मुरादाबाद के रहने वाले कांट्रैक्टर शाहिद अली ने अपने आप को एक तरह से घर में बंद कर लिया है। न वो न्यूज देखते हैं और न ही किसी से कोरोना संक्रमण के बारे में कोई बात करते हैं। वायरस का नाम आते ही उन्हें घबराहट सी होने लगती है। नोएडा में रहने वाले रिटायर्ड सुशील कुमार का भी यही हाल है। दूसरी लहर के दौरान वो घर से नहीं निकले हैं। जब भी संक्रमण से किसी की मौत की खबर उन तक पहुंचती है, उन्हें अपनी सेहत की चिंता सताने लगती है।
बिजनौर के रहने वाले सुरेंद्र सिंह यदि कोरोना से जुड़ी खबरें देख लें तो उन्हें नींद की गोलियां खानी पड़ती हैं। उनके हाथ-पांव फूलने लगते हैं। दिल्ली की रहने वाली 30 साल की पूजा कुमारी के घर में अभी कोई संक्रमित नहीं हुआ है, लेकिन वो इतनी डरी हुई हैं कि घर में जरूरत का हर सामान जुटाना शुरू कर दिया है। यहां तक कि वो ऑक्सीजन सिलेंडर खरीदने की कोशिशें भी कर रही हैं। वो बार-बार ये कहती हैं, ‘तीसरी लहर इससे भी खतरनाक होगी। बच्चे भी चपेट में आएंगे।’
भारत में कोरोना की दूसरी लहर किसी सुनामी की तरह आई है। परिवार के परिवार संक्रमित हैं। मेडिकल इंफ्रास्ट्रक्चर चरमरा गया है। सिस्टम या सरकार कहीं नजर नहीं आ रही है। ऐसे माहौल ने लोगों में डिप्रेशन और एंग्जायटी को जन्म दिया है। मनोवैज्ञानिकों के मुताबिक महामारी के दौरान मानसिक सेहत को लेकर जो डाटा सामने आ रहे हैं वो डराने वाले हैं। अलग-अलग फील्ड के एक्सपर्ट का कहना है कि कोविड ने समाज को हमेशा के लिए बदल दिया है। एक तरह से ये एक मेंटल पेंडेमिक भी है।
कोरोना से उबर चुके भी डिप्रेशन का शिकार हो रहे हैं
मैक्स अस्पताल में साइकाइट्री विभाग के प्रमुख डॉ. समीर मल्होत्रा और उनकी टीम ने कुछ दिन पहले देशभर में एक सर्वे किया था जिसमें एक हजार से अधिक भारतीयों ने हिस्सा लिया था। इसमें हिस्सा लेने वाले 55 फीसदी लोगों ने घबराहट और 27 फीसदी लोगों ने डिप्रेशन की बात स्वीकारी थी। डॉ. समीर कहते हैं, ‘ऑक्सीजन की शार्टेज है, अस्पतालों में बेड नहीं मिल पा रहे हैं, इसे लेकर लोग घबराए हुए हैं। उनके मन में बार-बार सवाल कौंधता रहता है कि यदि हमारे साथ ऐसा कुछ हुआ तो हम क्या करेंगे? डॉ. समीर के मुताबिक सिर्फ वही लोग डिप्रेशन से पीड़ित नहीं हो रहे हैं जो कोरोना से ग्रस्त हुए हैं बल्कि इससे उबर चुके लोग या अपनों को गंवाने वाले भी सदमे और अवसाद का शिकार हो रहे हैं।
महामारी की वजह से अनिश्चितता का माहौल भी है। सरकारें लॉकडाउन लगा रही हैं। लोगों को नहीं पता कि कब तक बाजार खुले रहेंगे और आगे क्या होगा। इसकी वजह से पैनिक भी है। डॉ. समीर कहते हैं, ‘लोग पैनिक बाइंग कर रहे हैं। वो सामान भी खरीद रहे हैं जिनकी उन्हें जरूरत नहीं है। ऐसी दवाएं भी खरीद रहे हैं जिनके असली होने का भरोसा भी उन्हें नहीं है। ये सब वो घबराकर कर रहे हैं। यदि लोगों की यही घबराहट और बढ़ी तो वो डिप्रेशन का शिकार हो सकते हैं।’
सोशल मीडिया पर आने वाले निगेटिव पोस्ट भी लोगों को डिप्रेशन की तरफ ले जा रहे हैं। डॉ. समीर कहते हैं, ‘लोगों को बिस्तर नहीं मिल रहे हैं, वो मारे-मारे फिर रहे हैं। लोग कई वॉट्सऐप ग्रुपों से जुड़े हैं, कई सोशल मीडिया प्लेटफार्म पर भी हैं। वो वहां प्लाज़्मा की जरूरत या बेड की जरूरत आदि के पोस्ट बार-बार देख रहे हैं। ये चीज़ें लोगों को मिल नहीं पा रही हैं तो इससे भी लोग कन्फयूज़्ड स्टेट ऑफ़ माइंड में आ रहे हैं।’
ऐसे भी लोग हैं जिन्होंने अपने निकटतम परिजनों या संबंधियों को खो दिया है। ऐसे लोगों का जाना जिनसे दो दिन पहले ही उन्होंने बात की थी उससे भी लोगों को धक्का लग रहा है। इस तरह की अचानक डेथ से लोगों में ग्रीफ रिएक्शन क्रिएट हो रहा है। लोगों में बहुत अधिक गुस्सा, बहुत अधिक अधूरापन और बहुत अधिक डिप्रेशन आ रहा है।
लोग बार-बार अपना ऑक्सीजन लेवल चेक कर रहे हैं, ये भी डिप्रेशन की एक वजह है
डॉ. समीर कहते हैं, ‘लोगों को रात में नींद सही से नहीं आ रही है, वो घबराकर उठ रहे हैं, दिल की धड़कन तेज हो जा रही है, उन्हें सांस लेने में दिक्कत आ रही है। ऐसे लोग भी हैं जिन्हें घबराहट की वजह से सांस लेने में दिक्कत होती है और उन्हें लगने लगता है कि उनमें कोविड के लक्षण हैं। ऐसे में लोग बार-बार अपना ऑक्सीजन लेवल चेक कर रहे हैं, बार-बार नब्ज देख रहे हैं। इससे भी एंग्जायटी बढ़ रही है।’
वो कहते हैं, ‘क्लिनिकल डिप्रेशन जो एक तरह की बीमारी है उसमें मन लगातार उदास रहने लगता है। यदि आप एक सप्ताह से अधिक समय से उदास हैं, किसी काम में आपका मन नहीं लग रहा है, छोटे-छोटे काम बहुत भारी लगने लगे हैं, बात-बात पर आंखें भर आती हैं, आप घबरा जाते हैं और मन में नकारात्मकता जड़ पकड़ने लगी है। ये ख्याल आने लगे हैं कि मैं अब बेकार हो चला हूं, अब कुछ नहीं होगा। बेबस और असहाय महसूस करते हैं तो ये सब डिप्रेशन के ही संकेत हैं।
मनोवैज्ञानिक डॉ. मलीहा साबले हेल्दी माइंड संस्थान की संचालक हैं और वो मानसिक स्वास्थ्य पर वर्कशॉप भी करती हैं। मलीहा के मुताबिक आजकल उनके पास युवाओं में डिप्रेशन के अधिक मामले सामने आ रहे हैं। मलीहा कहती हैं कि जो लोग रिटायर्ड हो चुके हैं वो भी अपने जीवन को लेकर अधिक चिंतित हैं।
डॉ. मलीहा कहती हैं, ‘कोविड महामारी के दौरान युवा और पचास साल से अधिक उम्र के लोग अधिक चिंतित हैं। युवा कुछ न कुछ नया एक्सप्लोर करते रहना चाहते हैं, लेकिन अचानक आई कोविड महामारी ने उनकी जिंदगी को रोक दिया है। इसका असर उनके मानसिक स्वास्थ्य पर हुआ है। वहीं पचास से अधिक उम्र के लोगों में एक तरह का अकेलापन होता है। वो भी कुछ नया एक्सप्लोर करना चाहते हैं। मेरे सामने सबसे ज्यादा मामले इन्हीं दो आयु वर्ग के आ रहे हैं।’
डॉ. मलीहा अपनी फर्म हेल्दी माइंड के जरिए ऑनलाइन भी लोगों को सलाह देती हैं। उनके मुताबिक कई ऐसे लोग उनके संपर्क में आते हैं जो आमतौर पर मनोचिकित्सक के पास नहीं जा पाते हैं। वो कहती हैं, यदि डिप्रेशन से सही समय पर नहीं निपटा जाए तो ये गंभीर समस्या में तब्दील हो जाता है।
कीटाणुओं और निगेटिव न्यूज का डर बढ़ा
इन दिनों लोगों में कीटाणुओं का डर भी बढ़ गया है। ऐसे लोग भी इसका शिकार हो हैं जिनमें OCD (ऑब्सेसिव कंपल्सिव डिसऑर्डर) नहीं हैं। मलीहा कहती हैं, ‘मैं देख रही हूं कि लोगों में जर्मोफोबिया बढ़ गया है। लोग कीटाणुओं से डरने लगे हैं। सामान्य तौर पर हर किसी में OCD का कोई ना कोई लक्षण होता है। कुछ लोगों में ये लक्षण ज्यादा होते हैं, लेकिन अब हम देख रहे हैं कि जिन लोगों में ये लक्षण नहीं थे उनमें भी डर और अधिक बढ़ गया है।
ऐसे बहुत से लोग हैं जो कोविड से जुड़ी न्यूज से डर रहे हैं, घर में सामान स्टॉक करने की कोशिश कर रहे हैं और वॉट्सऐप या सोशल मीडिया पर मिली गैर भरोसेमंद मेडिकल सलाह पर भी यकीन कर रहे हैं।
डॉ. मलीहा कहती हैं कि इसकी वजह भी लोगों के मन में बैठ रहा डर ही है। वो कहती हैं, ‘सावधान रहना अच्छी बात है, लेकिन सावधानी का डर में बदल जाना खतरनाक है। कोरोना से जुड़ी खबरों का भी लोगों पर नकारात्मक असर हो रहा है। कोरोना से जुड़ी नकारात्मक खबरों की वजह से कोविड मरीज भी पैनिक अटैक का शिकार हो रहे हैं।’
कोरोना की फर्स्ट वेव के दौरान मलीहा कोविड मरीजों का मनोवैज्ञानिक इलाज करती थीं। उन्होंने देखा कि कोविड के मरीज कोरोना के तमाम लक्षणों के बाद तब तक स्टेबल थे जब तक उन्हें मोटिवेट किया जा रहा था, लेकिन जैसे ही नकारात्मक खबरें उन तक पहुंच रही थीं वो पैनिक अटैक का शिकार हो रहे थे। अब मैं नहीं बचूंगा, मेरे घरवालों का क्या होगा, इस तरह के विचार मरीजों में पैनिक अटैक ला रहे हैं। मलीहा सलाह देती हैं कि कोविड का इलाज करा रहे मरीजों को हर तरह की निगेटिव न्यूज से दूर रखा जाए और उनके लिए बहुत ही शांत और व्यवस्थित माहौल बनाया जाए।
डिप्रेशन का इलाज क्या है?
डॉ. मलीहा कहती हैं, ‘डिप्रेशन से बचने के लिए सबसे पहले लोगों को निगेटिव विचारों को छोड़ना चाहिए। नकारात्मक विचार ही डिप्रेशन की वजह होते हैं। रोजाना हमारे मन में करीब साठ हजार विचार आते हैं। कई बार हम ये सोचते हैं कि मेरे साथ ही ऐसा क्यों हो रहा है। ऐसा सोचकर हम निगेटिविटी के चक्र में घिरते चले जाते हैं।’
डॉ. मलीहा के मुताबिक, ‘सबसे आसान समाधान यही है कि लोग निगेटिव ना सोचें। जैसे ही लगे कि हम ज्यादा सोच रहे हैं तो सोचना बंद करें। हमारा दिमाग एक डिब्बे की तरह ही है। हम उसमें चीजें भरते जाते हैं, लेकिन जब वो ओवरफ्लो करने लगता है तो उसका हमारे शरीर पर असर होता है। ये सिर्फ मानसिक बीमारी तक ही सीमित नहीं रहता है, बल्कि शारीरिक बीमारी में भी बदल जाता है।’ दिल की धड़कन बहुत तेज़ हो जाना, मुंह सूखना, हाथ-पैर में कंपन होना, सांस उखड़-उखड़ कर आना, ये सब एंग्जायटी के लक्षण हैं, यदि सही समय पर इसे ट्रीट नहीं किया गया तो यही डिप्रेशन बन जाता है।
क्या ये तनाव स्थाई है?
इंसान की फितरत है कि वो चुनौतियों का मुकाबला करता है। वो हमेशा बेहतर की तरफ बढ़ते रहना चाहता है। डॉ. समीर कहते हैं कि मानव जाति इस दौर से भी निकल जाएगी। वो कहते हैं, ‘कोविड महामारी से सभी प्रभावित हैं। बड़ी तादाद में लोग अवसाद की तरफ भी बढ़ रहे हैं, लेकिन जैसे-जैसे हालात ठीक होंगे ये डिप्रेशन भी स्वतः ठीक हो जाएगा। हम उम्मीद करते हैं कि ये दीर्घकालिक डिप्रेशन में न बदले। लेकिन एक पहलू ये भी है कि कोविड के बाद हमारी सोच और हमारा समाज हमेशा के लिए बदल जाएगा।’
कोविड महामारी एक दुखदायी अनुभव है। हममें से अधिकतर लोगों को जीवनकाल में कभी ना कभी ऐसे अनुभव होते हैं, लेकिन सभी लोग डिप्रेशन का शिकार नहीं हो जाते। ऐसे में मनोवैज्ञानिक उम्मीद करते हैं कि समय के साथ इस नकारात्मक दौर की नकारात्मकता भी पीछे छूट जाएगी। साभार-दैनिक भास्कर
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