डीजे वाला ये बाबू अपनी बीवी का दीवाना, बिना परमीशन नहीं बनाता नया गाना, नाम तो सुना होगा, न्यूक्लीया

लाइव म्यूजिक कॉन्सर्ट और किसी चर्चित डीजे को बुला कर रात भर पार्टी करने का चलन दिल्ली, मुंबई, बेंगलुरु, चेन्नई, कोलकाता जैसे महानगरों से निकलकर अब कस्बों और गांवों तक पहुंच रहा है। जिनको ईडीएम की समझ है, वह इन डीजे के बीच सबसे मशहूर डीजे न्यूक्लीया का नाम भी जानते हैं। उदयन सागर उनका असली नाम है और उन्होंने इलेक्ट्रॉनिक संगीत को देश में नई ऊंचाइयों तक पहुंचा दिया। और, आपको जानकर हैरानी होगी कि न्यूक्लीया का करियर बनाने में अनुराग कश्यप की फिल्म ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का बड़ा हाथ है। न्यूक्लीया देश के सबसे बड़े डीजे में से एक हैं। आइए, आपको न्यूक्लीया की कुछ अनसुनी कहानियां बताते हैं।

बचपन से था संगीत का शौक
न्यूक्लीया का जन्म 7 दिसंबर 1979 को गुजरात के अहमदाबाद शहर में हुआ। उनके माता-पिता ने प्यार से उनका नाम उदयन सागर रखा। न्यूक्लीया को बचपन से ही गाने बजाने का बहुत शौक था। वह अक्सर संगीत को सुनकर उत्साहित हो जाते थे और वह उत्साह उनके अंदर लोगों को दिखाई भी देता था। इसलिए, जब न्यूक्लीया ने एक संगीतकार बनने का निश्चय किया तो उन्हें ज्यादा विरोध नहीं झेलना पड़ा।

दादाजी को लगा डांसर बनेगा
बचपन में जब न्यूक्लीया संगीत को सुनकर थिरकने लगते थे तो उनके दादाजी को तो कहीं न कहीं लगता था कि न्यूक्लीया बड़े होकर एक दिन एक डांसर बनेंगे। उनकी बात कहीं तक तो ठीक रही लेकिन पूरी तरह से नहीं। क्योंकि, न्यूक्लीया नृत्य के नजदीक तो आए लेकिन पूरी तरह वह उसमें घुसे नहीं, बल्कि उन्होंने तो काम चुना लोगों को नचाने का। यह बात भी सही है कि बचपन में दूसरों के संगीत पर नाचने वाले न्यूक्लीया आज लोगों को अपनी धुन पर नाचने के लिए मजबूर करते हैं।

अहमदाबाद से ही की थी शुरुआत
न्यूक्लीया ने जब एक संगीतकार बनने की ठान ली थी तो वो वह अपने दोस्तों के साथ मिलकर म्यूजिक बनाते थे। दरअसल, उन्होंने इसकी शुरुआत अपने शहर अहमदाबाद में से ही की थी। उन्होंने अपने कुछ दोस्तों के साथ मिलकर एक ग्रुप बनाया और अपने ही घर के बेसमेंट में उन्होंने म्यूजिक बनाने की एक जगह तय कर ली। वहां पर न्यूक्लीया अपने दोस्तों के साथ मिलकर विभिन्न प्रकार के संगीत पर विचार विमर्श किया करते और वहीं पर अपने पूरे संगीत को बनाने का काम भी करते थे।

शुरू किया बंदिश प्रोजेक्ट
अहमदाबाद में ही रहकर जब न्यूक्लीया ने खूब संगीत बनाया तो उनकी ख्याति अपने शहर में काफी होने लगी। धीरे-धीरे उनकी सराहना शहरी स्तर तक पहुंच गई थी। फिर उन्होंने अपने दोस्तों मयूर नार्वेकर और मेहर नाथ चोपड़ा के साथ मिलकर बंदिश प्रोजेक्ट नाम के ग्रुप का निर्माण किया। न्यूक्लीया 12 साल तक इस ग्रुप का हिस्सा रहे और काफी नाम कमाने के बाद उन्होंने इस ग्रुप को अलविदा कह दिया। इस प्रोजेक्ट से अलग होकर उदयन ने खुद को न्यूक्लीया बनाया।

‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ का असर
बंदिश प्रोजेक्ट से अलग होने के बाद न्यूक्लीया का करियर काफी उतार-चढ़ाव से भरा रहा। उन्होंने अकेले भी काफी संगीत बनाया लेकिन देश में उस तरह के संगीत का प्रचलन बहुत कम था जैसा न्यूक्लीया बनाते थे। जब उन्होंने अनुराग कश्यप के निर्देशन में बनी ‘गैंग्स ऑफ वासेपुर’ फिल्म देखी तब उन्होंने अपने संगीत में देसी संगीत का तड़का लगाना शुरू कर दिया। उन्हें समझ में आ गया था कि जगह के हिसाब से काम करने की बहुत जरूरत है। लोग तब ही उनके संगीत से खुद को जोड़ पाएंगे।

इसलिए किए हिंदी गानों के रीमिक्स
न्यूक्लीया को ईडीएम यानी इलेक्ट्रॉनिक डांस म्यूजिक के लिए जाना जाता है। इस तरह का डांस म्यूजिक देश में उन्होंने काफी प्रचलित किया लेकिन इस विधा के वह अकेले मास्टर रहे। जब उन्हें अपने इस काम से बहुत ज्यादा सराहना तो मिली लेकिन पैसा नहीं तो उन्होंने पैसा कमाने पर भी ध्यान दिया। उन्होंने हिंदी फिल्मों के गीतों को उठाकर रीमिक्स करना शुरू कर दिया। इससे उनका संगीत और हिंदी फिल्मों के गीत मिलकर लोगों को काफी पसंद आने लगे और ऐसे ही शुरू हुआ पैसे कमाने का सिलसिला।

ऊब जाने पर ही दूसरा संगीत
न्यूक्लीया का मानना है कि संगीत एक ऐसी रचनात्मक कला है जो स्वतः बाहर निकलती है। इसके साथ कोई जोर जबरदस्ती नहीं कर सकता। एक इंटरव्यू के दौरान न्यूक्लीया ने बताया कि जब वह किसी भी तरह का म्यूजिक बनाते तो वह बनाते ही चले जाते थे। जब उन्हें लगता कि एक ही तरह के संगीत की बहुतायत हो गई है तो वह ऊब जाते थे और फिर दूसरी प्रकार का संगीत बनाने लग जाते। अगर उससे भी उनका मन भर जाए तो फिर वह तीसरे प्रकार का। लेकिन, वह रिलीज उसे ही करते थे जो उन्हें संतुष्ट करता था।

कूचा मॉन्स्टर मुफ्त में
न्यूक्लीया का संगीत लोगों को अक्सर पैसे खर्च करने पर सुनने मिलता था। लेकिन, जब उन्होंने वर्ष 2015 में अपनी एक म्यूजिक एल्बम ‘कूचा मॉन्स्टर’ रिलीज की तो उन्होंने इस एल्बम को मुफ्त में उपलब्ध कराया। इसका कारण यह था कि न्यूक्लीया लोगों के बीच में अपनी पहुंच बनाना चाहते थे। उनका मानना था कि संगीत अच्छा और बुरा बनने से ज्यादा जरूरी है कि वह लोगों तक पहुंचे। इसके लिए उन्होंने विश्वविद्यालयों में पढ़ने वाले युवाओं को निशाना बनाया। उनका यह प्रयोग कामयाब भी रहा और यह एलबम बहुत हिट हुई। फिर लोग ईडीएम के ऐसे दीवाने हुए कि वहीं से न्यूक्लीया का नाम चमक गया।

ज्यादा मेहनत करके नहीं बनाते संगीत
एक इंटरव्यू के दौरान न्यूक्लीया ने खुलासा किया कि वह किसी भी म्यूजिक को बनाने के लिए बहुत ज्यादा मेहनत नहीं करते। उनका सीधा सीधा मानना है कि म्यूजिक ऐसी चीज है कि वह स्वयं बाहर निकलता है। अगर उसके साथ हम जोर जबरदस्ती करेंगे तो अच्छा संगीत कभी बाहर नहीं आ सकता। जब उन्हें लगता है कि संगीत ठीक से नहीं निकल रहा तो वह अपने परिवार के साथ समय बिताना पसंद करते हैं। एक समय ऐसा भी होता है जब वह संगीत को बिल्कुल भूल जाते है और फिर वह बनते हैं एक श्रोता। वह चीजों को एक दर्शक बनकर देखना शुरू करते हैं। तब फिर वापस म्यूजिक बनाते हैं।

पत्नी की परमीशन के बिना कुछ नहीं
न्यूक्लीया के हिसाब से उनके संगीत की सबसे बड़ी समीक्षक उनकी पत्नी स्मृति चौधरी ही हैं। न्यूक्लीया ने स्मृति के साथ वर्ष 2008 में शादी की और उनके यहां एक बच्चे ने वर्ष 2011 में जन्म लिया। न्यूक्लीया जब भी कोई संगीत बनाते हैं तो सबसे पहले उस संगीत को उनकी पत्नी ही सुनती हैं। जब स्मृति को संगीत अच्छा लगता है तो ही न्यूक्लीया उस पर आगे काम करते हैं। एक बार का किस्सा बताते हुए न्यूक्लीया ने कहा कि एक संगीत को बनाने में उन्होंने चार से पांच दिन खर्च किए। जब वह संगीत बनकर तैयार हुआ तो उन्होंने अपनी पत्नी को वह संगीत सुनाया। उनकी पत्नी ने उस म्यूजिक को बहुत बकवास बताया। तो, न्यूक्लीया ने उस संगीत को वहीं पर खत्म कर दिया।साभार-अमर उजाला

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