं। यदि ऐसा होगा तो फिर भ्रष्टाचार और अधिक बेलगाम ही होगा।
यह मामला यह भी रेखांकित कर रहा है कि भ्रष्ट तत्वों के खिलाफ कठोर कार्रवाई होना अभी भी कठिन है। इस कठिन काम को आसान बनाने की जरूरत तो है ही, भ्रष्ट नेताओं और नौकरशाहों की साठगांठ को तोड़ने की भी आवश्यकता है। यह खेद की बात है कि केंद्रीय सत्ता की ओर से भ्रष्ट तत्वों की लगाम कसे जाने के तमाम दावों के बावजूद यह साठगांठ टूटती नहीं नजर आती। साभार-दैनिक जागरण
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