भारत के पूर्व मुख्य न्यायाधीश या शीर्ष अदालत के न्यायाधीश की अध्यक्षता में एक स्वतंत्र उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन कर मीडिया कारोबार के नियमों से संबंधित संपूर्ण कानूनी ढांचे की समीक्षा करने और इसके लिए दिशा-निर्देश बनाने की मांग की गई है। यह मांग सुप्रीम कोर्ट में दायर एक जनहित याचिका में की गई है।
फिल्म निर्माता नीलेश नवलखा और एक सिविल इंजीनियर नितिन मेमन द्वारा संयुक्त रूप से दायर याचिका में मीडिया ट्रिब्युनल का गठन करने की भी मांग की गई है, जहां मीडिया, चैनलों और नेटवर्क के खिलाफ शिकायतों पर सुनवाई हो सके। याचिका में कहा गया है कि मीडिया विशेष रूप से इलेक्ट्रॉनिक मीडिया एक अनियंत्रित घोड़े की तरह हो गया है।
याचिकाकर्ताओं का कहना है कि याचिका का मकसद मीडिया के मौलिक अधिकारों पर अंकुश लगाने के लिए नहीं है, बल्कि केवल गलत सूचना, भड़काऊ कवरेज, फर्जी समाचार, गोपनीयता भंग करने के लिए कुछ जवाबदेही तय करना है। इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर पाबंदी को एक उच्च स्तर पर रखा जाना चाहिए, क्योंकि पिछले कुछ वर्षों में मीडिया ट्रायल एक आम बात हो गई है।
मीडिया महज व्यवसाय, ऐसे में विनियमन जरूरी
याचिका में कहा गया है कि मीडिया केवल एक व्यवसाय है जो कि अपने आप में सत्ता की सबसे शक्तिशाली संरचनाओं में से एक है, ऐसे में इसे सांविधानिक मानदंडों और सिद्धांतों द्वारा विनियमित होना चाहिए। याचिकाकर्ताओं ने अनुच्छेद 21 सहित कई कानूनी मुद्दों को उठाया है, जिसमें नागरिकों के लिए स्वतंत्र, निष्पक्ष और आनुपातिक रिपोर्टिंग के अधिकार की परिकल्पना की गई है।साभार-अमर उजाला
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