पश्चिम बंगाल में चुनावों से ठीक पहले पुराने साथी क्यों छोड़ रहे हैं ममता का हाथ? जानिए 5 कारण

पश्चिम बंगाल में विधानसभा चुनाव की तारीखों का ऐलान अगले कुछ दिनों में हो सकता है। इससे पहले मुख्यमंत्री ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस (TMC) के नेताओं में भगदड़ मची है। ममता के साथ TMC बनाने में प्रमुख भूमिका निभाने वाले मुकुल रॉय 2017 में अलग होकर भाजपा में गए थे। लेकिन अब तो जैसे सिलसिला ही शुरू हो गया है। पिछले कुछ महीनों में शुभेंदु अधिकारी, राजीब बनर्जी और वैशाली डालमिया समेत कई बड़े जमीनी नेता ममता का हाथ छोड़कर भारतीय जनता पार्टी में शामिल हो चुके हैं।

TMC नेताओं में अचानक मची भगदड़ का कारण कोई भाजपा के पक्ष में चल रही हवा बता रहा है तो कोई ममता के भतीजे अभिषेक का बढ़ा हुआ हस्तक्षेप। वहीं, पोल मैनेजमेंट गुरु प्रशांत किशोर की बंगाल में एंट्री को भी एक कारण बताया जा रहा है। हमने पश्चिम बंगाल की राजनीति पर पिछले कुछ दशकों से करीबी नजर रख रहे राजनीतिक पंडितों से बात की और इसे समझने की कोशिश की। पांच कारण निकलकर सामने आए, जो इस प्रकार हैं-

1. ममता के भतीजे अभिषेक का बढ़ता कद
2017 में मुकुल रॉय तृणमूल छोड़कर भाजपा में शामिल हुए। कई वर्षों तक वह पार्टी में नंबर दो रहे, लेकिन जब ममता के भतीजे अभिषेक का दखल बढ़ा तो मुकुल का पार्टी में कद कम होने लगा। करोड़ों रुपए के शारदा स्कैम में वह आरोपों से घिरे तो गिरफ्तारी की तलवार लटकने लगी। भाजपा में पहुंचने के बाद से सबकुछ शांत है।

बंगाल के कुछ अंग्रेजी अखबारों में पॉलिटिकल रिपोर्टिंग कर चुके वरिष्ठ पत्रकार स्निग्धेंदु भट्टाचार्य का कहना है कि पार्टी में अभिषेक का राइज इन पुराने नेताओं को नहीं सुहाया। उन्हें लगा कि कोई जूनियर उन्हें पार्टी के मामलों में कैसे डिक्टेट कर सकता है। स्निग्धेंदु ने 2019 के लोकसभा चुनावों के बाद ‘मिशन बंगालः अ सैफ्रॉन एक्सपेरिमेंट’ किताब में भाजपा के राइज को बताया है। उनका यह भी कहना है कि ममता वह गलतियां करने से बच रही हैं, जो उन्होंने 2019 के लोकसभा चुनावों में की है। अब वह सिर्फ अपनी सरकार की उपलब्धियां गिना रही हैं। भाजपा के बिछाए जाल में नहीं फंसने वाली।

2. प्रशांत किशोर की बंगाल में एंट्री
2014 के लोकसभा चुनावों में नरेंद्र मोदी के रणनीतिकार रहे प्रशांत किशोर इस समय तृणमूल कांग्रेस के लिए स्ट्रैटजी बना रहे हैं। उनके कामकाज का तरीका कई लोगों को रास नहीं आ रहा। दिनेश त्रिवेदी ने पार्टी और राज्यसभा से इस्तीफे की घोषणा बजट पर चर्चा के दौरान की तो उनका निशाना ‘कॉर्पोरेट कल्चर’ के बहाने प्रशांत किशोर पर ही था। वरिष्ठ पत्रकार दीप हलदर का कहना है कि प्रशांत किशोर की टीम ने आते ही TMC के नेताओं को फॉर्म थमा दिया। पूछा कि वे अपने क्षेत्रों में किस-किससे मिलते हैं? क्या करते हैं? उनके साथ कितने लोग हैं? यह पुराने नेताओं को जरा भी पसंद नहीं आया। इस वजह से वे पार्टी में घुटन महसूस कर रहे थे।

3. भाजपा का बंगाल में बढ़ता असर
भाजपा बंगाल में एक बड़ी ताकत के तौर पर उभरी है और वह ही TMC के विकल्प के तौर पर दिख रही है। 2017 के स्थानीय निकाय और 2018 के पंचायत चुनावों के बाद से भाजपा बंगाल में TMC की मुख्य प्रतिद्वंद्वी के तौर पर सामने आई है। 2019 के लोकसभा चुनावों में तो नतीजे पूरी तरह से भाजपा के फेवर में थे। TMC ने 22, BJP ने 18 और कांग्रेस ने 2 सीटें जीती थीं। तीन दशकों से ज्यादा वक्त तक सत्ता में रहने वाला लेफ्ट एक भी सीट नहीं जीत सका था। TMC ने 43% वोट हासिल किए, जबकि BJP ने 40%, जबकि कांग्रेस-लेफ्ट मिलकर 13% से भी ज्यादा वोट हासिल नहीं कर सके।

दीप हलदर ने चुनावों से पहले पूरे राज्य में घूम-घूमकर डायरी की शक्ल में किताब लिखी है- ‘बंगाल 2021’। इसमें उन्होंने ग्राउंड सिचुएशन की स्टडी की है। उनका कहना है कि इस बात से कोई इंकार नहीं कर सकता कि राज्य में भाजपा बड़ी ताकत बनकर उभरी है। लंबे समय तक बंगाल की पॉलिटिक्स पर लिख रहे रॉबिन रॉय कहते हैं कि 2011 में जब ममता ने लेफ्ट का गढ़ ध्वस्त किया था, तब उन्हें बांग्ला फिल्म इंडस्ट्री का साथ मिला था। आज ये कलाकार BJP के साथ खड़े दिखाई दे रहे हैं।

4. ममता की पार्टी पर कमजोर होती पकड़
पिछले कुछ समय से TMC की डे-टु-डे फंक्शनिंग से ममता पूरी तरह से दूर हैं। उनके भतीजे अभिषेक भले ही TMC के नेशनल यूथ प्रेसिडेंट हैं, लेकिन पूरी पार्टी को वह ही चला रहे हैं। ममता का फोकस पूरी तरह से सरकार पर है। स्निग्धेंदु कहते हैं कि ममता अब तक इलेक्शन मोड में नहीं दिखी हैं। BJP की चुनौती को भी ज्यादा महत्व नहीं दे रही हैं। एक अन्य वरिष्ठ पत्रकार ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि ममता की ग्राउंड लेवल पर पकड़ ढीली हुई है। अभिषेक और प्रशांत किशोर मिलकर जो तय करते हैं, वह ही हो रहा है। इसका असर यह हुआ कि दिल्ली में कांग्रेस में जो सोनिया-राहुल के साथ हुआ, वह बंगाल में ममता-अभिषेक के साथ हो रहा है। पार्टी के बड़े नेता नाराज हैं और यह उनके पार्टी छोड़ने का बड़ा कारण है।

5. धार्मिक आधार पर हो रहा पोलराइजेशन
सरस्वती पूजा का मामला हो या जय श्री राम कहने का, बंगाल में धार्मिक आधार पर पोलराइजेशन हो गया है। 2019 के लोकसभा चुनावों के नतीजे इसका सीधा-सीधा सबूत हैं। एक वरिष्ठ पत्रकार का दावा है कि मुस्लिम अपीजमेंट की पॉलिसी का TMC को सीधे-सीधे नुकसान हुआ है। वहीं, स्निग्धेंदु और दीप हलदर, दोनों ही स्वीकार करते हैं कि जमीन पर धार्मिक आधार पर पोलराइजेशन स्पष्ट तौर पर दिख रहा है। इतना ही नहीं, संघ परिवार के अन्य संगठनों के साथ-साथ भाजपा के नेता भी इस मुद्दे को तूल देने में कोई कोताही नहीं बरत रहे। अगर AIMIM के असदुद्दीन ओवैसी बिहार से सटे सीमांचल में मुस्लिम वोटर्स काटने में कामयाब रहते हैं तो ममता के लिए दिक्कतें बढ़ेंगी।

TMC में मची भगदड़ का लाभ किसे मिलेगा?
राजनीतिक बहस में एक बड़ा सवाल यह है कि क्या TMC में मची भगदड़ को BJP भुना पाएगी? जवाब किसी के पास नहीं है। स्निग्धेंदु कहते हैं कि जो नेता छोड़कर गए हैं, उससे TMC पर कोई बड़ा असर नहीं पड़ने वाला। पार्टी इसके लिए पहले से तैयार थी। जो लोग गए हैं, उनमें से कुछ का ही अपने-अपने क्षेत्रों में असर है। हालांकि दीप हलदर उनसे इत्तेफाक नहीं रखते। उनका कहना है कि मौजूदा परिस्थितियां BJP के फेवर में हैं। चुनावी नतीजे क्या आएंगे, यह अभी कहना मुश्किल है, लेकिन यह कहा जा सकता है कि इस बार बंगाल में कमल खिल सकता है।

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