दिल्ली हाईकोर्ट ने कहा- पति पर नपुंसकता का आरोप लगाना क्रूरता के समान

दिल्ली हाईकोर्ट ने तलाक के एक मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि जीवनसाथी के खिलाफ नपुंसकता के झूठे आरोप लगाना क्रूरता के समान है। इस टिप्पणी के बाद पीठ ने निचली अदालत द्वारा पति की याचिका पर तलाक को मंजूरी देने के आदेश को बरकरार रखा। महिला ने पति पर आरोप लगाने के बाद हुए तलाक के आदेश को रद्द करने की मांग की थी।

न्यायमूर्ति मनमोहन और न्यायमूर्ति संजीव नरूला की पीठ ने कहा कि इस विषय पर कानून को देखते हुए निचली अदालत के निष्कर्षों और टिप्पणियों में कोई कमी नजर नहीं आती। पीठ ने कहा कि अपीलकर्ता (पत्नी) के लिखित बयान में नपुसंकता से संबंधित आरोप स्पष्ट रूप से कानून के तहत परिभाषित क्रूरता की अवधारणा में आते हैं।

पीठ ने हिंदू विवाह अधिनियम के तहत पति द्वारा तलाक देने की याचिका पर निचली अदालत के आदेश के खिलाफ महिला की अपील को खारिज कर दिया। पीठ ने कहा महिला ने पहले पति पर गंभीर और ऐसे आरोप लगाए जिससे उसके जीवन पर गहरा नकारातमक असर पड़ रहा है और जब अदालत ने तलाक को मंजूरी दे दी तो अब महिला तलाक को रद्द करवाकर पति के साथ फिर से रहने की बात कह रही है।

दंपती का विवाह जून 2012 में हुआ था। महिला की यह पहली शादी थी, जबकि पुरुष उस समय तलाकशुदा था। महिला अपने पति से अलग रह रही थी और उसने अपने पति पर यौन संबंध नहीं बना पाने का आरोप लगाया था।

पीठ ने पति के वकील की इस दलील को स्वीकार किया कि पत्नी द्वारा लिखित बयान में लगाए गए आरोप गंभीर हैं और व्यक्ति की छवि पर असर डालने के साथ उसकी मानसिक स्थिति को प्रतिकूल तरीके से प्रभावित कर सकते हैं।

शख्स ने अपनी पत्नी द्वारा लगाए गए गंभीर आरोपों से आहत होकर अपनी शादी को समाप्त करने के लिए अदालत से गुहार लगाई थी। याचिका में व्यक्ति ने बताया कि महिला की कथित तौर पर यौन संबंधों में रुचि नहीं है और विवाह के लिए उसकी अनुमति महिला की कथित मानसिक अवस्था से संबंधित तथ्यों को छिपाकर ली गई थी। व्यक्ति ने कहा कि अगर महिला के बारे में उचित जानकारी होती तो वह शादी के लिए कभी तैयार ही नहीं होता।

पति की याचिका के जवाब में महिला ने आरोप लगाया था कि उसका पति नपुंसकता की समस्या से पीड़ित है और विवाह नहीं चल पाने का असल कारण यही है। इसके अलावा उसके सास-ससुर झगड़ालू हैं और दहेज की मांग करते हैं। महिला ने यह आरोप भी लगाया कि दहेज मांगने के साथ ही ससुराल वालों ने उसके साथ क्रूरता भरा व्यवहार किया तथा उसके पति ने सास-ससुर के सामने ही उसके साथ बुरी तरह मारपीट की।

मामले को गंभीरता से लेते हुए पीठ ने कहा कि निचली अदालत के तलाक मंजूर करने के आदेश को रद्द करने की मांग स्वीकार नहीं की जा सकती। पीठ ने कहा कि महिला के आरोपों को निचली अदालत ने विशेषज्ञ की गवाही के आधार पर खारिज किया है।साभार-अमर उजाला

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