उच्चतम न्यायालय ने दिवाला एवं ऋण शोधन अक्षमता संहिता (आईबीसी) में हाल में किये गये बदलावों को शुक्रवार को संवैधानिक रूप से वैध करार दिया और कहा कि ये संशोधन घर खरीदारों के हितों की रक्षा करते हैं।
ये संशोधन घर खरीदारों को वित्तीय कर्जदाता का दर्जा देते हैं जिससे उन्हें अपने हितों का बचाव करने के लिये ऋणदाताओं की समिति का हिस्सा होने का अधिकार मिलता है। उच्चतम न्यायालय का यह निर्णय ऐसे समय आया है जब बहुत से घर खरीदार अधूरी रीयल एस्टेट परियोजनाओं या अटकी परियोजनाओं को लेकर परेशान हैं।
न्यायालय ने कहा कि रीयल एस्टेट (विनियमन एवं विकास) अधिनियम, 2016 (रेरा) को समरसता के साथ देखा जाना चाहिए और जहां आईबीसी तथा रेरा के बीच कोई टकराव उत्पन्न हो रहा हो तो आईबीसी के प्रावधान ही लागू होंगे। न्यायमूर्ति आर एफ नरीमन एवं न्यायमूर्ति संजीव खन्ना और न्यायमूर्ति सूर्यकांत की पीठ ने रीयल एस्टेट डेवलपरों की उस दलील को खारिज कर दिया कि रेरा आवासीय परियोजनाओं के लिए बनाया गया कानून है।
ऐसे में इसे आईबीसी पर तरजीह दिये जाने की जरूरत है क्योंकि आईबीसी सामान्य कानून है जो मुख्य रूप से दिवाला से जुड़े मामलों से निपटता है। रीयल एस्टेट कंपनियों के संगठन नारेडको ने कहा है कि न्यायालय के आज के फैसले से अटकी परियोजनाओं को पूरा करने में मदद मिलेगी।
व्हाट्सएप के माध्यम से हमारी खबरें प्राप्त करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
हमारा न्यूज़ चैनल सबस्क्राइब करने के लिए यहाँ क्लिक करें।
Follow us on Facebook http://facebook.com/HamaraGhaziabad
Follow us on Twitter http://twitter.com/HamaraGhaziabad