सांप्रदायिक सौहार्द की मिशाल बनी गाजियाबाद की ये तीन महिलाएं, इनके बनाए दीयों से रोशन होगी ‘दिवाली’

गाजियाबाद। जनपद की तीन महिलाओं नसीम, मोमिना और सायना सांप्रदायिक सौहार्द की मिशाल हैं।जात-पात और भेद-भाव की भावना से इतर गाजियाबाद की ये महिलाएं खूबसूरत डिजायनर दीए बनाने का काम करतीं हैं। इस बार इन्हीं के हाथों से बनाए दीयों से दीवाली में जिले के घर जगमगाएंगे।

देवीपुरा बंद निवासी मोमिना और सायना ननद-भाभी हैं। सायना की शादी अलीगढ़ जनपद में हुई है। मोमिना ने बताया कि उनके पति बाहर श्रमिक का काम करते हैं। उनके आठ बच्चे हैं। परिवार का खर्च चलाने व उनका हाथ बंटाने के लिए उसने दीये बनाने शुरू किए। दीवाली के समय ही वो अपनी भाभी के साथ मिलकर दीये आदि बनाती हैं।

इससे परिवार का गुजर बसर हो जाता है। वहीं सयना ने बताया कि वह अलीगढ़ में रहती हैं। उनके तीन बच्चे हैं, दीवाली के समय एक माह के लिए वह अपने मायके आती हैं और दीए बनाने में अपनी भाभी का हाथ बंटाती हैं। दोनों ने बताया कि उनका चाक बिजली से संचालित होता है और रोजाना वह चार से पांच हजार दीये बना लेती हैं।

दोनों के बनाए हुए दीये जनपद के अलावा गाजियाबाद, हापुड़ और मेरठ तक बिक्री के लिए जाते हैं। वहीं, सराय काजी निवासी नसीम ने बताया कि उसके मायके में यह काम होता था, शादी के बाद पति के कहने पर उसने यह काम शुरू किया था। करीब पांच वर्ष पूर्व पति की मौत हो जाने के बाद अब यही उनके गुजर बसर का साधन है।

नसीम ने बताया कि पति की मौत के बाद आठ बच्चों की जिम्मेदारी उसके कंधों पर आ गई। धीरे-धीरे उसने अपनी इस कारीगरी की बदौलत अपनी तीन लड़कियों और दो बेटों की शादी कर दी है। अभी दो बेटों और एक बेटी की शादी करनी बाकी है। नसीम ने बताया कि वह हाथ के चाक से काम करती है और घर में जगह नहीं होने पर किराये के स्थान पर दीये बनाती है।

रोजाना वह 800 से 1000 तक दीये बना लेती है। वह अपने दीये गाजियाबाद में थोक के भाव में बेच देतीं हैं। वर्तमान में दीये बनाने में काफी खर्च हो रहा है। साथ ही दीये बनाने के लिए मिट्टी भी काफी मुश्किल से मिलती है। बावजूद इसके वह दीये बनाने का काम नहीं छोड़ना चाहती है। उनका कहना है कि इस काम से पति के जाने के बाद पूरे परिवार को पाला है। इसके अलावा कुछ आता भी नहीं है।

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