कई बीमारियाँ जिन्हें तीन दशक पहले जानलेवा समझा जाता था, वो वैक्सीन की वजह से लगभग ख़त्म हो गई हैं
कोरोना महामारी पर नियंत्रण के लिए दुनिया के कई देशों में टीकाकरण अभियान शुरू हो चुके हैं.
इससे जुड़ी सूचनाएं और सुझाव कई बार आपको पेचीदा लग सकते हैं, लेकिन कुछ बुनियादी तथ्य हैं जो आपकी यह समझने में मदद करेंगे कि एक वैक्सीन आख़िर काम कैसे करती हैं.
वैक्सीन क्या है?
एक वैक्सीन आपके शरीर को किसी बीमारी, वायरस या संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार करती है.
वैक्सीन में किसी जीव के कुछ कमज़ोर या निष्क्रिय अंश होते हैं जो बीमारी का कारण बनते हैं.
ये शरीर के ‘इम्यून सिस्टम’ यानी प्रतिरक्षा प्रणाली को संक्रमण (आक्रमणकारी वायरस) की पहचान करने के लिए प्रेरित करते हैं और उनके ख़िलाफ़ शरीर में एंटीबॉडी बनाते हैं जो बाहरी हमले से लड़ने में हमारे शरीर की मदद करती हैं.
वैक्सीन लगने का नकारात्मक असर कम ही लोगों पर होता है, लेकिन कुछ लोगों को इसके साइड इफ़ेक्ट्स का सामना करना पड़ सकता है. हल्का बुख़ार या ख़ारिश होना, इससे सामान्य दुष्प्रभाव हैं.
वैक्सीन लगने के कुछ वक़्त बाद ही आप उस बीमारी से लड़ने की इम्यूनिटी विकसित कर लेते हैं.
अमेरिका के सेंटर ऑफ़ डिज़ीज़ कंट्रोल एंड प्रिवेंशन (सीडीसी) का कहना है कि वैक्सीन बहुत ज़्यादा शक्तिशाली होती हैं क्योंकि ये अधिकांश दवाओं के विपरीत, किसी बीमारी का इलाज नहीं करतीं, बल्कि उन्हें होने से रोकती हैं.
वैक्सीन आपके शरीर को किसी बीमारी, वायरस या संक्रमण से लड़ने के लिए तैयार करती है
क्या वैक्सीन सुरक्षित हैं?
वैक्सीन का एक प्रारंभिक रूप चीन के वैज्ञानिकों ने 10वीं शताब्दी में खोज लिया था.
लेकिन 1796 में एडवर्ड जेनर ने पाया कि चेचक के हल्के संक्रमण की एक डोज़ चेचक के गंभीर संक्रमण से सुरक्षा दे रही है.
उन्होंने इस पर और अध्ययन किया. उन्होंने अपने इस सिद्धांत का परीक्षण भी किया और उनके निष्कर्षों को दो साल बाद प्रकाशित किया गया.
तभी ‘वैक्सीन’ शब्द की उत्पत्ति हुई. वैक्सीन को लैटिन भाषा के ‘Vacca’ से गढ़ा गया जिसका अर्थ गाय होता है.
वैक्सीन को आधुनिक दुनिया की सबसे बड़ी चिकित्सकीय उपलब्धियों में से एक माना जाता है. विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार, वैक्सीन की वजह से हर साल क़रीब बीस से तीस लाख लोगों की जान बच पाती है.
सीडीसी का कहना है कि बाज़ार में लाये जाने से पहले वैक्सीन की गंभीरता से जाँच की जाती है. पहले प्रयोगशालाओं में और फिर जानवरों पर इनका परीक्षण किया जाता है. उसके बाद ही मनुष्यों पर वैक्सीन का ट्रायल होता है.
अधिकांश देशों में स्थानीय दवा नियामकों से अनुमति मिलने के बाद ही लोगों को वैक्सीन लगाई जाती हैं.
टीकाकरण में कुछ जोखिम ज़रूर हैं, लेकिन सभी दवाओं की ही तरह, इसके फ़ायदों के सामने वो कुछ भी नहीं.
उदाहरण के लिए, बचपन की कुछ बीमारियाँ जो एक पीढ़ी पहले तक बहुत सामान्य थीं, वैक्सीन के कारण तेज़ी से लुप्त हो गई हैं.
चेचक जिसने लाखों लोगों की जान ली, वो अब पूरी तरह ख़त्म हो गयी है.
लेकिन सफ़लता प्राप्त करने में अक्सर दशकों लग जाते हैं. वैश्विक टीकाकरण अभियान शुरू होने के लगभग 30 साल बाद अफ़्रीका को अकेला पोलियो मुक्त देश घोषित किया गया. यह बहुत लंबा समय है.
विशेषज्ञों ने चेतावनी दी है कि कोविड-19 के ख़िलाफ़ पूरी दुनिया में पर्याप्त टीकाकरण करने में महीनों या संभवतः वर्षों का समय लग सकता है, जिसके बाद ही हम सामान्य स्थिति में लौट सकेंगे.साभार-बीबीसी न्यूज़ हिंदी
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