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भारत में देसी फार्मास्युटिकल कंपनी ज़ायडस कैडिला की वैक्सीन ज़ायकोव-डी जल्द ही बच्चों के वैक्सीनेशन के लिए उपलब्ध हो सकती है.
इस वैक्सीन को अगले कुछ हफ़्तों में ड्रग्स कंट्रोलर जनरल ऑफ इंडिया की ओर से मंज़ूरी मिल सकती है जिसके साथ ही ज़ायकोव-डी दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन बन जाएगी.
भारत सरकार ने बीते शनिवार सुप्रीम कोर्ट को वैक्सीन उपलब्धता से जुड़े आँकड़े देते हुए बताया है कि ज़ायकोव-डी वैक्सीन जुलाई–अगस्त तक 12 वर्ष से ज़्यादा उम्र के बच्चों के लिए उपलब्ध हो जाएगी.
सरकार ने अपने हलफ़नामे में कहा है कि अगस्त 2021 से दिसंबर 2021 के बीच भारत सरकार के पास कुल 131 करोड़ वैक्सीन डोज़ उपलब्ध होने की संभावना है.
इनमें कोविशील्ड के 50 करोड़, कोवैक्सिन के 40 करोड़, बायो ई सब यूनिट वैक्सीन के 30 करोड़, स्पुतनिक वी के 10 करोड़ और ज़ायडस कैडिला के 5 करोड़ डोज़ शामिल हैं.
भारत सरकार ने फिलहाल तीन वैक्सीनों को आपातकालीन स्वीकृति दी हुई है जिनमें कोविशील्ड, कोवैक्सिन और रूसी वैक्सीन स्पुतनिक है. ये सभी दो डोज़ वाली वैक्सीन हैं.
लेकिन ज़ायकोव-डी को स्वीकृति मिलने के साथ ही टीकाकरण के लिए चार वैक्सीन उपलब्ध होंगी जिनमें से दो वैक्सीनों को भारत में बनाया गया है.
डीसीजीए से मंज़ूरी मिलने की स्थिति में ज़ायकोव-डी दुनिया की पहली डीएनए आधारित वैक्सीन का दर्जा हासिल कर लेगी. ये एक दूसरी स्वदेशी वैक्सीन है जिसे पूर्णतया भारत में तैयार किया गया है.
कंपनी के प्रबंध निदेशक डॉ शरविल पटेल ने हाल ही में एक निजी टेलीविज़न चैनल से बातचीत में बताया है कि –
- इस वैक्सीन को 28000 वॉलिंटियर्स पर क्लिनिकल ट्रायल किया गया है जो कि देश में सबसे बड़ा क्लीनिकल ट्रायल है.
- क्लिनिकल ट्रायल में 12 से 18 वर्ष के बच्चों समेत सभी उम्र वर्ग शामिल थे.
- वैक्सीन को लगाने के लिए इंजेक्शन की ज़रूरत नहीं है. ये एक इंट्रा – डर्मल वैक्सीन है जिसमें मांस-पेशियों में इंजेक्शन लगाने की ज़रूरत नहीं होती है. ये चीज वैक्सीन की ईज़ ऑफ़ डिलीवरी यानी वितरण में सहायक सिद्ध होगी.
- इस वैक्सीन को 2 से 8 डिग्री सेल्सियस पर लंबे समय तक के लिए रखा जा सकता है. इसके साथ ही 25 डिग्री सेल्सियस पर चार महीने के लिए रखा जा सकता है.
- इस वैक्सीन को नए वैरिएंट्स के लिए भी अपडेट किया जा सकता है
- शुरुआती दिनों में हम एक महीने में इस वैक्सीन के 1 करोड़ डोज तैयार करने जा रहे हैं.
डीएनए आधारित वैक्सीन?
ज़ायकोव-डी एक डीएनए आधारित वैक्सीन है जिसे दुनिया भर में ज़्यादा कारगर वैक्सीन प्लेटफॉर्म के रूप में देखा जाता है.
राजीव गाँधी सुपर स्पेशियलिटी हॉस्पिटल से जुड़े डॉ बीएल शेरवाल इस वैक्सीन को बनाए जाने के ढंग को समझाते हैं.
वे कहते हैं, “इंसान के शरीर पर दो तरह के वायरस – डीएनए और आरएनए के हमलों की बात की जाती है. कोरोना वायरस एक आरएनए वायरस है जो कि एक सिंगल स्ट्रेंडेड वायरस होता है. डीएनए डबल स्ट्रेंडेड होता है और मानव कोशिका के अंदर डीएनए होता है. इसलिए जब हम इसे आरएनए से डीएनए में परिवर्तित करते हैं तो इसकी एक कॉपी बनाते हैं. इसके बाद ये डबल स्ट्रेंडेड बनता है और आख़िरकार इसे डीएनए की शक्ल में ढाला जाता है.
ऐसा माना जाता है कि डीएनए वैक्सीन ज़्यादा ताकतवर और कारगर होती है. अब तक स्मॉलपॉक्स से लेकर हर्पीज़ जैसी समस्याओं के लिए डीएनए वैक्सीन ही दी जाती है.”
दो की जगह तीन खुराक क्यों?
ऐसे में सवाल उठता है कि क्या इस वैक्सीन में उतनी क्षमता नहीं है कि यह दो डोज़ में पर्याप्त एंटीबॉडीज़ पैदा कर सके.
डॉ. शेरवाल मानते हैं कि तीन डोज़ की वजह से वैक्सीन को कमतर करके नहीं देखा जाना चाहिए.
वे कहते हैं, “वैक्सीन के पहले डोज़ के बाद ये देखा जाता है कि वैक्सीन लेने वाले व्यक्ति में पहली खुराक से कितनी रोग प्रतिरोधक क्षमता विकसित हुई है. अगर पर्याप्त क्षमता विकसित नहीं होती है तो दूसरा और तीसरा डोज दिया जाता है.
मुझे ऐसा लगता है कि डोज कम होने की वजह से एंटी-बॉडीज़ कम बनते हैं. इसके बात दूसरा और तीसरा डोज दिया जाता है. लेकिन ऐसा नहीं हैं कि इसे इस वजह से कम असरदार माना जाए. पहली खुराक के बाद दूसरी और तीसरी खुराक बूस्टर का काम करती है. एंटी-बॉडीज़ की मात्रा भी ज़्यादा होगी. मेरा मानना है कि इससे सुरक्षा दीर्घकालिक भी हो सकती है.”
ये वैक्सीन एक ऐसे समय पर आ रही है जब अलग-अलग शैक्षणिक संस्थाएं परीक्षाओं में छात्रों की शारीरिक उपस्थिति के लिए सुप्रीम कोर्ट के चक्कर काट रही हैं.
सुप्रीम कोर्ट ने मंगलवार को चार्टेर्ड अकाउंटेंसी की परीक्षा में छात्रों की व्यक्तिगत उपस्थिति की इजाज़त दे दी है.
लेकिन इससे पहले सीबीएससी समेत कई एजुकेशन बोर्ड्स को दसवीं और बारहवीं की वार्षिक परीक्षाएं भी रद्द करनी पड़ी हैं.
भारत में कोरोना वायरस आने के लगभग डेढ़ साल बाद भी करोड़ों बच्चे ऑनलाइन कक्षाएं लेने और परीक्षाएं देने के लिए मजबूर हैं.
इसकी एक वजह बच्चों के लिए वैक्सीन उपलब्ध न होना रही है. यही नहीं, भारत में 12 से 18 साल की उम्र के बच्चों की संख्या लगभग 14 करोड़ बताई जाती है. ऐसे में सवाल उठता है कि इस बड़े उम्र वर्ग के लिए ये वैक्सीन कब तक आ जाएगी.
समाचार एजेंसी एएनआई से बात करते हुए टीकाकरण पर राष्ट्रीय तकनीकी सलाहकार समूह के अध्यक्ष डॉ. एनके अरोरा ने बताया है कि इस वैक्सीन का ट्रायल लगभग पूरा हो चुका है.
वे कहते हैं, “हमारी जानकारी के मुताबिक़, जायडस कैडिला का ट्रायल लगभग पूरा हो चुका है. इसके नतीजों को जुटाने और उन पर निर्णय लेने की प्रक्रिया में चार से छह हफ़्तों का समय लग जाता है. मुझे लगता है कि जुलाई के अंत तक या अगस्त में हम 12 से 18 साल की उम्र के बच्चों को संभवत: ये वैक्सीन दे पाएंगे.” साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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