पश्चिमी उत्तर प्रदेश में किसानों के निशाने पर बीजेपी के जाट नेता

कृषि क़ानूनों के बारे में किसानों को समझाने की क़वायद पश्चिमी उत्तर प्रदेश के स्थानीय बीजेपी नेताओं को भारी पड़ रही है. किसानों का कहना है कि बीजेपी नेताओं को गाँवों में जाकर नहीं, बल्कि संसद में समझाना चाहिए, क्योंकि क़ानून वहीं बनते हैं.

पश्चिमी यूपी के शामली ज़िले के लिलोन गाँव के किसान और कालखंडे खाप के प्रधान चौधरी संजय बाबा कहते हैं, “हम तो पहले से ही समझ रहे हैं कि क़ानून किसी काम के नहीं हैं. जब 18 संशोधन करने को सरकार ही तैयार है और इसकी गड़बड़ी को बीजेपी के बड़े नेता समझ चुके हैं, तो ये छोटे नेता हमें समझाने क्यों आ रहे हैं. ये कह रहे हैं कि हमें विपक्ष ने बहकाया है, लेकिन सच्चाई तो यह है कि प्रधानमंत्री मोदी को ही कुछ दो-चार लोगों ने बहका रखा है और उन्हें सही जानकारी नहीं दे रहे हैं. बीजेपी को और सरकार को कुछ चंद आदमी ही चला रहे हैं और उन्होंने ही प्रधानमंत्री को गुमराह कर रखा है.”

दरअसल, कृषि क़ानूनों पर सरकार और किसानों के बीच चल रहा द्वंद्व अब दिल्ली की सीमाओं से गाँवों की ओर भी पहुँचने लगा है. बीजेपी सरकार अपने स्थानीय जन प्रतिनिधियों को किसानों के पास इस मक़सद से भेज रही है कि शायद वो इन क़ानूनों की ख़ूबियाँ उन्हें समझा सकें.

लेकिन किसान उनका यह कहकर बहिष्कार कर रहे हैं कि पहले इस्तीफ़ा दो, तब हमारे पास आओ.

बीजेपी नेताओं का बहिष्कार

इन इलाक़ों में किसानों ने बीजेपी के नेताओं का बहिष्कार रखा है, अपने यहाँ शादियों इत्यादि में भी उन्हें नहीं बुला रहे हैं. संजय बाबा कहते हैं कि हम लोगों ने साफ़तौर पर कह रखा है कि जाकर हमारी बात सरकार तक पहुँचाओ और जब क़ानून वापस हो जाएँ, तभी हमारे गाँव आना.

किसानों और खाप चौधरियों से बातचीत करने मुज़फ़्फ़रनगर और शामली ज़िले के कई गाँवों में संजीव बालियान और बीजेपी के दूसरे नेताओं को किसानों की ख़ासी नाराज़गी झेलनी पड़ी.

शामली ज़िले के लिलोन गाँव में तो खाप चौधरियों ने मिलने से ही मना कर दिया, जबकि भैंसवाल गाँव में उन लोगों को जाने ही नहीं दिया गया और उनके ख़िलाफ़ ‘मुर्दाबाद’ के नारे लगाए गए. संजीव बालियान के साथ यूपी के पंचायती राज मंत्री भूपेंद्र चौधरी, बुढ़ाना से बीजेपी विधायक उमेश मलिक, शामली विधायक तेजेंद्र निर्वाल और प्रसन्न चौधरी भी थे.

यही नहीं, सोमवार को तो मुज़फ़्फ़रनगर में संजीव बालियान के काफ़िले के साथ किसानों का हिंसक टकराव भी हो गया, जिसमें कई लोग घायल हो गए. मुज़फ़्फ़रनगर के शोरम गाँव में मुज़फ़्फ़रनगर से बीजेपी सांसद संजीव बालियान किसी तेरहवीं की रस्म में शामिल होने पहुँचे थे, लेकिन कुछ लोगों ने उनके ख़िलाफ़ नारेबाज़ी शुरू कर दी.

दोनों पक्षों में लाठी-डंडे चलने लगे. बाद में किसान यूनियन और राष्ट्रीय लोकदल के सैकड़ों कार्यकर्ताओं ने शाहपुर थाने को घेर लिया. संजीव बालियान के ख़िलाफ़ एफ़आईआर की तहरीर लेने के बाद ही शांति-व्यवस्था क़ायम हुई. हालाँकि एफ़आईआर अब तक नहीं लिखी गई है.

शामली ज़िले के भैंसवाल गाँव में विरोध के बाद संजीव बालियान ने कहा, “दस-बीस लोगों के विरोध के चलते मुर्दाबाद नहीं होता. मैं किसानों के बीच जाता रहूँगा. ज़्यादातर किसान हमारी बात सुन रहे हैं. केवल कुछ ही लोग राजनीति और विपक्ष के बहकावे में आकर विरोध कर रहे हैं.”

चुनाव पर असर

लेकिन शामली ज़िला पंचायत की निवर्तमान अध्यक्ष संतोष कुमारी के पति और बीजेपी नेता प्रसन्न चौधरी यह मानते हैं कि किसान क़ानूनों को लेकर किसानों में, ख़ासकर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बीजेपी सरकार के ख़िलाफ़ नाराज़गी है और चुनावों में भी इसका नुक़सान उठाना पड़ सकता है.

बीबीसी से बातचीत में प्रसन्न चौधरी कहते हैं, “जब किसान आंदोलनरत हो गया है, तो उसे समझाना बड़ा मुश्किल है. हम कोशिश कर रहे हैं, लेकिन हमें ये भी समझना होगा कि किसानों की बात सुनकर उसमें कुछ संशोधन करना चाहिए. कई क्लॉज इस क़ानून के ग़लत हैं, उन्हें ठीक करना होगा.”

प्रसन्न चौधरी साफ़तौर पर कहते हैं कि अगर किसानों की बात नहीं सुनी गई, तो निश्चित तौर पर पार्टी को नुक़सान होगा, क्योंकि किसान वास्तव में नाराज़ हैं.

प्रसन्न चौधरी कहते हैं, “जो जैसा करेगा, वैसा भरेगा. गन्ने की क़ीमतों को लेकर भी किसान नाराज़ हैं और क़ानून से भी. हमारे मंत्री जी ने क़ीमत बढ़वाने के लिए कहा है. अगर ऐसा होता है तो ठीक है, नहीं तो किसानों की नाराज़गी का नुक़सान तो उठाना ही पड़ेगा.”

उत्तर प्रदेश में विधानसभा चुनाव अगले साल होने हैं, लेकिन उससे पहले पंचायत चुनाव होने हैं. पंचायत चुनाव यूँ तो पिछले साल नवंबर में ही होने थे, लेकिन कोविड प्रोटोकॉल की वजह से उन्हें छह महीने आगे कर दिया गया है. ऐसे में अब इनके मार्च-अप्रैल में होने की संभावना है. सिर्फ़ पश्चिमी यूपी की ही बात करें, तो यहाँ क़रीब 26 ज़िला पंचायतों के ज़्यादातर अध्यक्ष बीजेपी समर्थित लोग ही हैं. ब्लॉक स्तर पर भी लगभग यही स्थिति है.

‘जनप्रतिनिधि वाला धर्म’

पिछले दिनों पंजाब में हुए निकाय चुनावों में जिस तरीक़े से बीजेपी और अकाली दल को मुँह की खानी पड़ी, ज़ाहिर है, बीजेपी उससे चिंतित है.

शामली में स्थानीय पत्रकार शरद मलिक कहते हैं, “साल 2013 के बाद पश्चिमी यूपी में बीजेपी को जिस तरह से समर्थन मिला, वह भी जाटों और खाप पंचायतों का, उसका राजनीतिक लाभ किसी से छिपा नहीं है. लोकसभा और विधान सभा में तो उसने इकतरफ़ा जीत हासिल की ही, स्थानीय निकाय चुनावों में भी यही हाल रहा है. अब यही जाट समुदाय बुरी तरह से उसके ख़िलाफ़ हो गया है, तो पार्टी को अपने राजनीतिक नुक़सान का भी अंदाज़ा हो रहा होगा. बीजेपी के नेता अपने राष्ट्रीय नेताओं के दबाव में भले ही आ गए हों, लेकिन जबसे किसान आंदोलन शुरू हुआ है, तब से वो अपने क्षेत्र में इसी विरोध के चलते आ भी नहीं रहे थे.”

मुज़फ़्फ़रनगर में सर्वखाप मंत्री सुभाष बालियान कहते हैं कि नेताओं का विरोध इसलिए हो रहा है कि वो हमारी नाराज़गी को सरकार तक पहुँचा नहीं रहे हैं. संजीव बालियान रविवार को सुभाष बालियान से भी मिलने आए थे.

सुभाष बालियान कहते हैं, “हमारे क्षेत्र के नेता हैं, हमने उन्हें जन प्रतिनिधि बनाया है, घर आएँगे, तो स्वागत करेंगे लेकिन उन्हें भी अपना जनप्रतिनिधि वाला धर्म निभाना चाहिए. नहीं निभाएँगे, तो ख़ुद ही पता चल जाएगा. ये ग़लतफ़हमी निकाल दें कि 10-20 किसान आंदोलन कर रहे हैं. हमारे इलाक़े का हर किसान क़ानून का विरोध कर रहा है, इसमें कोई संदेह नहीं है.”

कृषि क़ानून के विरोध में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के विभिन्न इलाक़ों में किसान यूनियन की पंचायतों के अलावा राजनीतिक दलों की पंचायतों ने भी बीजेपी की बेचैनी बढ़ा दी है. ख़ासकर, 28 जनवरी को राकेश टिकैत के आंसुओं ने इस आंदोलन की धारा को जिस तरह से पैना किया है, उससे भी पार्टी परेशान है.

किसान आंदोलन को राष्ट्रीय लोकदल का समर्थन तो मिल ही रहा है, कांग्रेस और समाजवादी पार्टी के अलावा आम आदमी पार्टी भी समर्थन दे रही है. कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी की इस इलाक़े में सक्रियता और किसान पंचायतों में भागीदारी भी राजनीतिक गर्मी बढ़ा रही है.

जाट-मुस्लिम एकता दोबारा क़ायम

हालाँकि जानकारों के मुताबिक, बीजेपी को सबसे ज़्यादा हैरानी किसान यूनियन के राष्ट्रीय लोकदल के क़रीब आने और जाट-मुस्लिम एकता के दोबारा क़ायम होने से है.

शरद मलिक बताते हैं, “जाट तो वैसे भी लोकदल और अजीत सिंह के ही साथ थे. 2013 में कुछ बीजेपी के साथ चले गए. लेकिन मुज़फ़्फ़रनगर में 29 जनवरी की पंचायत के बाद काफ़ी कुछ बदल चुका है. बीजेपी का हैरान होना, अकारण नहीं है. स्थानीय नेता कुछ भी कहें, लेकिन अंदर से वो ख़ुद परेशान हैं.”

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सरकार से किसानों की नाराज़गी की वजह सिर्फ़ कृषि क़ानून ही नहीं, बल्कि उनके विरोध के दौरान किसानों के ख़िलाफ़ की गईं प्रशासन की कथित कार्रवाइयाँ भी हैं.

भैंसवाल गाँव के रहने वाले सतपाल मूँछ कहते हैं, “छह साल से राकेश टिकैत और नरेश टिकैत बीजेपी के साथ रहे, तो वो बहुत अच्छे थे. तीन महीने से ख़िलाफ़ हो गए, तो उनके ख़िलाफ़ दनादन मुक़दमे लाद दिए गए. हम किसानों को ट्रैक्टर लेकर जाने पर चालान किया जा रहा है, नोटिस दिए जा रहे हैं, जाटों को और किसानों को देशविरोधी बताया जा रहा है.”

भैंसवाल गाँव के ही रहने वाले बटेश्वर खाप के चौधरी सूरजमल काफ़ी बुज़ुर्ग हैं.

बीजेपी के नेताओं का जो विरोध हो रहा है, उससे वो आहत हैं. लेकिन साफ़तौर पर कहते हैं कि वो युवाओं की नाराज़गी को रोक नहीं सकते.

चौधरी सूरजमल कहते हैं, “इस सरकार से अब सब लोग नाराज़ हैं. बच्चों ने उन्हें आने नहीं दिया, गाँव में नहीं घुसने दिया. ये लोग किसानों की बात नहीं समझ पा रहे हैं, तो हमें समझाने क्या आ रहे हैं. हमने तो कह दिया कि इस्तीफ़ा देकर आओ.”

दिलचस्प बात यह भी है कि इन इलाक़ों के किसान, जो कृषि क़ानूनों का विरोध करते-करते, पूरी तरह से केंद्र और राज्य सरकार के विरोध में उतर आए हैं, अपने ग़ुस्से का इज़हार करते वक़्त यह बताना नहीं भूलते कि ‘हम लोगों ने ही इन्हें जिताया है और हम सबने इन्हें वोट दिया है.’साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी

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