नोएडा में बनने वाली पहली रिसर्च इंसटैट्यूट जहां ट्रेन और ट्रैक पर होगा रिसर्च

नोएडा ,केंद्र सरकार के मेक इन इंडिया प्रोग्राम को दो कदम और आगे बढ़ाते हुए अब नोएडा में हैवी हाल के रिसर्च इंसटट्यूट का निर्माण होने जा रहा है। जिसमें केंद्र की महत्वाकांक्षी योजना डेडिकेटेड फ्रेट कारिडोर के ट्रैक और मालवाहक ट्रेनों पर शोध किया जाएगा। 2021 जून तक इसका निर्माण कार्य पूरा हो जाएगा।

बताया जा रहा है कि यहां 1100 करोड़ रुपये की मशीनें लगेंगी, जिसके लिए टेंडर जारी हो गया है। ये मशीनें अमेरिका, जर्मनी, जापान, आस्ट्रेलिया व आस्ट्रिया से मंगाई होगी। शुरुआत में यहां विदेशी विशेषज्ञ शोध करेंगे और फिर वे भारतीय प्रशिक्षण को प्रशिक्षण देंगे।

डीएफसीसीआईएल के उप मुख्य परियोजना प्रबंधक, नोएडा इकाई वाइपी शर्मा का कहना है कि टेंडर जारी कर दिए गए हैं। जून तक इंस्टीट्यूट का निर्माण हो जाएगा। यहां जियादतार मशीनों पर शोध के लिए लगेंगी। कुछ मशीनों ट्रेन संचालन और ट्रैक के उपयोग में आएगी।

साथ ही बताया कि इसका उद्धेश्य रिसर्च के बाद नई तकनीकों से रेलवे के बुनियादी ढांचे को तकनीकी तौर पर आधुनिक और विश्‍वसनीय बनाने वाला है। इसके साथ ही यहां उत्तरी और पश्चिमी कॉरिडोर का सैंड कंट्रोल रूम भी बनेगा। अगले साल बनने के बाद साल 2022 में यह इंसट्यूट पूरी तरह से काम करने लगेगा। रेलवे अनुसंधान की उत्कृष्टता के लिए उत्साहाने जाने वाली आस्ट्रेलिया स्थित मोनाश विश्वविद्यालय का इंस्टीट्यूट ऑफ रेलवे टेक्नोलाजी एचएचआरआई को स्थापित करने में सहयोग करेगा।

दैनिक जागरण में छपी खबर के मुताबिक डीएफसीसीआईएल के मुताबिक देश के एक कोने से दूसरे कोने तक कम समय में भारी माल पहुंचेगा। के लिए कारिडोर बनाया जा रहा है। इस तरह के कारिडोर विदेशों में पहले से ही हैं। ऐसे कारिडोर पर शोध होते रहते हैं। एचएचआरआई बनने के बाद देश में ही शोध हो सकता है। कंटेनर रूपी मालवाहक ट्रेनों में एक के ऊपर एक ट्रक खड़ा हो जाएगा।

इसके बनने से सड़क पर मालवाहक वाहनों की संख्या कम होगी, जिससे यातायात कम होगा और प्रदूषण भी होगा। कारिडोर का ट्रैक कुछ स्थानों पर दूषित तर्ज पर भी बनाए रखा जाएगा। ये ट्रैकर्स 1.5 किलोमीटर लंबी और 13.5 हजार टन की मालगाड़ी 100 किलोमीटर की रफ्तार से दौड़ेगी। ट्रैक में अपग्रेड करेंगे। साथ ही मालवाहक ट्रेनों की क्षमता, गुणवत्ता, गति आदि पर भी कार्य किया जाएगा। यहां अधिकारियों और शोधकर्ताओं के लिए आवास भी बनेगा।

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