गाजियाबाद,ऑनलाइन गेम छीन रहे बचपन

गाजियाबाद। कोरोना महामारी के दौर में सब कुछ अनलॉक होने के बावजूद संक्रमण से बचने के नाम पर बच्चों का बचपन अभी भी पूरी तरह से लॉक है। बच्चे न तो स्कूल जा पा रहे हैं और न ही अपने दोस्तों के साथ पार्क में खेल पा रहे हैं। घर में रह रहे बच्चों में ऑनलाइन गेम खेलने की आदत पड़ गई है। इससे बचपन में ही वह कई तरह की बीमारियों की जकड़ में आ रहे हैं।

मनोचिकित्सक डॉ. जया सुकुल का कहना है कि लॉकडाउन से पहले ऑनलाइन गेमिंग की वजह से चिड़चिड़ापन और गुमसुम रहने जैसे डिसऑर्डर की गिरफ्त में आने वाले बच्चों की संख्या महीने में सिर्फ 5-6 थी। अब इसमें करीब पांच गुना इजाफा हो गया है। ऐसे बच्चों की संख्या हर महीने 25 से 30 हो गई है। यह बदलाव लड़कों में ज्यादा देखने को मिल रहा है। चिड़चिड़ापन, गुमसुम रहना, वजन घटना जैसे लक्षण सामने आ रहे हैं। गेम इतने ज्यादा प्रतिस्पर्धी हैं कि कम उम्र में जरूरत से ज्यादा तनाव बढ़ रहा है। इससे अवसाद के भी मामले बढ़ रहे हैं।

कई अन्य मनोचिकित्सकों का भी कहना है कि ऑनलाइन गेमिग से चिड़चिड़ापन, गुस्सा, रात में सोते समय गेम के बारे में ही बड़बड़ाना और शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने की परेशानी बढ़ रही है। किशोर वर्ग में भी मल्टीप्लेयर गेमिंग एक लोकप्रिय विकल्प बन गया है। युवा कई-कई घंटे लाइव स्ट्रीमिंग कर रहे हैं। मां-बाप परेशान होकर मनोचिकित्सकों के पास पहुंच रहे हैं।

केस 1 : राजनगर एक्सटेंशन की एक सोसायटी में रहने वाली महिला दिल्ली में एक अधिकारी हैं। उनके 9 साल का बेटे ने लॉकडाउन के समय से अपने दोस्तों के साथ एक मोबाइल गेम खेलना शुरू किया। गेम के दौरान वह जोर-जोर से बात भी करता था। उन्होंने बताया कि धीरे-धीरे वह उसके ऑनलाइन गेम खेलने की अवधि बढ़ती चली गई। कुछ माह बाद वह सोते हुए भी गेम की ही बातें करने लगा। परेशान होकर उन्होंने मनोचिकित्सक से सलाह ली तो पता चला कि वह स्लीपिंग डिसऑर्डर की गिरफ्त में आ गया है। कई सप्ताह की काउंसिलिंग के बाद अब सुधार आ रहा है।

केस 2 : वसुंधरा निवासी एक महिला निजी इंजीनियरिंग कालेज में शिक्षिका हैं और उनके पति स्वास्थ विभाग में अधिकारी हैं। उनके दो बेटे हैं। एक 11वीं में पढ़ता है, दूसरा नौवीं का छात्र है। लॉकडाउन के बाद से दोनों में दिन में कई बार झगड़े होते हैं। महिला छोटे बेटे को लेकर मनोचिकित्सक के पास गईं तो पता चला कि दोनों ऑनलाइन गेम के आदी हो चुके हैं और एक-दूसरे की शिकायत माता-पिता से करने की बात कहते थे। इसी बात पर दोनों में झगड़ा होता है। पूरे दिन घर पर माता-पिता नहीं रहते थे, दोनों भाई अपने-अपने मोबाइल पर कईं-कईं घंटे तक ऑनलाइन गेम खेलते हैं। मनोकाउंसलर ने दोनों की काउंसलिंग के बाद माता या पिता में से किसी एक के बच्चों के साथ घर पर रहने की सलाह दी है। बच्चों को सिर्फ ऑनलाइन क्लास के लिए मोबाइल देने की भी सलाह दी गई है।

मनोचिकित्सक डॉ. हेमिका अग्रवाल कहती हैं कि कोई भी काम जरूरत से ज्यादा करने पर मनोविकार आ जाते हैं। इससे दिमाग से जरूरी चीजें छूट जाती हैं और दूसरे कामों में मन नहीं लगता। किसी बच्चे में अगर ऐसे लक्षण हैं तो डांटने की बजाय अभिभावक उससे बात करें। सोशल डिस्टेंसिंग के साथ फिजिकल एक्टिविटी कराएं। खुद भी घर में मोबाइल का जरूरत से ज्यादा इस्तेमाल न करें। ज्यादा दिक्कत लगे तो विशेषज्ञ की सलाह लें।

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