गाज़ियाबाद विकास प्राधिकरण (जीडीए) द्वारा विकसित की जा रही मधुबन बापूधाम योजना में आवंटियों को अब भूखंड के ज्यादा कीमत देनी होगी। दरअसल किसानों की बढ़ी हुई दर से मुआवजा देने का बोझ आवंटियों पर पड़ने जा रहा है। जीडीए के इस निर्णय से दो हजार से ज्यादा खरीदार सीधे प्रभावित होंगे। इसमें 321 विधायकों के भूखंड भी शामिल हैं। जीडीए का आंकलन है कि हर आवंटी पर प्रति वर्ग मीटर के हिसाब से पांच हजार रुपये का अतिरिक्त आर्थिक दबाव पड़ सकता है। हालांकि कीमत तय करने वाली कमेटी अभी रिपोर्ट तैयार कर रही है।
जीडीए इस योजना की 281 एकड़ जमीन का मुआवजा किसानों को दे रहा है। सुप्रीम कोर्ट के आदेश के बाद इस योजना में प्राधिकरण को कई गुना अधिक मुआवजा किसानों को देना पड़ रहा है। अब इस अतिरिक्त मुआवजे की धनराशि आवंटियों से वसूलने की तैयारी है। बिक चुकी संपत्ति में आवासीय भूखंड और μलैट हैं। इस मामले में जीडीए उपाध्यक्ष कंचन वर्मा ने पांच सदस्यीय कमेटी बनाई है। यह कमेटी आवंटित हो चुके और आवंटित होने वाले आवासीय व्यवसायिक भूखंड, ग्रुप हाउसिंग आदि की नई कीमत तय करेगी। इस कमेटी को एक हμते के भीतर अपनी विस्तृत रिपोर्ट तैयार कर जीडीए उपाध्यक्ष को सौंपनी है। फिर इस रिपोर्ट को आगामी बोर्ड बैठक में रखकर पास कराया जाएगा। यह प्रस्ताव बोर्ड से पास होने के बाद इस योजना के आवंटियों से शेष रकम जमा कराने का नोटिस जारी होगा। नोटिस मिलने के बाद आवंटी को तय समय की भीतर शेष रकम जमा करानी होगी।
प्राप्त जानकारी अनुसार इस पांच सदस्यीय कमेटी में मुख्य अभियंता, वित्त नियंत्रक, प्रभारी विधि, इंजीनियरिंग जोन प्रभारी, और अपर सचिव शामिल है। कमेटी दो हिस्से में कीमत तय करेगी। एक हिस्सा बिकी संपत्ति और दूसरा हिस्सा बेचने वाली संपत्ति का होगा। बिकी संपत्ति पर कीमत कम बढ़ेंगी जबकि बिकने वाली संपत्ति की कीमत बढ़ाकर बेची जाएगी।
आपको बता दें कि जीडीए ने यहां तीन भूखंड योजनाएं निकाली थी। इसमें कुल 1554 भूखंड है। यह 40, 60, 120, 160, 200, 300 और 450 वर्ग मीटर के भूखंड हैं। इसके अलावा 321 भूखंड विधायकों के हैं। वहीं, 500 से ज्यादा μलैट भी आवंटित कर चुके हैं। जीडीए ने पहले 40 वर्ग मीटर के μलैट की कीमत 11 हजार वर्ग मीटर के हिसाब से निकाली थी। इस तरह आवंटी ने इस μलैट के लिए चार लाख 40 हजार रुपये जमा दिए। लेकिन अब प्रति वर्ग मीटर पांच हजार रुपये बढ़ाने से इस आवंटी को दो लाख रुपये अतिरिक्त देने पडे़ंगे। इसी तरह सभी भूखंडों के आवंटियों पर आर्थिक बोझ पड़ेगा।
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