कुछ इस तरह बीता था डॉ. भीमराव अंबेडकर का आखिरी दिन

चार साल पहले से ही डॉ. अंबेडकर (Dr BR Ambedkar) को लगने लगा था कि वह अब ज्यादा जीवित नहीं रहेंगे. इस बारे में उन्होंने अपने खास सहायक बाहुराव गायकवाड़ को पत्र भी लिखा था.

डा. भीमराव अंबेडकर रोजाना की तरह सुबह देर से सोकर उठे. 16 वर्षों से उनके सहायक नानक चंद रत्तू उनके उठने का इंतजार कर रहे थे. उनके जागने के बाद उन्होंने कार्यालय जाने की इजाजत मांगी. इसके बाद मुंबई से आए डॉक्टर ने उनका हेल्थ चेकअप किया. पत्नी पर कुछ नाराज भी हुए. रात को एक प्रतिनिधिमंडल मिलने आया. तब फिर डॉक्टर ने उनका चेकअप किया. तब तक सब सही था लेकिन रात में जब वो सोए तो फिर उठे नहीं.

आखिरी दिन घर पर पत्नी सविता अंबेडकर और मुंबई से आए डॉक्टर मालवंकर मौजूद थे. दोपहर में सविता और डा. मालवंकर सामानों की खऱीदारी के लिए बाजार के लिए चले गए. घर लौटने में देर हो गई. अंबेडकर घर पर ही थे.

जब शाम छह बजे रत्तू आफिस से वापस लौटे तब तक श्रीमती अंबेडकर बाजार से नहीं लौटी थीं. अंबेडकर नाराज थे. उन्हें लग रहा था कि उनका ध्यान नहीं रखा जा रहा. रत्तू ने उनकी नाराजगी महसूस की. डॉ. अंबेडकर ने रत्तू को टाइप करने के लिए कुछ काम दिया. जैसे ही रत्तू लौटने वाले थे, तभी श्रीमती अंबेडकर लौट आईं.

गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख पाए अंबेडकर
अंबेडकर गुस्से पर नियंत्रण नहीं रख सके. उन्होंने कुछ कड़ी बातें कहीं. जब श्रीमती अंबेडकर ने पति को आपे से बाहर होते देखा तो उन्हें लगा कि उनका कुछ भी कहना आग में घी डालेगा, लिहाजा वो शांत रहीं. उन्होंने रत्तू से कहा कि वह डॉ. अंबेडकर को शांत करने की कोशिश करें. रत्तू ने कोशिश की. थोड़ी देर में वह शांत हो गए.

जैन धर्म के प्रतिनिधिमंडल से मिले
उसी रात करीब आठ बजे जैन मतावलंबियों का एक प्रतिनिधिमंडल तय समय के अनुसार उनसे मिला. अंबेडकर को महसूस हो रहा था कि वह आज मिलने की स्थिति में नहीं हैं लिहाजा मुलाकात को अगले दिन के लिए टाल दिया जाए. चूंकि वो लोग आ चुके थे, तो उन्हें लगा कि अब मिल लेना चाहिए.

20 मिनट बाद वह बाथरूम गए. फिर रत्तू के कंधे पर हाथ रखवकर वापस ड्राइंगरूम में लौटे. सोफा पर निढाल हो गए. आंखें बंद थीं. कुछ मिनटों पर शांति पसरी रही. जैन नेता उनके चेहरे की ओर देखे जा रहे थे. फिर अंबेडकर ने सिर हिलाया. कुछ देर बातचीत की. बौद्धिज्म और जैनिज्म को लेकर सवाल पूछे.

अगले दिन अंबेडकर को बुद्ध संबंधी प्रोग्राम में जाना था
प्रतिनिधिमंडल ने बुद्ध पर एक किताब भेंट की. वास्तव में वह उन्हें अगले दिन के एक समारोह में आमंत्रित करने आए थे. डॉ अंबेडकर ने आमंत्रण स्वीकार कर लिया. भरोसा दिलाया कि अगर स्वास्थ्य अनुमति देता है तो वह जरूर आएंगे. जब वह जैन प्रतिनिधिमंडल से बात कर रहे थे तभी डॉक्टर मालवंकर ने उनका चेकअप किया. फिर मालवंकर पूर्व निर्धारित प्रोग्राम के अनुसार मुंबई रवाना हो गए.

रात में बिस्तर के पास कुछ किताबें रखने को कहा
जैन प्रतिनिधिमंडल के जाने के बाद रत्तू ने उनके पैर दबाए. डॉ. अंबेडकर ने सिर पर तेल लगाने को कहा. अब वह कुछ बेहतर महसूस कर रहे थे. अचानक रत्तू के कानों में गाने की आवाज आनी शुरू हो गई.अंबेडकर आंखें बंद करके गा रहे थे. उनके दाएं हाथ की अंगुलियां सोफे पर थिरक रही थीं. धीरे धीरे गाना स्पष्ट और तेज हो गया.

तन्मयता से गाने लगे
डॉ. अंबेडकर बुद्धम शरणम गच्छामी को पूरी तन्मयता से गा रहे थे. उन्होंने इसी गाने का रिकार्ड रेडियोग्राम पर बजाने के लिए कहा. साथ ही रत्तू से कुछ किताबें और द बुद्धा एंड द धम्मा का परिचय और भूमिका लाने को कहा. उन्होंने इस सबको अपने बिस्तर की बगल में टेबल पर रखा ताकि रात में इन पर काम कर सकें.

रात में थोड़ा चावल खाया और फिर कुछ लिखा
कुछ समय बाद रसोइया सुदामा खाना तैयार होने की बात बताने आया. अंबेडकर ने कहा कि वह केवल थोड़ा चावल खाएंगे और कुछ भी नहीं. वह अब भी गाना बुदबुदा रहे थे. रसोइया दूसरी बार आया. वह उठे और डाइनिंग रूम में गए. वह अपना सिर रत्तू के कंधे पर रखकर वहां तक गए.

जाते हुए आलमारियों से कुछ किताबें भी निकालते गए. उन्हें भी टेबल पर रखने को कहा. रात के खाने के बाद वह फिर कमरे में आए. वहां वह कुछ देर तक कबीर का गाना चल कबीर तेरा भव सागर देरा बुदबुदाते रहे. फिर बेडरूम में चले गए. अब उन्होंने टेबल पर रखी उन किताबों की ओर देखा, जिसे उन्होंने रत्तू से रखने को कहा था. किताब द बुद्धा एंड हिज धम्मा की भूमिका पर कुछ देर काम किया. फिर किताब पर ही हाथ रखकर सो गए.

छह दिसंबर की सुबह 06.30 बजे
सुबह जब श्रीमती अंबेडकर हमेशा की तरह उठीं तो उन्होंने बिस्तर की ओर देखा. पति के पैर को हमेशा की तरह कुशन पर पाया. कुछ ही मिनटों में उन्हें महसूस हुआ कि डॉ. अंबेडकर के प्राण पखेरु उड़ चुके हैं. उन्होंने तुरंत अपनी कार नानक चंद रत्तू को लेने भेजी.जब वो आए तो श्रीमती अंबेडकर सोफे पर धराशाई हो गईं.

वो बिलख रही थीं कि बाबा साहेब दुनिया छोड़कर चले गए. रत्तू ने छाती पर मालिश कर हृदय को हरकत में लाने की कोशिश की. हाथ-पैर हिलाया डुलाया. उनके मुंह में एक चम्मच ब्रांडी डाली लेकिन सबकुछ विफल रहा. वह शायद रात में सोते समय ही गुजर चुके थे.

दुखद सूचना तेजी से फैली
अब श्रीमती अंबेडकर के रोने की आवाज तेज हो चुकी थी. रत्तू भी मालिक के पार्थिव शरीर से लगकर रोए जा रहे थे- ओ बाबा साहेब, मैं आ गया हूं, मुझको काम तो दीजिए. कुछ देर बाद रत्तू ने करीबियों को दुखद सूचना देनी शुरू की. फिर केंद्रीय मंत्रिमंडल के सदस्यों को बताया. खबर जंगल में आग की तरह फैली. लोग तुरंत नई दिल्ली में 20, अलीपोर रोड की ओर दौड़ पड़े. भीड़ में हरकोई इस महान व्यक्ति के आखिरी दर्शन करना चाहता था. तुरंत मुंबई खबर भेजी गई. बताया गया कि उसी रात में उनका पार्थिव शरीर मुंबई लाया जाएगा, जहां बौद्ध रीतिरिवाजों से अंतिम संस्कार किया जाएगा.

पत्नी चाहती थीं कि अंतिम संस्कार सारनाथ में हो
हालांकि इस पर विवाद भी है. कुछ लोगों का कहना है कि श्रीमती अंबेडकर ने इस बारे में अंबेडकर के बेटे यशवंतराव को कोई सूचना नहीं दी. वह सारनाथ ले जाकर उनका अंतिम संस्कार करना चाहती थीं. दरअसल चार साल पहले डॉ. अंबेडकर को लगने लगा था कि वह अब ज्यादा जीवित नहीं रहेंगे. इस बारे में उन्होंने अपने खास सहायक बाहुराव गायकवाड़ को पत्र भी लिखा था कि वह ऐसी घटना की तैयारी पहले से करके रखें. मुंबई में चौपाटी में हजारों लोगों ने उनके अंतिम संस्कार हिस्सा लिया.साभार-न्यूज़18

आपका साथ – इन खबरों के बारे आपकी क्या राय है। हमें फेसबुक पर कमेंट बॉक्स में लिखकर बताएं। शहर से लेकर देश तक की ताजा खबरें व वीडियो देखने लिए हमारे इस फेसबुक पेज को लाइक करें।साभार-अमर उजाला 

हमारा न्यूज़ चैनल सबस्क्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad

Exit mobile version