कोर्ट ने निर्देश दिया कि बाल संरक्षण इकाइयां बाल देखभाल संस्थानों में बच्चों की सुविधाओं के मामले में प्रगति की जानकारी से जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को अवगत करायेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों को इन बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि महामारी की वजह से मार्च से ही सामान्य जीवन प्रभावित हुआ है और बच्चों को कक्षा में आने का मौका नहीं मिला है.
नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट में मंगलवार को कहा कि देश में कोविड-19 के कारण मार्च महीने से सामान्य जनजीवन प्रभावित होने के कारण बच्चे पढ़ाई के लिये अपनी कक्षाओं में नहीं जा सके. सुप्रीम कोर्ट ने इस तथ्य के मद्देनजर सभी राज्यों को निर्देश दिया कि बाल देखभाल गृहों में रहने वाले बच्चों, जिन्हें महामारी के दौरान उनके परिवारों को सौंप दिया गया था, उन्हें शिक्षा के लिये प्रति बच्चा दो हजार रुपये महीना उपलब्ध करायें. कोर्ट को बताया गया कि कोविड-19 महामारी शुरू होते वक्त बाल देखभाल संस्थानों में 2,27,518 बच्चे थे और इनमें से 1,45,788 बच्चों को उनके माता-पिता या अभिभावकों को सौंपा जा चुका है.
कोर्ट ने महामारी के दौरान बाल देखभाल संस्थानों में रहने वाले बच्चों की स्थिति का संज्ञान लेते हुये कहा कि इन्हें शिक्षा के लिये बुनियादी सुविधायें उपलब्ध कराने की आवश्यकता है . कोर्ट ने कहा कि राज्यों को यह सुनिश्चित करना चाहिए कि इन बच्चों के लिये पर्याप्त संख्या में शिक्षक उपलब्ध हों. न्यायमूर्ति एल नागेश्वर राव, न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता और न्यायमूर्ति अजय रस्तोगी की बेंच ने कहा कि राज्य सरकारों को बाल देखभाल केन्द्रों में रहने वाले बच्चों की ऑनलाइन पढ़ाई के लिये जिला बाल संरक्षण इकाई से सिफारिश मिलने के 30 दिन के भीतर, इन संस्थानों को किताबें और स्टेशनरी सहित बुनियादी सामग्री उपलब्ध करानी चाहिए.
बेंच ने कहा कि राज्यों के लिये जरूरी हो सकता है कि वे इन संस्थानों में 20-25 छात्रों के समूह के लिए एक शिक्षक मनोनीत करें ताकि महामारी के दौरान भी इन बच्चों की पढ़ाई चलती रहे. बेंच ने कहा कि राज्य सरकारें दो हजार रुपये प्रति माह प्रत्येक बच्चे की शिक्षा के लिये देंगी और यह धनराशि बच्चे के परिवार की आर्थिक स्थिति को ध्यान में रखते हुए जिला बाल संरक्षण इकाई की सिफारिश पर दी जायेगी. बेंच ने कहा कि अगले साल मार्च में होने वाली परीक्षाओं के लिये बच्चों को तैयार करने के लिये अतिरिक्त क्लास लेने की जरूरत है.
परिवारों को सौंपे गये बच्चों को शिक्षा प्रदान करने की आवश्यकता पर जोर देते हुये बेंच ने जिला बाल संरक्षण इकाइयों को निर्देश दिया कि वे इस मामले में समन्वय करें और इसमें प्रगति की निगरानी करें. कोर्ट ने निर्देश दिया कि बाल संरक्षण इकाइयां बाल देखभाल संस्थानों में बच्चों की सुविधाओं के मामले में प्रगति की जानकारी से जिला विधिक सेवा प्राधिकरण को अवगत करायेंगी. सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि शिक्षकों को इन बच्चों को पढ़ाने की अनुमति दी जानी चाहिए क्योंकि महामारी की वजह से मार्च से ही सामान्य जीवन प्रभावित हुआ है और बच्चों को कक्षा में आने का मौका नहीं मिला है.
बेंच ने कोरोना वायरस महामारी के दौरान देश के बाल सुधार गृहों और बाल देखभाल संस्थाओं में बच्चों की स्थिति पर स्वत: संज्ञान लिये गये मामले में यह आदेश पारित किया. इससे पहले, कोर्ट ने इन बच्चों के संरक्षण के लिये राज्य सरकारों और दूसरे प्राधिकारियों को अनेक निर्देश दिये थे. इस मामले की वीडियो कॉन्फ्रेंस के माध्यम से सुनवाई के दौरान न्याय मित्र की भूमिका निभा रहे अधिवक्ता गौरव अग्रवाल ने महामारी के दौरान बाल देखभाल संस्थानों में रह रहे बच्चों, और माता-पिता तथा अभिभावकों को सौंपे गये बच्चों की संख्या के बारे में बेंच को अवगत कराया.
उन्होंने कहा कि बाल देखभाल संस्थानों की किशोर न्याय बोर्ड को सहायता करनी चाहिए और कोविड-19 के दिशा निर्देशों का पालन करते हुये छात्रों के लिये शिक्षक उपलब्ध कराने चाहिए. उन्होंने कहा, ‘‘ हम सुप्रीम कोर्ट से यह निर्देश चाहते हैं कि उन्हें बाल देखभाल गृहों में शिक्षा की सुविधायें उपलब्ध करानी चाहिए ओर राज्य सरकार को इसके लिये बुनियादी संरचना और उपकरण मुहैया कराने चाहिए. ’’ अग्रवाल ने कहा कि इन बाल देखभाल संस्थाओं में पिछले पांच महीने में बच्चों की शिक्षा में हुयी प्रगति की जानकारी प्राप्त करने का काम शिक्षकों को सौपा जाये.
राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग की ओर से सॉलिसीटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि न्याय मित्र के सुझावों पर उन्हें कोई आपत्ति नहीं है. किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल और संरक्षण) कानून के एक प्रावधान का जिक्र करते हुये मेहता ने कहा, ‘‘हम बाल देखभाल गृहों के निरीक्षण की एक व्यवस्था बना रहे हैं. हम यह निर्देश चाहते हैं कि राज्य सरकारें इन देखभाल गृहों के निरीक्षण के काम में आयोग के साथ सहयोग करें.’’ इस पर बेंच ने मेहता से कहा, ‘‘बाल देखभाल गृहों में बच्चों के विकास और उनके कल्याण की गतिविधियों की निगरानी का काम आप क्यों नहीं करते? आप आयोग की ओर से राज्यों को निर्देश दे सकते हैं.’’ बेंच ने मेहता से सवाल किया, ‘‘आप क्या चाहते हैं? क्या हमें निर्देश देने चाहिए या आप उन्हें निर्देश देना चाहते हैं?’’
मेहता ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट से जारी निर्देशों का ज्यादा महत्व होगा और आयोग इन पर अमल सुनिश्चित करने के लिये उचित कदम उठायेगा. बेंच ने कहा कि कानून का पालन सुनिश्चित करना बाल अधिकार आयोग का कर्तव्य है. बेंच ने कहा, ‘‘हम न्याय मित्र के सुझाव स्वीकार करेंगे और निर्देश जारी करेंगे जिनका राज्यों के बाल देखभाल गृहों में पूरी ईमानदारी से पालन करना होगा.’’ बेंच ने कहा कि इन निर्देशों को राज्यों, राष्ट्रीय बाल अधिकार संरक्षण आयोग और राज्य आयोगों के माध्यम से लागू करना होगा.साभार-एबीपी न्यूज़
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