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कोरोनावायरस संक्रमण की वजह से अपने मां-बाप की मौत के बाद सोनी और उसके भाई और बहन अनाथ हो गए
“हमारे माँ-बाप की मौत के बाद कोई उन्हें छूना नहीं चाहता था, तो मुझे अपनी माँ की क़ब्र ख़ुद खोदनी पड़ी और उन्हें दफ़नाना पड़ा. मेंने ये सब अकेले किया.”
एक वीडियो कॉल पर सोनी कुमारी ने मुझे अपनी ये आपबीती बताई. कैसे पीपीई किट पहनकर उसने घर के पास के थोड़े से ज़मीन के टुकड़े पर अपनी माँ को दफ़नाया.
अकेली बेटी के उस मुश्किल लम्हे को एक स्थानीय पत्रकार ने अपनी तस्वीर में क़ैद कर लिया.
“कोई मदद के लिए नहीं आया”
सोनी को उस दिन की एक-एक घड़ी याद है. उसके पिता की कोविड से मौत हो चुकी थी और माँ की बिगड़ती तबीयत की वजह से उसे अपने छोटे भाई और बहन को घर में छोड़ उन्हें ऐंबुलेंस में अस्पताल ले जाना पड़ा.
बिहार के सुदूर गाँव मधुलत्ता से तीन घंटे का सफ़र तय कर वो मधेपुरा के अस्पताल तो पहुँचे पर माँ की जान नहीं बच सकी.
जब माँ का शव लेकर वो वापस गाँव लौटीं तो कोई उन तीन अनाथ बच्चों की मदद के लिए नहीं आया.
सोनी वो वक़्त याद करते हुए बोलीं, “हमारी तो सारी दुनिया ख़त्म हो गई थी पर सबने हमें अकेला छोड़ दिया. मेरे माँ-बाप सबकी इतनी मदद करते थे पर हमारी ज़रूरत के वक़्त किसी ने परवाह नहीं की.”
कोरोना वायरस की इस दूसरी लहर में भारत में मरने वालों की संख्या तेज़ी से बढ़ रही है और सोनी जैसे अनाथ होते बच्चों के मामलों की तादाद भी. ऐसे बच्चों के पास क्या विकल्प हैं?
सोनी ने पीपीई पहनकर अपनी माँ को दफ़नाया
“कोई नहीं पूछा कि कुछ खाने को है या नहीं”
18 साल की सोनी बहुत शांत हैं और बिना संयम खोए मुझसे बात करती हैं. पर मास्क के पीछे से आती उनकी सधी हुई आवाज़, उनकी आंखों में छलकते दर्द को नहीं ढांप पाती.
पीछे से झांकते उसके भाई (12) और बहन (14) मुझे पल भर के लिए दिखाई देते हैं.
वे कहती हैं, “सबसे ज़्यादा दर्द अकेले छोड़ दिए जाने का है. माँ ने जो भोजन बनाया था बस वही आख़िरी खाना था घर में. उनकी मौत के बाद के दिनों में किसी ने हमसे ये तक नहीं पूछा कि कुछ खाने को है या नहीं. जब तक कोरोना वायरस की हमारी रिपोर्ट नेगेटिव नहीं आई कोई नहीं आया.”
कोरोनो वायरस संक्रमण की वजह से अपने माँ-बाप खोने वाले बच्चों के लिए अकेलापन और बीमारी के डर से लोगों का पास आने से कतराना, बड़ी चुनौतियाँ हैं.
महिला और बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी के मुताबिक़ ऐसे बच्चों के लिए मदद उपलब्ध है.
सोनी के घर के बाहर बनाई गई बाड़ ताकि ‘आइसोलेशन’ के दौरान लोग उनके घर न आएं
अनाथ बच्चों की मदद का प्रावधान
एक ट्वीट में ईरानी ने बताया कि एक अप्रैल से 25 मई के बीच उनके पास देशभर से ऐसे 577 मामलों की जानकारी आई है.
ये नंबर असल मामलों से काफ़ी कम हो सकते हैं. कई मामलों की जानकारी सरकार तक पहुँचती ही नहीं है.
कोरोना वायरस के इस दौर में पहली बार ऐसे बच्चों की मदद और उन्हें गोद लेने की अपील इंटरनेट और सोशल मीडिया के ज़रिए की जा रही है.
व्हॉट्सएप्प और ट्विटर पर शेयर की जा रही इन अपीलों में बच्चे का नाम, उम्र और फ़ोन नंबर भी दिया जा रहा है.
ट्विटर पर पोस्ट की गई एक अपील में लिखा था, “दो साल की बेबी गर्ल और दो साल का बेबी बॉय, माँ-बाप की कोविड से मृत्यु हो चुकी है, कृप्या फ़ॉर्वर्ड करें ताकि बच्चों को अच्छे माँ-बाप मिल पाएं.”
हम इस ट्वीट को नहीं छाप रहे क्योंकि भारत सरकार ने ऐसे संदेश शेयर करने से मना किया है.
ऐसा ही एक संदेश मेधा मीनल और हरिशंकर के पास पहुँचा.
मदद की अपील देखकर हरिशंकर और मेधा ने एक अनाथ बच्चे को गोद लेने के बारे में सोचा
मेधा ने बताया, “इतनी सारी अपील आ रही थीं, ऑक्सीजन, आईसीयू वग़ैरह के लिए पर मैं हिल गई जब मैंने सोशल मीडिया पोस्ट देखी कि एक चौदह साल की बच्ची ने अपने दोनों पेरेन्ट्स को कोविड से गंवा दिया और वो भी कोविड पॉज़िटिव थी, घर पर अकेली थी, और किसी को पता नहीं था कि उनके साथ क्या करना है.”
गोद लेने का क़ानून
मेधा को लगा उन्हें इस बच्ची को गोद ले लेना चाहिए. पर हरि ने समझाया कि भारत का क़ानून इसकी इजाज़त नहीं देता.
क़ानून के मुताबिक़ अगर कोई बच्चा अनाथ हो जाए तो उसकी जानकारी राष्ट्रीय हेल्पलाइन, ‘चाइल्डलाइन’, को दी जानी चाहिए.
चाइल्डलाइन के अधिकारी चाइल्ड वेल्फ़ेयर कमेटी को ये जानकारी देंगे जो इसकी पुष्टि कर, बच्चे की ज़रूरतों का आकलन करेगी.
यही कमेटी तय करेगी कि बच्चा अपने रिश्तेदारों की देखरेख में रहेगा या किसी बाल गृह में.
लेकिन गोद लेने का ये क़ानूनी तरीक़ा, कोविड से पहले भी कई चुनौतियों से जूझता रहा है.
साल 2018 में सरकार ने अपने ऑडिट में पाया कि देश के कुल बाल गृहों में से केवल 20 प्रतिशत ही बच्चे को गोद लिए जाने की प्रक्रिया शुरू करने से पहले उसके परिवार को खोजने और उनसे संपर्क साधने की कोशिश करते हैं.
ताज़ा समय में गोद लेने की अपील इंटरनेट पर आने के बाद, सरकार ने इसके ख़िलाफ़ प्रमुख अख़बारों में विज्ञापन देना शुरू किया.
भारत सरकार के मुताबिक कोरोना वायरस की वजह से अनाथ हुए बच्चों की जानकारी चाइल्डलाइन को दी जानी चाहिए
“ये सोशल मीडिया पोस्ट ग़ैर-क़ानूनी हैं”
बाल अधिकार संगठनों ने भी गोद लेने की आड़ में इन अपील के ज़रिए बच्चों की तस्करी के ख़तरे के बारे में चेताया है.
धनंजय टिंगल, बाल गृह चलानेवाले और बाल-अधिकारों पर दशकों से काम करनेवाले एक एनजीओ, बचपन बचाओ आंदोलन के एग्ज़िक्यूटिव डायरेक्टर हैं.
उन्होंने कहा, “सोशल मीडिया पर की जा रही पोस्ट ग़ैर-क़ानूनी हैं और तस्करी की परिभाषा में आती हैं. आप किसी बच्चे को इस तरह गोद नहीं ले सकते. इससे बच्चे की ख़रीद-फ़रोख़्त होने का ख़तरा है.”
कोविड की अतिरिक्त चुनौती के बिना ही मज़दूरी, यौन शोषण या जबरन शादी के लिए बच्चों की तस्करी भारत में एक बड़ा मसला है.
देश के राष्ट्रीय क्राइम रिकॉर्ड्स ब्यूरो के 2019 के आंकड़ों के मुताबिक़ उस साल 70,000 से ज़्यादा बच्चे गुमशुदा हुए थे. यानी हर आठ मिनट में एक बच्चा.
सरकार ने तस्करी रोकने के लिए कड़े क़ानून और समाज कल्याण विभाग, पुलिस और एनजीओ के बीच तालमेल समेत कई क़दम उठाए हैं.
इनसे कुछ तस्करों के ख़िलाफ़ कार्रवाई भी हुई. लेकिन ताक़त, पैसा और ज़रूरत के चक्रव्यूह को तोड़ना मुश्किल है. ज़्यादातर तस्कर जुर्माना देकर छूट जाते हैं.
भारत में हर आठ मिनट में एक बच्चा गुमशुदा हो जाता है
अनाथ बच्चों की मदद
मेधा और हरि ने तय किया कि ऐसे अनाथ बच्चों की मदद का सबसे अच्छा तरीक़ा उनकी पढ़ाई का ख़र्च उठाने के लिए बाल गृह को डोनेशन देना होगा.
अपने ऑनलाइन कैम्पेन के ज़रिए उन्होंने अब तक बीस लाख रुपये से ज़्यादा की धन राशि एकत्र की है.
मेधा ने कहा, “एकदम अनजान लोगों ने हमें इतनी दरियादिली दिखाई है, जैसे एक माँ जिन्होंने एक लाख रुपये डोनेट किए क्योंकि जब वो और उनके पति अस्पताल में कोविड से लड़ रहे थे तब उनका बच्चा घर में अकेला था.”
“उन्होंने कहा कि वो सोच भी नहीं सकतीं कि अनाथ बच्चों की ज़रूरतें कैसे पूरी होंगी.”
अनाथ होने पर बाल गृह में डालना पहला विकल्प नहीं
बच्चों के अनाथ होने पर उन्हें किसी बाल गृह में डालना पहला क़दम नहीं होता.
दिल्ली की एक चाइल्ड वेल्फ़ेयर कमेटी के चेयरपर्सन वरुण पाठक के मुताबिक़ पहली कोशिश बच्चे को उसके रिश्तेदारों को देने की ही की जाती है.
उनके मुताबिक़, “जहाँ पर पारिवारिक ढांचा पूरी तरह से कोलैप्स हो चुका है, फ़ैमिली स्ट्रक्चर या कोई सपोर्ट सिस्टम नहीं है वहाँ स्टेट फिर आगे आकर ज़िम्मेदारी लेता है, और शेल्टर होम में उन्हें सेटल किया जाता है, या अगर बच्चा बहुत छोटा हो तो सेंट्रल अडॉप्शन अथॉरिटी के तहत उसके गोद लिए जाने की प्रक्रिया शुरू की जाती है.”
वरुण पाठक के मुताबिक़ रिश्तेदारों को दिए जाने की सूरत में भी कमेटी बच्चे की काउंसलिंग, वित्तीय सहायता और फॉलोअप करती है.
कई राज्य सरकारों ने कोरोना वायरस की वजह से अनाथ हुए बच्चों के लिए विशेष धनराशि का एलान किया है.
सोनी के मुताबिक उनके भाई और बहन की मूल ज़िम्मेदारी उन्ही पर है
भविष्य की ज़िम्मेदारी अपने ही कंधों पर लेना चाहती हैं सोनी
सोनी कुमारी और उनके भाई-बहन को अब सरकार की तरफ़ से पैसे और राशन दिया गया है. कुछ समाजसेवियों ने भी उनकी मदद की है.
उन तीनों के सामने एक लंबी ज़िंदगी है और फ़िलहाल कमाई का कोई साधन नहीं.
सोनी कहती हैं, “हम अपने माँ-बाप को रोज़ याद करते हैं. उनके मन में हमारे लिए कितने सपने थे और घर के तंग हालात के बावजूद वो हमारी इच्छाओं को अपनी ज़रूरतों के आगे ही रखते थे.”
सोनी की दादी अब उनके पास आकर रह रहीं हैं पर सोनी कहती हैं कि उनके भाई-बहन की ज़िम्मेदारी उन्हीं की रहेगी.
वे बोलीं, “आख़िर में हम ही होंगे. हमें ही एक-दूसरे का ख्याल रखना है.”
उन्हें उम्मीद है कि इस वक़्त मिली आर्थिक मदद को वे उनके भविष्य के लिए ठीक से इस्तेमाल कर पाएंगी.
उनके पिता गाँव के लोकल डॉक्टर थे. सोनी सोचती हैं कि भाई-बहन में से कोई एक तो अपने पिता के नक्शेक़दम पर चल पाए. साभार-BBC NEWS हिन्दी
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