भारत सरकार गुरुकुल परम्परा वाली नई शिक्षा नीति को लागू करने पर विचार कर रही है। नई शिक्षा नीति के लिए तैयार की गई 650 पेज की प्रस्ताव रिपोर्ट में भारत सरकार का मानना है कि पुरातन शिक्षा को आधुनिक शिक्षा के साथ मिलाकर प्राथमिक स्तर पर बच्चों को बुनियादी तौर पर मजबूत किया जाए। शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए और भी मुद्दों पर गंभीर विचार किया जा रहा है। ये विचार पीजीडीएवी काॅलेज के प्रोफेसर डाॅ. हरीश अरोड़ा ने बतौर मुख्य वक्ता व्यक्त किये।
वसुंधरा स्थित मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस के विवेकानंद सभागार में आयोजित मासिक विचार संगोष्ठी में नई शिक्षा नीति विषय पर वह अपने विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि परिवर्तन सृष्टि का नियम है। समय के हिसाब से मनुष्य की मानसिकता व सोच में बदलाव आना चाहिये। इसी हिसाब से नीतियां भी बदलती हैं। जाने-माने शिक्षाविद् अतुल कोठारी से विचार विमर्श करने के बाद भारतीय शिक्षा समिति ने परम्परागत शिक्षा को ध्यान में रखते हुए नई नीति के गठन की तैयारी की। उन्होंने बताया कि प्राथमिक शिक्षा को और अधिक मजबूत बनाने की कोशिश है। आजतक बच्चों के मनोविज्ञान को शिक्षा नीति में कभी शामिल नहीं किया गया था लेकिन बच्चों के मनोविज्ञान को नई शिक्षा नीति में स्थान दिया जा रहा है। दादा-दादी की शिक्षाओं को अब स्कूलों से देने का प्रयास भारत सरकार कर रही है। उन्होंने कहा कि उच्च शिक्षा को लेकर भारत सरकार काफी गंभीरता बरत रही है। पत्तों, फूलों, फलों के अलावा अब पेड़ की जड़ों को भी नज़र में रखा जा रहा है। अगर जड़ों को ध्यान में न रखा गया तो हमारी नई शिक्षा नीति सफल नहीं होगी।
मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस के चेयरमैन डाॅ. अशोक कुमार गदिया ने कहा कि नई शिक्षा नीति में बुनियादी आवश्यकताओं, व्यावहारिक दिक्कतों व कमियों को दूर किये बिना नई शिक्षा नीति लागू करना बेमानी होगा। नई शिक्षा नीति में 60 करोड़ भारतीय नौजवानों की उम्मीदों को स्थान देना जरूरी है। शिक्षा, शिक्षक, बच्चे, इमारतों की स्थिति, आर्थिक परिस्थितियों पर भी ध्यान दिया जाना आवश्यक है। इसके लिए पब्लिक प्राइवेट पार्टनरशिप को मजबूत करना होगा। नये रोजगार पैदा करने होंगे। अगर रोजगार नहीं होंगे तो नई शिक्षा नीति लागू करना व्यर्थ रहेगा। उन्होंने साफ कहा कि हिन्दुस्तान की जनता जैसा वाहती है, वैसी शिक्षा नीति बने। देश की आवश्यकता के हिसाब से तैयारी की जानी चाहिये। जमीनी स्तर पर काम करने की जरूरत है।
इस मौके पर मेवाड़ ग्रुप आफ इंस्टीट्यूशंस की निदेशिका डाॅ. अलका अग्रवाल समेत मेवाड़ परिवार के तमाम सदस्य मौजूद रहे। प्रश्नोत्तर सत्र में शिक्षकों द्वारा अनेक प्रश्न पूछे गये, जिनका मुख्य वक्ता ने बहुत कुशलता के साथ जवाब दिये।
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