जजपा ने हरियाणा के चुनावी दंगल में बड़े दलों के छुड़ाए पसीने

नई दिल्ली। पूर्व सांसद एवं ताऊ देवीलाल के परपोते दुष्यंत चौटाला की नई नवेली जननायक जनता पार्टी (जजपा) ने हरियाणा के चुनावी दंगल में बड़े दलों के पसीने छुड़ा दिए हैं। 9 दिसंबर 2018 को अस्तित्व में आई जजपा ने एक साल के भीतर ही प्रदेश में छुपी रुस्तम साबित हो सकती है। पार्टी चाहे सीटें जितनी भी जीते, मगर बड़ा वोट बैंक हथियाते हुए दिख रही है।

पूर्व सांसद पिता अजय चौटाला का पूरा कैडर इनके साथ खड़ा है। पिता से सीखे राजनीति के गुर भी चुनाव मैदान में दुष्यंत के काम आए मां नैना चौटा और पुराने दिग्गज रामकुमार गौतम, केसी बांगड़ ने भी चुनावी चक्रव्यूह के दांवपेंच दुष्यंत को बता बीते दस महीने में पार्टी तीसरा चुनाव लड़ रही है। पहले जींद उपचुनाव लड़ा, उसके बाद लोकसभा चुनाव और अब विधानसभा चुनाव में पूरी 90 सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। जजपा के लिए जींद उपचुनाव और लोकसभा चुनाव नतीजे भले सुखद न रहे हों, लेकिन पार्टी को चुनावी राजनीति का अनुभव हुआ है। जींद और लोकसभा चुनाव जजपा-आप ने मिलकर लड़ा था। जींद उपचुनाव में पार्टी प्रत्याशी दिग्विजय चौटाला दूसरे नंबर पर रहे, वहीं लोकसभा चुनाव में गठबंधन ने इनेलो से अच्छा प्रदर्शन किया था।

तंवर के साथ आने से मिली मजबूती
कांग्रेस के बागी पूर्व प्रदेशाध्यक्ष डॉ. अशोक तंवर जजपा में तो शामिल नहीं हुए पर विधानसभा चुनाव के लिए दुष्यंत चौटाला और उनके मजबूत प्रत्याशियों का समर्थन किया। कांग्रेस छोड़ने के बाद तंवर के तेवर पुरानी पार्टी के नेताओं के प्रति तल्ख हैं और वह पूर्व सीएम भूपेंद्र हुड्डा व राज्य प्रभारी गुलाम नबी आजाद को मात देने के लिए सिर पर कफन बांध निकल चुके हैं। उन्होंने पूरे प्रदेश का दौरा कर जगह-जगह कांग्रेस उम्मीदवारों का विरोध किया । कुछ हलकों में तंवर का अपना कैडर है। सिरसा में जजपा को फायदा हो सकता है।
युवाओं में दुष्यंत-दिग्विजय की अच्छी पकड़
दुष्यंत और दिग्विजय चौटाला की जोड़ी युवाओं में काफी लोकप्रिय है। इनेलो और चौटाला परिवार के एकजुट होने के समय दोनों भाई पार्टी के युवा विंग और इनसो का काम देखते थे। इनसो के जरिए दिग्विजय चौटाला ने युवा वर्ग में अच्छी पैठ बनाई है। कॉलेजों, विश्वविद्यालयों में छात्र संघ चुनाव शुरू कराने के लिए किए लंबे आंदोलन से भी युवाओं में उनकी पकड़ बनी है। दुष्यंत युवा इनेलो के चलते युवाओं की पहली पसंद बने। जजपा के गठन के बाद भी दोनों भाईयों ने युवाओं से अपना नाता तोड़ा नहीं, बल्कि और प्रगाढ़ किया। इनसो को अजय चौटाला ने स्थापित किया है, इसलिए उसकी कमान आज भी दिग्विजय के हाथ में ही है।
संगठन खड़ा कर किया पार्टी को मजबूत
बीते वर्ष अक्टूबर में चौटाला परिवार और इनेलो में दरार आ गई थी। उसके बाद दुष्यंत चौटाला पीछे नहीं हटे। उन्होंने दिसंबर में पार्टी की स्थापना की और आगे की तरफ कदम बढ़ा दिए। उन्होंने पार्टी की मुख्य इकाई के साथ ही हर वर्ग और प्रकोष्ठ में बड़े पैमाने पर नियुक्तियां की। नए पदाधिकारियों से संपर्क कायम किया और फील्ड में जुट जाने का जोश भरते रहे। उसकेही परिणामस्वरूप जजपा अच्छे प्रदर्शन का दावा कर रही है। खाप पंचायतों ने परिवार व पार्टी को एकजुट करने की कोशिश की, लेकिन बात नहीं बन पाई।
इनेलो का अधिकांश कैडर जजपा की तरफ हुआ शिफ्ट
जजपा के गठन के बाद से ही इनेलो की राजनीतिक जमीन खिसकती गई। पहले जजपा ने जींद उपचुनाव में इनेलो को तगड़ा झटका दिया। इनेलो उम्मीदवार जमानत बचाना तो दूर पांच हजार वोट भी हासिल नहीं कर पाए। लोकसभा चुनाव में भी इनेलो उम्मीदवारों का प्रदर्शन निराशाजनक रहा। उनसे अधिक वोट जजपा उम्मीदवार पाने में सफल रहे। विधानसभा चुनाव में इनेलो का अधिकतर कैडर जजपा के साथ आ चुका है तो विधायकों व अनेक गांवों में भाजपा ने सेंध लगाई है।
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