नंदीग्राम में सुबह-सुबह साढ़े सात बजे 19 साल की रणिता अगस्ती बूथ नंबर 76 पर वोट करने पहुँचीं. रणिता सेकंड टाइम वोटर हैं. वोट देने का बाद रणिता ने कहा कि ‘नंदीग्राम से दादा जीत रहा है’. दादा यानी शुभेंदु अधिकारी. रणिता कहती हैं कि ‘ममता मु्स्लिमपरस्त हो गई हैं’.
नंदीग्राम के चुनाव में इस बार धार्मिक लाइन पर विभाजन साफ़ दिखा. शुभेंदु अधिकारी पूरे चुनावी कैंपेन में अपनी पुरानी नेता को ‘बेगम ममता’ कहते रहे. इसे काउंटर करने के लिए ममता ने शुभेंदु को ‘मीर जाफ़र’ यानी धोखेबाज़ कहा.
दूसरी तरफ़, ममता को देखते ही जय श्रीराम का नारा लगाना भी बीजेपी की चुनावी रणनीति का हिस्सा रहा. इस लड़ाई में अगर कोई ग़ायब है तो वो है सीपएम और कांग्रेस. ऐसा लग रहा है कि लड़ाई बिल्कुल सीधी टीएमसी और बीजेपी में है.
‘ममता बेगम’, ‘मीर जाफ़र’ और ‘जय श्रीराम’ के ईर्द-गिर्द नंदीग्राम ही नहीं, बल्कि पूरे पश्चिम बंगाल का चुनाव होता दिख रहा है. नंदीग्राम में तो धर्म के आधार पर साफ़ विभाजन दिखा.
रणिता से पूछा कि क्या ममता को बेगम कहना ठीक है? इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ”इसमें कुछ भी ग़लत नहीं है. ममता नमाज़ पढ़ती हैं. अल्पसंख्यकों के वोट की राजनीति तो दीदी ने शुरू की.”
रणिता के बग़ल में खड़ीं प्रतिमा जाना कहती हैं, ”ममता को बेगम कहना चाहिए. ममता हिंदुओं का ख़्याल नहीं रखती हैं. मैंने टीवी पर देखा कि ममता केवल मुसलमानों का साथ देती हैं.
ममता के समर्थक
वहीं मुस्लिम इलाक़ों में ममता बनर्जी को लेकर एकजुटता साफ़ दिखी. शम्साबाद इलाक़े की बूथ संख्या 107 से वोट देकर जा रहीं रबिया ख़ातून से पूछा कि इस बार क्या माहौल है?
उन्होंने कहा, ”दीदी है. दीदी ने बहुत काम किया है. दीदी अच्छा है. घर, दाल, रोज़ी-रोटी सब दिया है. दीदी को तो शुभेंदु ने धोखा दिया. धोखा देने वाला हारेगा. दीदी ज़रूर से ज़रूर जीतेगी.” उनके साथ खड़ी एक महिला शरीफ़ा ख़ातून से पूछा कि दीदी को शुभेंदु अधिकारी बेगम कहते हैं. क्या आपको अच्छा लगता है ये सब. शरीफ़ा ख़ातून कहती हैं, ”हम तो मुसलमान हैं तो बुरा क्यों लगेगा. अच्छा लग रहा है. बेगम में क्या बुराई है.”
नंदीग्राम बाज़ार में एक चाय-समोसे की दुकान से एक युवा के गाने की आवाज़ आई. दुकान में गया तो कुछ युवा बैठे थे. उनमें से शब्यसाची मित्रा आरएसएस की प्रार्थना ‘नमस्ते सदा वत्सले…’ गा रहे थे. उनसे पूछा कि अभी गाने की कोई ख़ास वजह, इस पर मित्रा कहते हैं, ”कभी भी गा सकते हैं. परिवर्तन होने वाला है और प्रार्थन और गूंजेगी.” मित्रा ने भी ममता को बेगम कहने का समर्थन किया.
खिंच गई लकीर
नंदीग्राम से दो भारी-भरकम उम्मीदवारों को चुनौती दे रहीं सीपीएम की मीनाक्षी मुखर्जी भी इस बात को मानती हैं कि धर्म के आधार पर मतों का विभाजन हुआ है. मीनाक्षी ने बीबीसी से कहा, ”वोट पाने के लिए धर्म का इस्तेमाल किया गया है और लोग बँटे भी हैं. अगर इसका फ़ायदा बीजेपी को होता भी है तो नंदीग्राम की जनता को कोई फ़ायदा नहीं होने जा रहा है. 10 साल में पहली बार नंदीग्राम की जनता ने मन से वोट किया है. पहले लोग डर से वोट भी नहीं कर पाते थे.”
मीनाक्षी कहती हैं, ”ममता बहुत परेशान दिख रही हैं. सोनिया गाँधी को चिट्ठी लिख रही हैं. बूथ पर ग़ुस्से का इज़हार कर रही हैं. इससे पता चलता है कि सब कुछ ठीक नहीं है.”
मुश्किल में ममता?
पश्चिम बंगाल में चुनावी कैंपेन पर रिसर्च कर रहे कोलकाता रिसर्च ग्रुप के प्रियंकर डे भी इस बात को मानते हैं कि नंदीग्राम में धर्म के नाम पर मतों का विभाजन हुआ है. वे कहते हैं, ”मुसलमानों का वोट एकतरफ़ा ममता बनर्जी को मिला है. हिन्दू वोट किस हद तक ध्रुवीकृत हुआ है ये देखने वाली बात होगी. अगर 70 फ़ीसदी हिन्दू वोट बीजेपी को मिला होगा तो ममता को हारने से कोई नहीं बचा सकता.”
प्रियंकर कहते हैं, ”इंडियन सेकुलर फ्रंट के अब्बास सिद्दीक़ी के कारण ममता को नुक़सान होता नहीं दिख रहा है. मुसलमान बीजेपी को रोकने के लिए ममता बनर्जी को वोट करते दिख रहे हैं. इस बार मुसलमानों को लग रहा है कि सत्ता में बीजेपी आ जाएगी इसलिए एकजुट होकर ममता को वोट करना बहुत ज़रूरी है. लेकिन इसके काउंटर में अगर हिन्दुओं के बीच ध्रुवीकरण हुआ तो ममता को नुक़सान हो सकता है.”
नंदीग्राम में शुभेंदु अधिकारी से घर के सामने बसुमति पिछले आठ साल से चाय बेच रही हैं. उन्होंने कहा, ”बीजेपी की हवा तो है लेकिन दीदी भी कम नहीं है. मेरे लिए तो दीदी ही ठीक है.”
मोदी बनाम ममता
गुरुवार को ममता बनर्जी नंदीग्राम में एक बूथ पर दो घंटे तक रहीं. इस बूथ के बाहर भी जय श्रीराम के नारे लगे. भारी सुरक्षा बलों की मौजूदगी में बूथ से निकलने के बाद ममता बनर्जी ने चुनाव में धांधली को लेकर गृह मंत्री अमित शाह को घेरा और चुनाव आयोग की विश्वसनीयता पर भी सवाल उठाए. ममता ने कहा कि वो नंदीग्राम को लेकर चिंतित नहीं हैं बल्कि लोकतंत्र को लेकर चिंतित हैं.
ममता बनर्जी के इन आरोपों पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने गुरुवार को दक्षिणी 24 परगना के जयनगर में एक रैली को संबोधित करते हुए कहा, ”नंदीग्राम में जो कुछ हुआ उससे पता चलता है कि दीदी हार रही हैं. ममता दीदी को जय श्रीराम के नारे से समस्या है. यह पूरे बंगाल को पता है. दीदी को दुर्गा माँ की मूर्ति के विसर्जन से समस्या है. दीदी को अब भगवा वस्त्र से भी समस्या है. मुझे पता है कि दीदी के क़रीबी घुसपैठिए हैं.”
बीजेपी नेता और तारकेश्वर विधानसभा से बीजेपी के उम्मीदवार स्वपन दासगुप्ता, जिन्हें मुख्यमंत्री पद के दावेदार के तौर पर भी देखा जा रहा है, उनसे पूछा कि क्या बीजेपी ममता को हिन्दू बनाम मुसलमान की लड़ाई बनाकर हराने की रणनीति पर आगे बढ़ रही है.
इस सवाल के जवाब में उन्होंने कहा, ”ममता ने हिन्दुओं को दोयम दर्जे का नागरिक बना दिया था. यहाँ जय श्रीराम विरोध का नारा बन गया है. पश्चिम बंगाल में जय श्रीराम का स्लोगन उत्तर प्रदेश से अलग है. यहाँ यह प्रोटेस्ट का स्लोगन बन गया है.”
29 साल के शकील हुसैन गुरुवार को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की रैली देखने आए थे. पीएम मोदी की रैली कोलकाता के पास जयनगर में थी. रैली में आए कुछ लोगों से बात कर रहा था तो शकील हुसैन चुपचाप सुन रहे थे. जिन लोगों से बात कर रहा था वो खुलकर बीजेपी का समर्थन कर रहे थे. इनका कहना था कि केंद्र सरकार जो भी पैसे विकास के लिए भेजती है उसे टीएमसी के ‘गुंडे’ खा जाते हैं.
बातचीत ख़त्म होने के बाद शकील ने उसी भीड़ में कहा, ”मोदी की रैली में चाहे जितनी भीड़ आए वोट में तो दीदी ही जीतेगी.” शकील की बात को काटते हुए सनातन मंडल कहते हैं- ‘दो मई को देख लेना’
किसके पक्ष में आएगा नतीजा?
भीड़ से अलग हटकर शकील हुसैन से बात की. उनकी गोद में दो साल का उनका बेटा भी था. शकील से पूछा कि आपको ऐसा क्यों लगता है कि भीड़ यहाँ आ रही है और वोट दीदी को मिलेगा. शकील कहते हैं, ”सर, चुनाव को हिन्दू-मुसलमान बना दिया. कोई काम की बात नहीं कर रहा है. हम मुसलमान खुले दिमाग़ से मोदी जी की रैली में आते हैं लेकिन यहाँ लोग जय श्रीराम का नारा ज़ोर-ज़ोर से लगाने लगते हैं.”
शकील को जय श्रीराम के नारे से क्या दिक़्क़त है? इस पर शक़ील कहते हैं, ”मुझे कोई दिक़्क़त नहीं है, पर इस नारे को सुनकर लगता है कि यह हिन्दुओं के लिए रैली है और प्रधानमंत्री केवल उनके लिए आए हैं. हम मुसलमान अलग-थलग महसूस करते हैं. दीदी ठीक हैं पर उनके नेता ठीक नहीं हैं. भ्रष्टाचार भी है और उनके लोग गुंडई भी करते हैं लेकिन फिर भी बीजेपी ठीक नहीं लग रही.”
कोलकाता यूनिवर्सिटी में राजनीति विज्ञान के असिस्टेंट प्रोफ़ेसर हिमाद्री चटर्जी कहते हैं, ”टीएमसी जिस नंदीग्राम और सिंगुर के आंदोलन को लेकर सत्ता में आई वो एक बार फिर से अप्रासंगिक होता दिख रहा है. अगर धर्म के नाम पर ध्रुवीकरण हो रहा है तो इसका कारण भयानक बेरोज़गारी है. 2006 में ममता ने औद्योगिक नीतियों को लेकर एक स्टैंड लिया जो कि अब अप्रासंगिक होता जा रहा है. अब वही टीएमसी कॉन्ट्रैक्ट फ़ार्मिंग करवा रही है. यहाँ सिर्फ़ धर्म की बात नहीं है. बेरोज़गारी एक ऐसी समस्या है जो किसी न किसी रूप में खड़ी हो जाती है. यह कभी कम्युनिस्ट बनाम ग़ैर-कम्युनिस्ट के रूप में आता है तो कभी एक धर्म बनाम दूसरे धर्म के रूप में.”
हिमाद्री कहते हैं, ”टीएमसी यह चुनाव इलेक्टोरल थिंक टैंक (प्रशांत किशोर) के ज़रिए लड़ रही है जो जनता से ऑर्गेनिक रिलेशनशिप को ख़त्म कर चुका है. इलेक्टोरल थिंक टैंक डेमोक्रेसी के स्पिरिट को बदल रहा है. पॉप्युलर ओपिनियन को मैनेज किया जा रहा है. यह तरीक़ा बीजेपी का था जो अब सबको पसंद आ रहा है. अगर ममता बीजेपी को उसके तरीक़े से हराना चाहेंगी तो उन्हें जिस स्तर पर उतरना होगा वो बीजेपी और टीएमसी के फ़र्क़ को ख़त्म कर देगा”.
ममता बनर्जी के एक अहम चुनावी रणनीतिकार ने कहा कि पहले जिन्हें मुसलमान वोट करते थे वे सत्ता में आते थे लेकिन अब जिन्हें हिन्दू वोट कर रहे हैं वो सत्ता में आ रहे हैं. उन्होंने कहा कि ममता हारने के लिए 30 फ़ीसद की राजनीति नहीं करेंगी बल्कि वो जीतने के लिए 70 फ़ीसद की राजनीति करेंगी.साभार-BBC NEWS
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