वक्फ (संशोधन) अधिनियम, 2025 को लेकर देश की राजनीति और न्यायपालिका दोनों में हलचल तेज हो गई है। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मु द्वारा विधेयक को मंजूरी देने के बाद अब यह कानून बन चुका है, लेकिन इसके विरोध में कई मुस्लिम संगठनों ने मोर्चा खोल दिया है। अब इस कानून की संवैधानिक वैधता को चुनौती देने वाली याचिकाएं सर्वोच्च न्यायालय तक पहुंच गई हैं, और जल्द ही इस पर व्यापक बहस की संभावना है।
सुप्रीम कोर्ट में जल्द सुनवाई की मांग राज्यसभा सांसद और वरिष्ठ अधिवक्ता कपिल सिब्बल ने सोमवार को सुप्रीम कोर्ट में वक्फ कानून के खिलाफ दायर याचिकाओं पर जल्द सुनवाई की मांग की। मुख्य न्यायाधीश संजीव खन्ना की अध्यक्षता वाली पीठ ने सिब्बल की दलीलों पर ध्यान देते हुए कहा कि वे याचिकाओं को सूचीबद्ध करने पर निर्णय लेंगे। चीफ जस्टिस ने कहा, “मैं दोपहर में इन अनुरोधों को देखूंगा और फिर सुनवाई पर फैसला लिया जाएगा।” उन्होंने यह भी जोड़ा कि पहले से कई याचिकाएं दायर हैं और प्राथमिकता के आधार पर मामले को सूचीबद्ध किया जाएगा।
क्या है विरोध का आधार? जमीयत उलमा-ए-हिंद और समस्त केरल जमीयतुल उलेमा जैसी संस्थाओं ने इस कानून को देश के संविधान पर “सीधा हमला” बताया है। इन संगठनों का कहना है कि यह अधिनियम न केवल धार्मिक स्वतंत्रता (अनुच्छेद 25) का उल्लंघन करता है, बल्कि समानता के अधिकार (अनुच्छेद 14 और 15) को भी ठेस पहुंचाता है।
याचिकाओं में खासतौर पर इन बिंदुओं को चुनौती दी गई है
वक्फ बोर्ड में गैर-मुस्लिम सदस्यों की संभावित नियुक्ति
धार्मिक स्थलों और संपत्तियों पर बाहरी नियंत्रण
मुस्लिम समुदाय की धार्मिक स्वायत्तता में हस्तक्षेप
जमीयत का कहना है, “यह कानून मुसलमानों की धार्मिक आज़ादी छीनने की एक खतरनाक साजिश है।”
सरकार का पक्ष: पारदर्शिता और सुधार सरकार की ओर से यह तर्क दिया गया है कि वक्फ संपत्तियों के प्रबंधन में लंबे समय से अनियमितताएं रही हैं, जिन्हें दूर करने के लिए यह संशोधन आवश्यक था। सरकार का कहना है कि इस कानून के ज़रिए वक्फ बोर्ड की जवाबदेही, पारदर्शिता और कानूनी निगरानी को मजबूत किया जाएगा।
इसके अतिरिक्त सरकार यह भी कह रही है कि
कानून मुस्लिम महिलाओं के अधिकारों की रक्षा करता है
अनुच्छेद 15 के तहत महिलाओं के लिए विशेष प्रावधानों का अधिकार सरकार को है
यह कानून धार्मिक आज़ादी पर हमला नहीं, बल्कि प्रशासनिक सुधार है
देशभर में विरोध की तैयारी ऑल इंडिया मुस्लिम पर्सनल लॉ बोर्ड समेत कई मुस्लिम संगठनों ने इस कानून के खिलाफ देशभर में विरोध-प्रदर्शन की योजना बनाई है। साथ ही जमीयत की राज्य इकाइयां अपने-अपने उच्च न्यायालयों में भी इस कानून की वैधता को चुनौती देने की तैयारी कर रही हैं।
क्या होगा सुप्रीम कोर्ट का रुख? अब सबकी निगाहें सुप्रीम कोर्ट पर टिकी हैं। चूंकि याचिकाओं का मुख्य आधार धार्मिक स्वतंत्रता और समानता जैसे मूलभूत अधिकार हैं, इसलिए माना जा रहा है कि इस पर विस्तृत संवैधानिक बहस होगी। सुप्रीम कोर्ट का निर्णय न केवल इस कानून की वैधता तय करेगा, बल्कि यह देश में धर्मनिरपेक्षता और अल्पसंख्यक अधिकारों की परिभाषा को भी नए सिरे से गढ़ सकता है।
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