जागरण ब्यूरो, नई दिल्ली। पिछले कुछ दिनों से देश में कोरोना के नए मामलों में थोड़ी कमी या स्थिरता के बीच राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन की बहस को केंद्र सरकार अनसुनी ही करना चाहेगी। सरकारी सूत्रों का कहना है कि फिलहाल देश के आधे से ज्यादा जिलों में कोरोना नियंत्रण में है। कई राज्यों में सीमित या पूर्ण लाॅकडाउन है। उसका असर दिखने लगा है। ऐसे में राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन न सिर्फ अतिरेक होगा बल्कि गरीबों के लिए परेशानी बढ़ाएगा। जाहिर है केंद्र किसी दबाव में लाॅकडाउन के पक्ष में नहीं है।

केंद्र सरकार लाॅकडाउन को तार्किक नहीं मानती

पिछले दिनों में सुप्रीम कोर्ट और औद्योगिक संगठनों के बाद अब कांग्रेस नेता राहुल गांधी की ओर से भी लाॅकडाउन लगाने की मांग की जा रही है। सरकार के सूत्र इसे तार्किक नहीं मानते हैं। उनके अनुसार पिछली बार लाॅकडाउन के वक्त कई लोगों ने इसका उपहास उड़ाया था, जबकि उस वक्त इसकी जरूरत इसलिए थी क्योंकि वायरस के बारे में लोग अनजान थे। उसके ट्रीटमेंट को लेकर असमंजस था। फिलहाल ऑक्सीजन या बेड की आपूर्ति को लेकर समस्या है जिसका लगातार निस्तारण किया जा रहा है। इस कमी की आपूर्ति का लाॅकडाउन से कोई लेना देना नहीं है।

देश में आधे से ज्यादा जिलों में स्थिति नियंत्रण में, ऐसे में राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन से क्या हासिल होगा

आंकड़ों के अनुसार फिलहाल 17 राज्य ऐसे हैं जहां 50 हजार से कम एक्टिव मामले हैं। पांच राज्य ऐसे हैं जहां संक्रमण दर पांच फीसद से कम है। अन्य नौ राज्य ऐसे हैं जहां यह दर पांच से 15 फीसद के बीच है। अगर जिलों की बात की जाए तो देश में आधे से ज्यादा जिलों में स्थिति नियंत्रण में है। ऐसे में राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन से क्या लक्ष्य हासिल होगा। कई कंपनियों में काम हो रहा है। निर्यात हो रहा है। उसे रोककर स्थिति बिगड़ेगी ही सुधरेगी नहीं।

लाॅकडाउन का फैसला राज्यों पर छोड़ा गया

सरकार का कहना है कि लाॅकडाउन का फैसला राज्यों पर छोड़ा गया है। कई राज्यों ने इस पर अमल भी किया है। महाराष्ट्र में पाबंदियां लगाई जा चुकी हैं। बिहार ने भी 15 मई तक के लिए पूर्ण लाॅकडाउन का एलान किया है। दिल्ली में भी नौ अप्रैल से लाॅकडाउन लगा है। इसके अलावा हरियाणा, ओडिशा, राजस्थान, कर्नाटक, केरल, झारखंड इत्यादि राज्यों में भी या तो लाॅकडाउन या उसी तरह की सख्त पाबंदियां लगाई गई हैं।

राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन फिलहाल प्रासंगिक नहीं

केंद्र की ओर से गाइडलाइंस भी है कि अगर किसी इलाके में बेड 60 फीसद से अधिक भर गए हैं या फिर संक्रमण दर 10 फीसद से ज्यादा है तो उसे कंटेनमेंट जोन बनाया जाना चाहिए। कुछ राज्यों में लापरवाही हुई और उसे सतर्क भी किया गया है। वैज्ञानिकों की ओर से भी संभावना जताई जा रही है कि अगले कुछ दिनों मे सकारात्मक बदलाव आना शुरू होगा। लिहाजा राष्ट्रव्यापी लाॅकडाउन फिलहाल प्रासंगिक नहीं है। साभार-दैनिक जागरण

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