गाजियाबाद,सरकारी स्कूलों में ऑडिट के नाम पर उगाही का खेल

गाजियाबाद। बेसिक शिक्षा विभाग के प्राथमिक, उच्च प्राथमिक एवं कंपोजिट विद्यालयों में होने वाले खर्च पर ऑडिट के नाम पर शिक्षकों से अवैध उगाही की जा रही है। प्रत्येक स्कूल से 400 रुपये की वसूली हो रही है। स्कूल के प्रधानाध्यापक 400 रुपये एकत्रित करके ऑडिट टीम को उपलब्ध करा रहे हैं। इतना ही नहीं बीआरसी पर होने वाला ऑडिट चोरी छुपाने के लिए डासना क्षेत्र के एक स्कूल में बैठकर किया जा रहा है। रुपये मिलने के बाद आंख बंद कर रजिस्टर पर हस्ताक्षर कर दिए जाते हैं। उसमें यह भी चेक नहीं किया जाता है कि शिक्षकों ने कराया काम सही है या गलत। उन्होंने गलत तरीके से रिपोर्ट तैयार की है तो वह गलत रिपोर्ट ही सही हो जाएगी। अमर उजाला से बातचीत में शिक्षकों ने अवैध उगाही के खेल का खुलासा किया है।

परिषदीय स्कूलों में निर्माण कार्य एवं अन्य सामग्री के लिए प्रत्येक वर्ष छात्र संख्या के आधार पर कंपोजिट ग्रांट आती है। विद्यालय में 100 बच्चों की संख्या होने पर 50 हजार रुपये, 250 छात्र-छात्राओं पर 75 हजार और 350 से ऊपर संख्या होने पर एक लाख रुपये से अधिक ग्रांट दी जाती है। छात्र संख्या के आधार पर यह ग्रांट बढ़ती रहती है। स्कूल इस ग्रांट को कैसे खर्च करते हैं। वर्ष के अंत में उसका ऑडिट किया जाता है। ऑडिट टीम आती हैं और शिक्षकों द्वारा कराए गए निर्माण कार्य एवं अन्य सामग्री पर खर्च किए गए पैसे को गलत दर्शा देते हैं। शिक्षकों को कार्रवाई का डर दिखाया जाता है, इसके बाद उनसे पैसे की डिमांड की जाती है। शिक्षक डर के कारण आपस में पैसे एकत्रित करके ऑडिट टीम को उपलब्ध करा देते हैं।

मंगलवार को रजापुर ब्लाक में 400 रुपये की वसूली की गई है। 70 स्कूलों ने पैसा दिया है। इस तरह की उगाही चार विकास क्षेत्र एवं एक नगर क्षेत्र में भी की जाती है। शिक्षकों ने बताया कि उन्होंने कई बार शिक्षा विभाग के अधिकारियों से शिकायत की है, लेकिन वह कार्रवाई का आश्वासन देकर शांत बैठ जाते हैं। इस कारण ऑडिट टीम को प्रत्येक वर्ष पैसा देना पड़ता है।

वर्ष में दो से तीन बार करते हैं ऑडिट
शिक्षकों ने आरोप लगाया कि कई बार वर्ष में दो से तीन बार अन्य मामलों का ऑडिट किया जाता है। प्रत्येक ऑडिट पर ही अवैध तरीके से रुपये वसूले जाते हैं। शिक्षक कब तक पैसा देगा। शिक्षक पर इस तरह से दबाव बनाया जाता है कि वह सही होने के बाद भी कुछ नहीं बोल पता है। कम रकम होने के कारण कोई विरोध भी नहीं कर पाता है। इसलिए लगातार स्थिति खराब होती जा रही है।

इस पर खर्च होती है कंपोजिट ग्रांट
शिक्षकों ने बताया कि कंपोजिट ग्रांट का जो भी पैसा आता है, उसे विद्यालय की स्वच्छता, रंगाई-पुताई, कुर्सी-मेज, स्कूल की स्टेशनरी व अन्य कार्यों पर खर्च किया जाता है। अगर उन्हें रुपये नहीं दिए जाते हैं तो वह सही निर्माण कार्य एवं रंगाई पुताई में भी गड़बड़ी निकाल देते हैं। उसके बाद शिक्षकों को सरेंडर होना पड़ता है। क्योंकि उनकी तकनीकी जानकारियां नहीं होती हैं।

अधिकारियों को बचाने के लिए बीआरसी पर नहीं होता ऑडिट
प्रत्येक ब्लाक का ऑडिट बीआरसी पर किया जाता है। संबंधित क्षेत्र के स्कूल बीआरसी पर पहुंच जाती हैं, लेकिन अधिकारियों को बचाने के लिए वह ऑडिट स्कूल में किया जाता है। जिससे विरोध होगा तो मामला स्कूल तक ही सीमित होकर रह जाएगा। बीआरसी पर पैसे का लेनदेन नहीं हो पाएगा। क्योंकि वहां तमाम लोग विभिन्न कार्यों को लेकर आते रहते हैं। अगर उन्हें अवैध उगाही की जानकारी होगी तो विरोध हो सकता है। प्लानिंग के साथ कार्य किया जाता है।

गलत तरीके से बनी रिपोर्ट भी हो जाती है सही
शिक्षकों का कहना है कि कुछ स्कूलों की रिपोर्ट गलत होती है, लेकिन पैसे मिलने के बाद उसे भी ठीक कर दिया जाता है। इस कारण कुछ स्कूलों की रिपोर्ट भी सही नहीं होती है। यदि ऑडिट के बाद जांच हो जाए तो शिक्षकों के साथ ऑडिट टीम के सामने भी दिक्कत खड़ी हो जाएगी, लेकिन ऐसा होता नहीं है।साभार-अमर उजाला

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