कोरोना: इस बार बुख़ार, नौजवान और बच्चों को क्यों कर रहा है ज़्यादा परेशान? कोरोना की दूसरी लहर, पहली लहर से अलग कैसे?

पढ़िए बीबीसी न्यूज़ हिंदी की ये खबर…

“एक था कोरोना 2020 वाला.

एक है कोरोना 2021 वाला.

दोनों में कई बुनियादी फ़र्क़ है. पहले के मुक़ाबले फैल ज़्यादा रहा है, लेकिन कम घातक है. बच्चों और नौजवानों को अपनी ज़द में ज़्यादा ले रहा है. बुख़ार ज़्यादा दिन तक रह रहा है.”

बढ़ते कोरोना मामलों को लेकर पड़ोस में रहने वाले सैनी साहब ने मुझसे देर शाम नए कोरोना के बारे में ये बातें बताई. फिर तुरंत ही जोड़ दिया, “आप पत्रकार लोग तो रोज़ इस पर लिखते हो, आपको क्या बताना. हैं ना ये बातें सच?”

मैंने तुंरत जवाब दिया, “डॉक्टरों से बात किए बिना इस पर कुछ नहीं कह सकती.”

“ठीक है. इस मुद्दे पर आपसे कल बात करते हैं.” ये कहते हुए वो अपने घर के अंदर चले गए और मैं भी.

यही कहानी है आज के इस रिपोर्ट के पीछे की वजह. सैनी साहब तो बस एक उदाहरण हैं. ये सवाल कई लोगों के ज़ेहन में है. हमनें इन सवालों को डॉक्टर केके अग्रवाल के सामने रखा.

डॉक्टर केके अग्रवाल आईएमए के पूर्व अध्यक्ष रह चुके हैं. देश के जाने माने कार्डियोलॉजिस्ट हैं और पद्मश्री से सम्मानित हैं.

बीबीसी से बातचीत में उन्होंने पिछले साल के कोरोना संक्रमण और इस बार के कोरोना संक्रमण के अंतर को विस्तार से समझाया और लोगों के मन में उठ रहे दूसरी लहर से जुड़े अन्य सवालों के जवाब भी दिए. पेश हैं उनके साथ बातचीत के अंश.

सवाल: क्या वाक़ई साल 2020 के कोरोना संक्रमण और साल 2021 के कोरोना संक्रमण में अंतर है.

जवाब: हाँ, दोनों में अंतर हैं. लेकिन साल उसका आधार नहीं है. ये अंतर इसलिए है क्योंकि कोरोना के प्रकार बदल गए हैं. इस वक़्त भारत में चार प्रकार का कोरोना संक्रमण देखने को मिल रहा है.

पहला – प्राइमेरी कोरोना, जो 2020 में भारत में आया.

दूसरा – नई स्ट्रेन वाला कोरोना, जो ब्रिटेन, दक्षिण अफ़्रीका और ब्राज़ील से भारत में आया है. लेकिन इसके बारे में भारत सरकार ने अभी विस्तृत डेटा जारी नहीं किया है.

तीसरा – पोस्ट वैक्सीन कोरोना यानी जिनको वैक्सीन की एक डोज़ लग चुकी है और उसके बाद कोरोना हो गया है.

चौथा – रिइंफेक्शन कोरोना यानी जिनको पहले कोरोना हो चुका है और अब दोबारा से हुआ है. ऐसे लोगों की संख्या बाक़ी के मुक़ाबले कम है.

ज़ाहिर है हर प्रकार के लोगों में वायरस अलग तरीक़े से बर्ताव करेगा. अलग-अलग लक्षण दिखने के पीछे का वैज्ञानिक आधार यही हैं. प्राइमरी कोविड-19 के आज भी पुराने लक्षण ही हैं. लेकिन बदली परिस्थितियों में वायरस थोड़ा बदल गया है.

सवाल: क्या पहली लहर के मुक़ाबले दूसरी लहर में तेज़ी से फैल रहा है कोरोना?

जवाब: भारत का कोरोना ग्राफ़ इस बात की पुष्टि करने के लिए काफ़ी है. पिछले सात दिन के रोलिंग औसत का ग्राफ़ ये बताने के लिए काफ़ी है. इतना ही नहीं, कोरोना की वजह से हो रही मौत के मामलों में भी तेज़ी से इज़ाफ़ा देखने को मिला है. रोज़ाना हो रहे टेस्ट में पॉज़िटिव पाए जाने वालों की संख्या भी तेज़ी से बढ़ रही है. अस्पतालों में बढ़ते मरीज़ों के आँकड़े भी इस बात की तस्दीक़ कर रहे हैं.

सवाल: अब ज़्यादातर लोग लंबे वक़्त तक बुख़ार से जूझ रहे हैं. ये किस वजह से हो रहा है?

जवाब: कोरोना वायरस का अलग-अलग प्रकार हर तरह के लोग में अलग बर्ताव करेगा. हर शरीर की वायरस से लड़ने की क्षमता भी अलग होगी और वायरस का प्रकार भी अलग होगा.

दूसरा कोरोना है नई स्ट्रेन वाला कोरोना. इसके लिए ज़रूरी है कि किस म्यूटेंट वेराइटी से आपको संक्रमण हुआ है ये पता हो.

हर म्यूटेशन से संक्रमण के लक्षण होंगे. आम तौर पर म्यूटेंट वायरस से जो कोरोना हो रहा है, उसमें बुख़ार ज़्यादा दिन तक रहता है और शरीर का रेस्पॉन्स कम देखने को मिलता है.

इसका मतलब ये हुआ कि ये प्राइमरी कोविड-19 नहीं है. इसे सिस्टमिक इंफ्लेमेशन कहते हैं.

ऐसा तब होता है जब शरीर में एंटीबॉडी भी होंगी और एंटीजन भी होगा. इस वजह से रिएक्शन ज़्यादा होता है. इस वजह से बुख़ार रहता है. ऐसे मरीज़ों के साथ राहत की बात ये होती है कि उनको न्यूमोनिया नहीं होगा.

सवाल: क्या इस बार का कोरोना बच्चों और नौजवानों को ज़्यादा संक्रमित कर रहा है?

जवाब: नई स्ट्रेन वाला कोरोना बच्चों और नौजवानों में हो रहा है, ऐसी ख़बरें कई जगहों से आ रही है. सरकार ने इस बारे में फ़िलहाल कोई डेटा जारी नहीं किया है. लेकिन अस्पतालों में आने वाले मरीज़ों के आधार पर ये बातें डॉक्टर कह रहे हैं.

इसके पीछे भी वैज्ञानिक आधार है. जब वायरस म्यूटेट होगा, तो उस पॉपुलेशन पर ज़्यादा अटैक करेगा, जहाँ प्राइमरी वैक्सीनेशन नहीं हो रही है.

अब अगर भारत में 45 साल से ऊपर वालों को वैक्सीन दी जा रही है, तो वायरस निश्चित तौर पर उससे कम उम्र वालों पर अटैक ज़्यादा करेगा.

बच्चों में इम्यूनिटी लेवल बड़ों के मुक़ाबले ज़्यादा बेहतर होती है. इस वजह से उतना घबराने की ज़रूरत नहीं होती.

जैसे ही वैक्सीन 30 साल से ऊपर को दी जाने लगेगी, वैसे ही वायरस 20+ साल के लोगों में ज़्यादा अटैक करने लगेगा. वायरस ख़ुद को ऐसा ढालने की कोशिश करता है ताकि वो भी जीवित रह सके. ये वजह है कि मैं भी 18+ के हर व्यक्ति के लिए वैक्सीन की इजाज़त देने की माँग कर रहा हूँ.

डॉक्टर केके अग्रवाल की बात से दिल्ली के एलएनजेपी अस्पताल के मेडिकल डायरेक्टर डॉक्टर सुरेश कुमार भी सहमत हैं.

समाचार एजेंसी एएनआई से बातचीत में उन्होंने कहा, ” पहले हमारे यहाँ 60 साल से ज़्यादा उम्र वाले बुज़ुर्ग मरीज़ आ रहे थे. इस बार हमारें यहाँ बच्चे और नौजवान ज़्यादा आ रहे हैं.”

ग़ौरतलब है कि दिल्ली का एलएनजेपी अस्पताल कोविड अस्पताल घोषित किया गया था.

सवाल: पोस्ट वैक्सीन कोरोना में क्या लक्षण देखने को मिलता है?

जवाब: ऐसे लोगों की संख्या पहले दो के मुक़ाबले कम है. वैक्सीन की पहली डोज़ लेने के बाद शरीर में कुछ एंटीबॉडी बन जाती है. जो दूसरी डोज़ के मुक़ाबले कम होती है. ऐसी सूरत में कोरोना होता है, तो लक्षण दूसरी तरह का होता है. ऐसे मरीज़ों में नॉन पल्मोनरी सिस्टेमिक इंफ्लमेंशन देखने को मिलता है. मतलब ये कि लंग्स पर कोरोना उतना असर नहीं करेगा. बुख़ार उसमें तेज़ होगा.

आम बोलचाल की भाषा में कहें, तो ऐसे मामलों में शरीर में चोर (वायरस) भी आ जाते हैं और शरीर में वैक्सीन के बाद एंटी बॉडी ( पुलिस) भी तैयार रहती है. ऐसी सूरत में चोर जो बम लेकर आते हैं, वो घर ( लंग्स) में ना रख कर, इधर-उधर यानी शरीर के दूसरे हिस्से में बम छोड़ कर चले जाते हैं. इस वजह से ये सीरियस नहीं होते. प्राइमरी कोरोना में लंग्स में इंफ़ेक्शन ज़्यादा सीरियस होता है.

सवाल: रिइंफेक्शन वाला कोरोना, मरीज़ों पर कितना घातक होता है?

जवाब: 102 दिन के अंतराल के बाद दोबारा कोरोना होता है, तो उसे डब्लूएचओ ने रिइंफ़ेक्शन कोरोना माना है.

ऐसे मरीज़ों में ये देखने की ज़रूरत होती है कि कौन सा स्ट्रेन का वायरस है, जिससे दोबारा संक्रमण हुआ है. ब्रिटेन म्यूटेंट वेराइटी है, तो वो बच्चों और नौजवानों पर ज़्यादा असर करेगा. अगर ब्राज़ील वाला है, तो उससे जान पर ख़तरा ज़्यादा होगा. अगर दक्षिण अफ्रीका वाला है, तो जाँच में पकड़ में आने में थोड़ी देरी होती है.

वायरस जब म्यूटेट होता है, तो बस ये चाहता है कि जाँच में पकड़ा ना जाए, ड्रग्स उस पर काम ना करे, वैक्सीन की गिरफ़्त में ना आए.

इस वजह से कभी ये सुनने को मिलता है कि पहले टेस्ट में कोविड-19 पॉज़िटिव नहीं मिला. आम भाषा में कहें तो अगर एक बार किसी को मार पड़ जाती है तो अगली बार वो सतर्क हो जाता है और थोड़ा ढीठ भी. उसी तरह से रिइंफ़ेक्शन के मामले में होता है. साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी

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