कृषि कानूनों के विरोध में भाकियू ने अपने आंदोलन के तीसरे दिन यूपी गेट पर गांव का रूप दे दे दिया। फ्लाईओवर के नीचे खुले में सर्दी की ठिठुरती रात बिताने के बाद सोमवार को झोपड़ियां बनाईं गईं। साथ ही दिल्ली-यूपी बॉर्डर पर वर्ष 1988 के बाद दूसरी बार अपनी धारा-288 लगाने का एलान भी कर दिया। किसानों की यह धारा प्रशासन की धारा 144 का जवाब है। इसके तहत पुलिस को किसान की हद में नहीं आने दिया जाता है। इस बीच शाम तक पंजाब, उत्तराखंड और यूपी से किसानों का जत्था पहुंचता रहा। किसानों की लगातार बढ़ रही संख्या के बीच राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने तीन दिसंबर को सरकार से वार्ता होने तक यूपी गेट पर ही डटे रहने का एलान किया। इसके बाद आगे की रणनीति बनाने की बात कही।
सोमवार तड़के से किसानों का अलग-अलग जगहों से जत्था यूपी गेट पर पहुंचना शुरू हो गया था। दिन चढ़ने के साथ यूपी गेट का नजारा भी बदलता रहा। पंजाब, गुरदासपुर, उत्तराखंड के हरिद्वार, बाजपुर, रुड़की यूपी के खतौली, मुजफ्फरनगर, अयोध्या, बाराबंकी, गोंडा, बहराइच, बस्ती, सहारनपुर, बदायूं, मेरठ, बागपत, बड़ौत, सिसौली, हापुड, बुलंदशहर, रामपुर, मुरादाबाद, अमरोहा, सीतापुर समेत अलग अलग राज्य व जनपदों से किसान आंदोलन में शामिल होते रहे। दोपहर में नारेबाजी करते हुए किसान ने दो बार बैरिकेडिंग पर चढ़ गए। यह देख दिल्ली पुलिस के अधिकारी अर्धसैनिक बलों के साथ तैनात हो गए।
इस बीच अमर उजाला से बातचीत में भाकियू के राष्ट्रीय प्रवक्ता राकेश टिकैत ने कहा कि 3 दिसंबर को केंद्र सरकार से वार्ता होने तक सभी किसान यूपी गेट पर ही डटे रहेंगे। इस दौरान किसी हाईवे या लोनी सीमा पर किसान कोई जाम नहीं लगाएंगे। पंजाब और हरियाणा के किसानों से लगातार संपर्क भी बना हुआ है। वहां से बातचीत के बाद किसानों के साथ धरना स्थल पर बैठकर आगे की रणनीति तैयार की जाएगी। इस दौरान उन्होंने काफी संख्या में किसानों के यूपी गेट तक इकट्ठा होने का दावा किया। उन्होंने कहा कि कल किसानों की संख्या और बढ़ जाएगी।
32 साल बाद देश में दूसरी बार लगाई धारा 288
भाकियू कार्यकर्ताओं ने यूपी गेट और दिल्ली बॉर्डर के बीच शासन-प्रशासन की धारा 144 के बाद किसानों की धारा – 288 लिखकर अपनी ताकत दिखाई। भाकियू की ओर से यूपी गेट पर धारा-288 लागू करने का एलान किया गया। साथ ही बैनर लगा दिए कि इस क्षेत्र में भाकियू की धारा-288 लागू है। यहां गैर किसानों का आना मना है। राकेश टिकैत ने बताया कि यह भाकियू की अपनी धारा है। चौधरी महेंद्र सिंह टिकैत ने सबसे पहले 1988 में इस धारा का इस्तेमाल 1988 में दिल्ली में वोट क्लब पर किया था। इस धारा के तहत पुलिस को किसान की हद में नहीं आने दिया जाता है। इससे आंदोलन को भी उग्र नहीं होने दिया जाता है। कोई असामाजिक तत्व घुस जाए तो भाकियू उसके खिलाफ भी अपनी धारा-288 के तहत कार्रवाई करती है। यह शांतिप्रिय आंदोलन का तरीका है। टिकैत ने कहा कि भाकियू ने 32 साल बाद देश में दूसरी बार यह धारा लगाई है।
कांग्रेस, आप समेत अन्य दल, संगठन दे रहे समर्थन
राकेश टिकैत ने कहा कि किसानों को भीम आर्मी, कांग्रेस, आम आदमी पार्टी और अलग-अलग संगठन समर्थन दे रहे हैं, हालांकि यह उनकी इच्छा है। समर्थन देने से किसी को मना नहीं किया जा रहा है। उन्होंने सरकार की उच्च स्तरीय बैठकों पर कहा कि नेता बैठक कर रहे हैं तो समाधान की उम्मीद है। उन्होंने तीन मुख्य मांगों को दोहराते हुए कहा कि न्यूनतम समर्थन मूल्य पर कानून, वाद-विवाद पर कोर्ट में किसान जा सके और मंडी समितियों को खत्म नहीं होने दिया जाए। किसानों को कृषि कानून सही से समझने वाले बयान पर उन्होंने कहा कि वे लोग जिस स्कूल में पढ़े हैं, हमें भी उसी स्कूल में पढ़ा देते, जिससे हमें कृषि कानून समझ आता है। इस दौरान उन्होंने लोनी बॉर्डर और हाईवे जाम न करने की बात कही।
और झोपड़ी में पराली डालकर यूपी गेट को बना दिया गांव
दोपहर करीब ढाई बजे रजापुर से भाकियू के जिला प्रभारी जयकुमार मलिक ट्रैक्टर-ट्रॉली में सूखी पराली और तिरपाल व बड़े-बड़े बांस लेकर पहुंचे। बैरिकेडिंग के पास ट्रैक्टर-ट्रॉली के पहुंचते ही दिल्ली के पुलिस अधिकारियों में हलचल पैदा हो गई। अर्धसैनिक बलों के साथ सभी दोबारा से तैनात हो गए। लेकिन किसानों ने बीच सड़क पर ही पराली डाल कर झोपड़ी बनानी शुरू कर दी। इससे यूपीगेट गांव की शक्ल लेने लगा। देर शाम को किसानों ने झोपड़ी में बैठकर हुक्का भी गुड़गुड़ाया। इसी तरह किसानों ने यूपी गेट के दूसरी तरफ भी झोपड़ी बनाने की तैयारी शुरू कर दी।साभार-अमर उजाला
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