लावारिस लाशों को उनके अपनों से कंधा दिलवा रहे:प्रयागराज के आरिफ ने 7 साल में 495 लाशों को उनके परिवार वालों को सौंपा, कोरोना में भी पोस्टमार्टम हाउस में ही डटे रहे

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आरिफ लावारिश लाशों को कंधा भी देते हैं और अंतिम संस्कार भी करवाते हैं। (इनसेट में मो. आरिफ)

कहते हैं कि दिल में कुछ अलग करने का जज्बा हो तो बड़ी से बड़ी मुश्किलें भी छोटी हो जाती हैं। कुछ ऐसी ही जिद के साथ पिछले सात साल से संगम नगरी प्रयागराज के मो. आरिफ लावारिस लाशों का सहारा बने हैं। गैरों के लिए दिन-रात एक करने वाले मो. आरिफ बीते 7 साल में 495 लावारिस लाशों की शिनाख्त करवाकर उनके अपनों का कंधा नसीब कराया है। यहां तक कि कोरोना काल में भी यह समाजसेवी अपने मकसद में जुटा रहा।

365 दिन दोपहर दो बजे से शाम पांच बजे तक पोस्टमार्टम हाउस में गुजरता था। सोशल मीडिया का सहारा लेकर प्रयागराज ही नहीं आसपास के जिलों के अलावा मध्य प्रदेश, तमिलनाडु, पश्चिम बंगाल के साथ-साथ ओडिशा तक लावारिस लाशों को उनके अपनों को सौंप चुके हैं।

पिता के छोटे से कारोबार को संभालने वाले आरिफ मुफ्त करते हैं मदद
शहर के शाहगंज थाना क्षेत्र के नखास कोहना निवासी मोहम्मद आरिफ तीन भाइयों एवं तीन बहनो में सबसे बड़े हैं। उनके पिता का जानसेनगंज में बैग का एक छोटा सा कारोबार है। पांच साल पहले पिता की मौत के बाद आरिफ और उनके छोटे भाई ने पिता के कारोबार को संभाल लिया। छोटे से कारोबार के सहारे परिवार का भरण पोषण करने वाले आरिफ की जिंदगी का शुरू से ही कुछ और ही मकसद था।

रोज पोस्टमार्टम हाउस जाते है आरिफ, सोशल मीडिया का भी लेते हैं सहारा
प्रयागराज में मिलने वाली लावारिस लाशों की पहचान कराने और गुमशुदा, अज्ञातों को अपनों से मिलने की कराने की मुहीम मो.आरिफ ने शुरू की। अब कई जिलों की पुलिस भी मो. आरिफ की मदद लेती है। स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल में स्थित पोस्टमार्टम हाउस में साल के 365 दिन मो. आरिफ का दोपहर दो से शाम पांच बजे तक वक्त गुजरता है। वो यहां लावारिस शवों की पहचान कराने में जुटे रहते हैं। इसके बदले में मो. आरिफ किसी से कभी कोई मदद नहीं लेते। उन्होंने वाट्सएप पर अज्ञात, गुमशुदा तलाश ग्रुप बना रखा है। जिसमें 265 सदस्य हैं, जो कि मीडिया और पुलिस महकमे से जुड़े लोग हैं।

अब तक 495 गुमनाम मौतों को कराया सम्मानजनक संस्कार
मो. आरिफ ने अपनी कोशिशों से साल 2014-2015 से साल 2021 तक लगभग 495 लावारिस लाशों की शिनाख्त की। मो. आरिफ के मुताबिक, साल 2015 में जिले में कुल 350 लावारिस शव पाए गए। जिसमें से अथक प्रयास के बाद 96 लावारिस शवों की पहचान हो गई। साल 2016 में कुल 375 शव लावारिस शव पाए गए। जिनमें 103 लोगों की शिनाख्त कराने में कामयाबी मिली। साल 2017 में 365 शव मिले, जिनमें 78 की पहचान हुई। साल 2018 में कुल 370 लावारिस शव पाए गए, जिनमें 73 की पहचान हुई।

साल 2019 में कुल 357 लावारिस शव मिले। जिनमें 65 की पहचान हो पाई। साल 2020 में कुल 245 लावारिस शव पाए गए। जिसमें से 55 लावारिस शवों को अपनों का कंधा मो. आरिफ ने नसीब कराया। साल 2021 में 30 जून तक 165 लाशें मिल चुकी हैं। जिनमें आरिफ ने 28 की पहचान कराकर उनके घरवालों को सौंप दी।

495 गुमनाम मौतों को दिलाया उनका नाम, कराया सम्मान जनक अंतिम संस्कार

पश्चिम बंगाल की मेंटल डिस्टर्व महिला की मदद की, ऐसे बना लिया जीवन का मकसद
ऐसा नहीं है कि मोहम्मद आरिफ सिर्फ मुर्दों को अपनों से मिलाते हैं। इसके साथ ही वह अपनों से बिछड़े, मानसिक डिस्टर्ब, बीमार की भी शारीरिक, आर्थिक और सामाजिक रूप से मदद करते हैं। अपने इस अजीबो-गरीब पेशे के बारे में आरिफ बताते हैं कि तकरीबन 10 साल पहले वह स्वरूपरानी नेहरू अस्पताल गए थे। वहां पश्चिम बंगाल की एक महिला बैठी थी, जो बांग्ला बोल रही थी। जिसकी वजह से उसकी भाषा कोई समझ नहीं पा रहा था। वह भूखी थी और रो रही थी। उसकी दिमागी हालत भी ठीक नहीं थी। बताते हैं कि जैसे ही मो. आरिफ की नजर उस पर पड़ी तो मदद की। उसके घरवालों को बुलाकर उनके सुपुर्द किया। इस दौरान मो. आरिफ ने इसे अपनी जिंदगी का मकसद बनाने की ठान ली।

लॉकडाउन में भी नहीं डगमगाए कदम, 7 लावरिस शवों की कराई पहचान
लॉकडाउन के दौरान 30 मार्च को लावारिस मिली 75 साल की महिला की पहचान जौनपुर के निवासी जोखन राम बिंद के रूप में हुई। वहीं, स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में लावारिस हालत में मृत मो.जोखू निवासी परोमा चैबेपुर थाना बीकापुर, फैजाबाद के रूप में पहचान कराई। पुरामुफ्ती थाना क्षेत्र के गौशपुर निवासी रामनेवाज, बिहार के गोपालगंज जनपद में बरौली थाना क्षेत्र के विशुनपुर गांव निवासी बलीन्द्र महतो, प्रयागराज मुट्ठीगंज के बहादुरगंज के रमजान और नैनी कोतवाली के महेवापट्टी निवासी मोहम्मद फुरखान को भी अपनों तक पहुंचाया।

आरिफ ने कलकत्ता के इकबाल रोड निवासी मो. सिराज को लावारिस हालत में उपचार के लिए स्वरूपरानी नेहरू चिकित्सालय में भर्ती कराया। होश आने पर जब उसने अपना नाम पता बताया तो कलकत्ता पुलिस से संपर्क करके उसके परिजनों तक खबर भेजा। खबर मिलते ही उसके परिवार के लोग यहां पहुंचे और यहां से उसे ले गए। बदले में मो. आरिफ ने दुआ के सिवा कुछ न लिया। साभार-दैनिक भास्कर

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