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उसने कहा, वो ना कह चुकी थी लेकिन लड़के ने कहा, यह कोई बड़ी बात नहीं है. वो उससे शादी करने वाला था, इसलिए वो बलात्कार नहीं था. लड़के ने इस घटना को याद करते हुए कहा, ये कोई अपराध नहीं था, उसके बाद उसने लड़की से शादी कर ली थी. इसलिए उसने जो किया, उसमें कुछ भी गलत नहीं था. उसके लिए यह बात यहीं खत्म हो गई.
लेकिन, लड़की की शादी उसी के साथ हुई थी, जिसने उसके साथ यह अपराध किया था. उस लड़की ने बताया, “यही इसका तकलीफ़देह पहलू है.”
उसने बताया, “यह सामान्य शादी नहीं हो सकती थी, मैंने इसकी उम्मीद भी नहीं की थी.”
नौ साल बाद, निधि और सुनील (बदला हुआ नाम) जब इस घटना की परतें उतारने बैठे तो निधि ने उन बातों को याद करते हुए सालों पहले हुई उस घटना को बलात्कार करार दिया. नौ साल तक रिलेशनशिप में रहने के साथ उसके साथ ये हुआ था.
दोनों के बीच 2012 में जो हुआ था, उस पर बातचीत करने से वे तीन साल तक बचते रहे. निधि की यादों में वो घटना आज भी गुंथी हुई है.
निधि को अच्छी तरह याद है, वो गर्मी का दिन था. उसने काले और सफ़ेद रंग की चेक शर्ट पहन रखी थी. लड़का एक अपार्टमेंट में किराये पर रहता था. दोनों उस दिन उस कमरे में पहुँचे थे.
लड़की ने अपनी एफ़आईआर में शिकायत की है कि लड़के ने उसे ड्रग्स देकर उसके साथ रेप किया था. उसने लड़के को इस घटना का वीडियो बनाने का ज़िक्र करते सुना था. बाद में वो लड़की को ये कहकर धमकाता रहता था कि अगर उसने, उससे शादी नहीं की तो वह इस वीडियो को यूट्यूब पर डाल देगा.
निधि का ज़ोर इस बात पर है कि उसकी मर्ज़ी के बगैर उसके साथ यौन संबंध बनाया गया.
सुनील ने निधि के बारे में कहा, “उसने ना तो हाँ कहा और न ही ना कहा. अगर वह अपने साथ हुए बलात्कार को साबित करने की कोशिश करती, तो कभी सफल नहीं होती. किसी महिला के लिए बलात्कार का शिकार होकर रहना आसान नहीं होता.
सुनील ने कहा, “उसने मेरे ख़िलाफ़ तमाम केस किये लेकिन मैंने उससे शादी की, और अब हम बहुत ख़ुश हैं.”
लेकिन निधि का कहना है कि अगर उसने मेरा पीछा कर मेरे साथ पहले बलात्कार और फिर बाद में शादी करने के लिए बाध्य नहीं किया होता, तो शायद मेरी ज़िन्दगी कुछ और होती.
‘मैंने उसे बेइज़्ज़त होने से बचा लिया’
निधि और सुनील ने 2017 में शादी कर ली थी. इसके एक साल बाद यानी 2018 में दिल्ली कोर्ट ने सुनील को रेप के आरोपों से बरी कर दिया.
सुनील का मानना है कि उसने निधि को बेइज्जत होने से बचा लिया. लेकिन, निधि को लगता है कि उसकी सारी उम्मीदें ज़मींदोज़ हो गईं. वो कहती हैं, “मेरे लिए वो बेहद मुश्किल वक़्त था, लगता था आत्महत्या कर लूं.”
जब निधि को लगा कि चीज़ें बर्दाश्त के बाहर हो गई हैं, तो उसने उस शख़्स से मुलाक़ात की जिसने कथित तौर पर उसका रेप किया था. निधि ने यह मुलाक़ात अपने वकील की सलाह के ख़िलाफ़ की थी. कोर्ट में वो अपनी गवाही से मुकर गईं और फिर आरोपी से शादी कर ली.
फ़ोन पर बात करते हुए निधि ने उस दौर को याद करते हुए कहा, “मुझे अच्छी तरह याद है, मैं 2018 में कोर्ट गई थी.”
“जब 2018 में मैं कोर्ट में क्लोज़िंग स्टेटमेंट देने पहुँची तब मैं प्रेग्नेंट थी. मुझे बताया गया था कि कोर्ट में क्या कहना है. मेरा वकील वहाँ नहीं था. उन्होंने मुझसे कहा कि तुम यह बोलो कि मैं अपने आरोप वापस लेती हूँ. मैंने ऐसा ही किया. मेरे पास कोई सपोर्ट नहीं था, इसलिए मुझे पीछे हटना पड़ा. शादी कर लेने के बाद भी मैं ख़ुश नहीं थी. वो धमकियाँ देता रहता था. वो कहता था कि तुझे मार डालूंगा. पूरे मुक़दमे के दौरान वह मुझे धमकियाँ देता रहा था.”
निधि कहती हैं, “मुक़दमे के दौरान मेरा पति मुझे ये कहकर धमकाता रहता था कि कोई भी उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकता. इन धमकियों की वजह से मैंने सारी उम्मीदें खो दी थीं.”
वे कहती हैं, “मुझसे कभी नहीं पूछा गया कि मैं उससे शादी करना चाहती हूँ या नहीं.”
आख़िर इस सबके लिए मुझे ही क्यों चुना गया? – यह ऐसा सवाल है, जिसे निधि अक्सर खु़द से पूछती रहती हैं. साल 2019 में निधि ने एक बच्चे को जन्म दिया.
उस हादसे की कड़वीं यादेंमिटती नहीं
निधि अब 29 साल की हैं. उन्होंने ख़ुद को समझा लिया है कि सुनील के साथ उनकी ‘शादी-शुदा ज़िन्दगी’ अच्छी है.
वे कहती हैं, “अब कोई फ़र्क नहीं पड़ता. अब मैं भावुक नहीं रही. कभी-कभी मैं सोचती हूँ कि मेरी ज़िन्दगी क्या होती. लेकिन, इस रिश्ते में सम्मान ग़ायब है. आत्म-सम्मान भी नहीं है. लेकिन, अब मैंने एडजस्ट कर लिया है.”
लेकिन रेप की वो कड़वी यादें उनके ज़ेहन से आज भी नहीं मिटी हैं. निधि कहती हैं, “हर बार जब वो मुझे छूता है तो वो सदमा लौट आता है. रेप के कलंक के साथ मेरे लिए जीना मुश्किल होता.”
सुनील के वकील दीपक जाखड़ कहते हैं, “शिकायत करने वाले ने केस में समझौता कर लिया था. केस में ज़बरदस्ती शादी करने और रेप के आरोप लगाये गए थे. महिला ने यह कहते हुए तलाक़ माँगा था कि उसपर दबाव डाल कर शादी की गई. लेकिन, बाद में उसने आरोपों का समर्थन नहीं किया. इस वजह से मेरे मुवक्किल को बरी कर दिया गया.”
बलात्कारी से ही शादी करने की मजबूरी
हाल में देश के मुख्य न्यायाधीश एस ए बोबडे ने एक विवादास्पद बयान दिया.
हालांकि बाद में उन्होंने यह कहकर बचाव किया कि इसे संदर्भ से अलग कर देखा गया. लेकिन, उनके बयान ने एक पुरानी बहस को फिर से हवा दे दी.
यह सवाल बार-बार सामने आता है कि आख़िर रेप की शिकार किसी महिला को क्यों बार-बार उनके बलात्कारियों के साथ शादी करने के लिए फंसाया जाता है.
जस्टिस बोबड़े ने एक नाबालिग लड़की के रेप के आरोपी से पूछा था कि क्या वह उससे शादी करेगा.
क्रिमिनल लॉ में विशेषज्ञता रखने वाले बागपत (यूपी) के वकील विवेक चौधरी कहते हैं कि पिछले कई सालों में तमाम अदालतों ने बार-बार यह सवाल पूछा है.
हालांकि, अदालतों ने लिखित तौर पर ऐसा फ़ैसला कभी नहीं दिया, लेकिन ऐसे सवाल कर निचली अदालतों के लिए एक उदाहरण पेश कर दिया जाता है और इससे महिलाओं और उनके हक़ से जुड़ी एजेंसियों को नुकसान पहुँचता है.
ऐसे असंख्य उदाहरण हैं जब तमाम वजहों से रेप की शिकार महिलाओं को अपने बलात्कारियों से ही शादी करनी पड़ी.
सामाजिक कलंक, जाँच एजेंसियों के ढुलमुल रवैये से लेकर मौत की धमकियों समेत कई वजहें हैं, जिनसे पस्त होकर रेप की शिकार महिलाओं को अपने बलात्कारियों से शादी करने को मजबूर होना पड़ा है.
साल 2005 में यूपी में मुज़फ्फरगनर ज़िले के चरथावल गाँव में पंचायत बुलाई गई थी. पंचायत ने नूर इलाही की पत्नी इमराना को कहा था कि वह अपने पति के साथ सात महीने तक ख़ुद को ‘पाक’ बनाये और फिर अपने ससुर से शादी कर ले. दरअसल, इमराना के ससुर ने ही उसे अपनी हवस का शिकार बनाया था.
पंचायत का कहना था कि इमराना अब अपने पति के लिए हराम हो चुकी है इसलिए उसे अब अपने ससुर को ही पति के तौर पर क़बूल लेना चाहिए.
पंचायत के अनुसार नूर इलाही के साथ उसकी शादी अब मान्य नहीं है. इमराना ने एफ़आईआर दर्ज कराई और मीडिया के सामने कहा कि वह पंचायत के फ़ैसले का विरोध करती हैं और अपने पति के साथ ही रहना चाहती हैं.
शादी का झांसा और बलात्कारियों की चाल
बलात्कारी अक्सर सज़ा से बचने के लिए इस ‘शादी के झांसे’ का इस्तेमाल करते हैं.
दिल्ली के शांति मुकुंद अस्पताल में 23 साल की एक नर्स के साथ भी ऐसा ही हुआ था. उसके साथ एक वार्ड बॉय ने रेप किया. इस भयावह रेप के दौरान नर्स की एक आँख निकाल ली गई थी. दूसरी आँख में भारी चोट आई थी. यह घटना साल 2003 की है.
बाद में चारों ओर से घिर जाने के बाद बलात्कारी ने उससे शादी करने की पेशकश की थी. उसका कहना था कि सामाजिक कलंक की वजह से अब उस लड़की से कोई शादी नहीं करना चाहेगा, लिहाज़ा वो शादी करने के लिए तैयार है.
लेकिन नर्स ने इस पेशकश को ठुकराते हुए कहा था कि इस मामले में सबसे भयावह बात तो यह है कि अदालत ने इस तरह के आवेदन को मंज़ूर कर लिया है.
बाद में इस मामले में मुक़दमा चला और बलात्कारी को उम्रकैद की सज़ा मिली.
पिछले साल (2020) मध्य प्रदेश के हाई कोर्ट ने छेड़खानी के आरोपी को इस शर्त पर ज़मानत दे दी कि वो लड़की से राखी बाँधने का अनुरोध करेगा.
पिछले साल ही जुलाई में ओडिशा के हाई कोर्ट ने एक नाबालिग लड़की को उसके बलात्कार के आरोपी के साथ शादी करने का निर्देश दिया. कोर्ट का फ़ैसला आने तक लड़की बालिग हो चुकी थी.
महिला अधिकारों के लिए काम करने वाली दिल्ली की संस्था जागोरी की डायरेक्टर जयश्री वेलंकर कहती हैं कि इस तरह के प्रस्ताव देकर जैसी ढिठाई दिखाई जाती है वही अपने आप में एक अत्याचार है.
वे कहती हैं, “बलात्कार के आरोपी के साथ ही पीड़िता की शादी का क्या मतलब है? हमें इसकी पड़ताल करनी चाहिए. क्या किसी ने यह पता करने की ज़हमत उठाई कि लड़की क्या चाहती है? लोग इस तरह के हल को बड़ा प्रगतिशील क़दम मानते हैं. शादी को लेकर पुरुषों के बीच एक गहरी धारणा भी बैठी होती है. हमें इसकी पड़ताल भी करनी होगी. हर आदमी चाहता है कि उसे कुंवारी पत्नी मिले.”
वे कहती हैं, “बलात्कार की शिकार किसी महिला को उसके बलात्कारी से ही शादी करने का सुझाव देने का कोई क़ानूनी आधार नहीं है. न्यायाधीशों का काम सिर्फ़ यह फ़ैसला करना है कि यौन हमला हुआ है या नहीं. ऐसा हुआ है तो इसके सबूत क्या हैं, ताकि आरोपी को सज़ा मिल सके.”
‘अदालतें मैरिज ब्यूरो नहीं हैं’
जयश्री वेलंकर कहती हैं, “शादी का सवाल ही कहाँ उठता है? इसकी क़ानूनी मान्यता क्या है? ज़्यादातर मामलों में बलात्कारी, पीड़ित महिला का जानने वाला होता है. शादी का सुझाव देकर आप पहले पुरुषों को महिलाओं के साथ रेप करने और फिर शादी का लाइसेंस देना चाहते हैं? हमें यह मंज़ूर नहीं कि अदालतें मैरिज ब्यूरो की तरह काम करें. ऐसा करके आप महिलाओं को दूध पीती बच्चियों की तरह ट्रीट करना चाहते हैं. महिलाओं से जुड़ी एजेंसियों को बच्चा साबित करने की कोशिश पितृसत्तात्मक अधिकारों का दुरुपयोग है.”
भारत में पोक्सो एक्ट समेत बलात्कार के ख़िलाफ़ कड़े क़ानून हैं. इन क़ानूनों के तहत बलात्कारियों को मौत की सज़ा भी हो सकती है, लेकिन सिर्फ़ 27 फ़ीसदी रोपियों को ही सज़ा मिल पाती है. क्योंकि बीच में समझौतों और सुलह-सफाई का सिलसिला चल पड़ता है.
दिल्ली में रहने वाले आपराधिक मामलों के वकील श्रेय सहरावत कहते हैं, “मैंने रेप पीड़िताओं और बलात्कार के आरोपियों, दोनों के कम से कम 60 केस लड़े हैं. इनमें से कई केस में पीड़िता की शादी उनके बलात्कारियों से करा दी गई और वे बरी हो गए.”
भारत में बलात्कार के जो मामले हैं, उनमें से बड़ी तादाद में वे केस शामिल हैं जिनमें पीड़िता से बलात्कारी ने ‘शादी का वादा’ किया था.
ऐसे मामले बड़े विवादास्पद होते हैं. भले ही महिलाओं ने ऐसे अपराधों के ख़िलाफ़ मामले दर्ज़ कराये हों लेकिन इन्हें अदालत में साबित करना बड़ी टेढ़ी खीर है.
श्रेय कहते हैं, “ऐसी शादियाँ कारगर नहीं होतीं. अगर बलात्कारी को शादी ही करनी होती तो वह अदालत में क्यों होता. दरअसल यह बचने का रास्ता होता है. पीड़िता से शादी कर लो और फिर उसे छोड़ दो.”
श्रेय बताते हैं, “मैंने 2015 में ऐसा ही एक केस लड़ा था. एक महिला ने आरोप लगाया कि 2014 में उसकी मुलाक़ात मैट्रीमोनियल साइट के ज़रिये एक पुरुष से हुई थी. महिला का कहना था कि उस शख़्स ने उसके साथ बलात्कार किया था. जब उस शख़्स ने कहा कि वह महिला से शादी कर लेगा तो उसने केस वापस ले लिया. लेकिन आरोपी शख़्स पहले से ही शादीशुदा था. इसलिए दूसरी महिला से उसकी शादी मान्य होने का सवाल ही नहीं उठता.”
आरोप लगाने वाली महिला गीता (बदला हुआ नाम) ने कहा, “मैं कोर्ट नहीं गई क्योंकि कोर्ट जाना अपमानजनक था.”
दिसंबर 2014 में उसी मैट्रीमोनियल साइट पर वह एक और शख्स से मिलीं. उसने भी शादी का वादा कर उनके साथ रेप किया.
गीता उस वक़्त 30 साल की थीं. इस घटना के बाद वह कोर्ट गईं. मुक़दमा शुरू हुआ. आरोपी ने जब शादी का प्रस्ताव दिया तो गीता ने बयान बदल दिया. यह आदमी भी शादी-शुदा निकला.
उन्होंने कहा, “कुछ महीनों के बाद उसने मुझे छोड़ दिया, मेरी शादी ख़त्म हो गई. अब मैंने किसी और से शादी कर ली है और खुश हूँ. लेकिन, मेरा मानना है कि इस तरह के रेप की शिकार महिलाएं चुप ना रहें. उन्हें लड़ना चाहिए.”
महिलाओं के लिए मुक़दमा लड़ना बेहद कठिन
भारत में रेप के दो तरह के मामले होते हैं. एक तरह के मामले में ज़बरदस्ती यौन संबंध बनाया जाता है, जबकि दूसरे तरह के मामलों में ‘शादी का वादा’ कर रेप किया जाता है.
श्रेय सहरावत का कहना है कि ऐसे मामलों में महिला के लिए अदालत जाना मुश्किल होता है. वे कहते हैं, “क़ानूनी रूप से रेप साबित करना बहुत मुश्किल होता है क्योंकि यौन हमले के दौरान महिला सबूत नहीं जुटा रही होती है. इसके अलावा जाँच एजेंसियाँ भी ठीक से काम नहीं करतीं.”
वो कहते हैं कि यही कारण है कि दोषी साबित होने के मामले कम होते हैं.
कई केस दूसरी तरह के भी होते हैं. अक्सर ऐसे केस बगैर शादी के रज़ामंदी से यौन संबंध कायम करने वाले नाबालिगों के माता-पिता करते हैं, ये झूठे या फ़र्जी केस होते हैं. कुछ ही केस ऐसे होते हैं जिनमें शादी करने का वादा करने के बाद भी ज़बरदस्ती यौन संबंध बनाया गया हो.
पुलिस या अदालत रेप की शिकार महिला को उसके बलात्कारी के साथ शादी करने की जो सलाह देती है, उसका कोई डॉक्यूमेंटेशन नहीं होता. इसलिए अदालती लड़ाई में यह आरोप भी टिक नहीं पाता.
इस तरह के जिन मामलों में शादियाँ हुई हैं, उन पर कोर्ट निगरानी नहीं रखता. केस निपटा दिए जाते हैं और निधि की तरह पीड़िता को उसके साथ रहने के लिए छोड़ दिया जाता है जिसपर उसने कभी रेप करने का आरोप लगाया था.
निधि ने जिस शाम मुझे फ़ोन किया, उस दिन उन्होंने कहा कि वे बस अब यही चाहती है कि उनका बच्चा उन्हें ख़ुशी देता रहे.
निधि ने कहा, “अब मैंने दुनियादारी सीख ली है. मैं जानती हूँ कि उसने यह जताने की कोशिश की कि अब सब ठीक है. लेकिन ऐसा नहीं है. मैं अब भी ख़ुद से पूछती हूँ कि आख़िर उसने ऐसा क्यों किया? क्या इसलिए कि हम कुछ वक़्त के लिए एक रिलेशनशिप में थे. मुझे नहीं पता. लेकिन, मैंने ख़ुद को वहाँ नहीं देखना चाहा था, जहाँ मैं अब हूँ.” साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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