काला गेहूं: मोटापा, डायबिटीज़ और अन्य बीमारियों के लिए है लाभदायक, बिकता है दुगने भाव मे: पढ़ें खेती का तरीका

पिछले दिनों बिहार के एक सुदूर ग्रामीण क्षेत्र की यात्रा सें अपने घर वापस लौट रहा था। सफर अभी बहुत लंबा था तो सोचा थोड़ा आराम कर लिया जायें। एक कस्बाई झोपड़ीनुमा टी स्टॉल पर गाड़ी की ब्रेक लगी। कुछ बुजुर्ग ,चार-पांच अधेड़ और गिनती के दो युवाओं का जमघट लगा हुआ था। बिहार में विधानसभा चुनाव होना हैं सो बात राजनीति की ही चल रही थी। अचानक चाय की गर्मी तब बढ़ गई जब एक युवा ने बड़े जोशीले अंदाज में कहा कि जात-पात छोड़कर अब बदलाव की बात होनी चाहिए।

बातों की सुई काले गेहूं पर जाकर अटक गई

इसी बदलाव की कड़ी को जोड़ते हुए एक बुजुर्ग बोल उठे ‘अरे अब तो सब कुछ बदल रहा है’ पिछले दिनों मेरे पोते ने मोबाइल पर दिखाया कि अब गेहूं भी काला हो गया है! सुनने वालो की आंखों के टेढ़ापन से मुझे लगा कि उन्हें इस बारे में और जानने की जिज्ञासा है। बुजुर्ग बाबा को जितनी जानकारी थी उससे तो यह बात चाय की अगली सीप पर खत्म हो जाती पर मेरे वहां रहने से कुछ दस मिनट तक इस पर चर्चा चली।

भारतीय सामान्य गेहूं के साथ इसका क्रॉस करा कर विकसित की गई है एक नई वैरायटी

काला गेहूं फिलहाल पूरे देश के किसानों के लिए एक कौतूहल का विषय है। पंजाब की नेशनल एग्री फूड बायो टेक्नोलॉजी इंस्टिट्यूट ने इसे 2017-2018 में विकसित किया है। इस रिसर्च को लीड करने वाली डॉ. मोनिका गर्ग बताती है कि 2010 में काले गेहूं को भारत लाई थी जिसका मूल ओरिजिन जापान है। वहां के लोग बड़े चाव से इसके दलिया और नूडल्स खाते रहे हैं। उन्होंने भारतीय सामान्य गेहूं के साथ इसका क्रॉस करा कर एक नई वैरायटी विकसित की जो भारतीय जलवायु और मिट्टी में आसानी से उत्पादित हो सके। सात साल तक चले इस रिसर्च के बाद उत्पादित इस गेहूं का नाम नाबी एमजी दिया गया है। काले गेहूं के अलावे उन्होंने बैगनी और जामुनी कलर के भी गेहूं डेवेलप किए हैं। इन गेहूं के रंग के पीछे एंथोसाइएनिन नाम का तत्व जिम्मेदार है जो कि एक नेचुरल एंटीऑक्सीडेंट है।

रंगों में ही नहीं बल्कि पौष्टिक तत्वों की मौजूदगी में भी बाकी गेहूं से बिल्कुल अलग

काला गेहूं हमारे शरीर से फ्री रेडिकल्स निकालने का काम करता है। डॉ. मोनिका गर्ग के अनुसार यह गेहूं सिर्फ रंग में ही नहीं बल्कि पौष्टिक तत्वों की मौजूदगी में भी बाकी गेहूं से बिल्कुल अलग है। समान गेहूं के वनिस्पत इसमें 60 परसेंट ज्यादा आयरन और 30 परसेंट अधिक जिंक की मौजूदगी है। समान गेहूं में जहां 5 से लेकर 10 पीपीएम तक एंटीऑक्सीडेंट होते हैं वही इस गेहूं में 140 पीपीएम तक एंटीऑक्सीडेंट की मात्रा होती है। डॉ. गर्ग ने बताया कि इसका नियमित सेवन इंसानों को लाइफस्टाइल डिसऑर्डर के कारण होने वाली बीमारियों खास करके डायबिटीज, मोटापे और हृदय रोगों से छुटकारा दिलाने में सहायक हो सकता है। इसमें पाए जाने वाले तत्व में एंटी एजिंग गुण पाए जाते हैं।

खेती लागत कमोबेश आम गेहूं की जैसा ही पर बिजाई का समय थोडा अलग है

बिहार-यूपी-एमपी सहित देश के अन्य प्रदेशों के किसान हमारी संस्था आवाज एक पहल के माध्यम से पिछले दो सालों से इसकी खेती कर रहे हैं। इसकी खेती की प्रक्रिया और लागत कमोबेश आम गेहूं की जैसा ही है। हां, इसका बिजाई का समय थोड़ा अलग है। किसान भाइयों को इसकी बिजाई 15 अक्टूबर से लेकर 30 नवंबर तक कर देनी चाहिए। बिजाई में देरी होने पर इसका रंग, गुणवत्ता और उत्पादन प्रभावित होता है। 110 से 120 दिनों में तैयार होने वाले गेहूं की इस नई वैरायटी की प्रति एकड़ पैदावार अधिकतम 20 क्विंटल तक जाता है। सामान्य गेहूं के मुकाबले के इसके बीज के दाम अधिक होते हैं पर नई वैरायटी होने कारण इसमें कोई बीमारियों का प्रभाव नहीं पड़ता जिससे किसानों को इंसेक्टिसाइड और पेस्टिसाइड का छिड़काव नहीं करना पड़ता जिससे लागत मूल्य कमोबेश समान्य गेहूं की खेती के समतुल्य ही होता है।

काले गेहूं की खेती बदल रही है किसानों की किस्मत!

इस साल इस गेहूं का बाजार भाव तकरीबन ₹6000 प्रति क्विंटल तक था। ऑनलाइन बिक्री करने वाली बहुत सारी एजेंसीया इसकी खरीदारी करतें हैं। मंडियों के अपेक्षा इनके पास बेचने से किसानों को अच्छी इनकम प्राप्त हुआ है। आम जनों में इसकी जानकारी की अभाव होने के कारण मंडियों में इसके कम खरीदार होते हैं पर ऐसी उम्मीद की जा सकती है कि जब उत्पादन और जागरूकता बढ़ेगी तो अगले कुछ सालों में लोकल मंडियों में भी अच्छे दाम मिलेंगे। फिलहाल बहुत सारी कंपनियां इसके आटे को ₹130 से लेकर ₹150 प्रति किलो तक बेच रही है।
ब्लैक गेहूं की खेती ने हजारों किसानों की किस्मत खोली है। जागरूकता के बाद इससे लाखों की संख्या में किसान लाभान्वित होंगे इसकी पूरी उम्मीद है। इसकी खेती संबंधित अन्य जानकारियों के लिए आवाज एक पहल से संपर्क कर सकते हैं।

इस कहानी को लव-कुश ने लिखा है ! लवकुश बिहार से सम्बद्ध रखते हैं, जो खेती से जुड़े सैकड़ों से भी अधिक फसलों पर शोध कार्य करने के साथ ही अनेकों तरह से किसानों की मदद करते हैं !साभार-दी लॉजिकली

अधिक जानकारी के लिए यहां सम्पर्क करें: कांटेक्ट नंबर: 9470012945/8210729673/7070571989

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