रामकृष्ण परमहंस ने स्वामी विवेकानंद को समझाया था मौन का महत्व, स्वामीजी बहुत कम बोलते थे, लेकिन उनकी बात का असर काफी अधिक होता था
कहानी- विवेकानंद कम बोले, लेकिन इतना अच्छा बोले कि पूरी दुनिया पर छा गए थे। स्वामीजी के गुरु रामकृष्ण परमहंस इतने अच्छा वक्ता नहीं थे। उनके मन में जो आता था, वह बोल देते थे। परमहंसजी को समाधि बहुत गहरी लगती थी इसीलिए उनका मौन बहुत प्रभावशाली था।
गुरु के रूप में उन्होंने अपना मौन स्वामी विवेकानंद को दिया था और स्वामीजी के माध्यम से परमहंसजी का मौन मुखर होकर निकला। जब विवेकानंदजी पहली बार अमेरिका गए, तब भारत का दृश्य ये था कि 1857 का स्वतंत्रता संग्राम विफल हो गया था। झांसी की रानी शहीद हो गई थीं। तात्या टोपे को फांसी हो चुकी थी। बहादुर शाह जफर कैद हो गए थे। हजारों भारतीय मौत के घाट उतार दिए गए थे। पराजय और अपमान की वजह से भारतीयों में हीन भावना थी।
उस समय में विवेकानंद ने अमेरिका की धरती से पूरे विश्व में भारत को सम्मान दिलाया था। सबसे अधिक उनकी वाणी प्रभावशाली थी। युवा संन्यासी ने वाणी के माध्यम से भारत के अध्यात्म को दुनिया में परिचित कराया था। शिकागो में जब उन्होंने भाषण दिया था, उसकी अवधि थी सिर्फ चार मिनट। करीब सात हजार श्रोता सामने बैठे थे।
स्वामीजी के चार मिनट के भाषण को सुनकर लगातार दो मिनट तक तालियां बजी थीं। जब किसी ने विवेकानंदजी से पूछा कि आपने ये कमाल कैसे किया? तब उन्होंने कहा, ‘मेरे गुरु ने समाधि, मेडिटेशन के माध्यम से जो मौन साधा था, वही मौन मुझे दिया और मैंने उस मौन को मुखर किया है। ये सब उसी मौन का प्रभाव है।’
सीख- हम दिनभर में चाहे कितने भी व्यस्त रहें, लेकिन थोड़ा समय मेडिटेशन के लिए जरूर निकालना चाहिए। ध्यान से मानसिक तनाव दूर होता है। कुछ देर मौन रखें। ज्यादा बोलने वाले लोगों के शब्दों का प्रभाव खत्म हो जाता है। जितना जरूरी हो, उतना ही बोलना चाहिए।साभार-दैनिक भास्कर
आपका साथ – इन खबरों के बारे आपकी क्या राय है। हमें फेसबुक पर कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं। शहर से लेकर देश तक की ताजा खबरें व वीडियो देखने लिए हमारे इस फेसबुक पेज को लाइक करें।
हमारा न्यूज़ चैनल सबस्क्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad