अहमदाबाद। सुप्रीम कोर्ट ने सोमवार को एक दुष्कर्म पीड़िता को गर्भपात कराने की अनुमति दे दी है। उसका कहना है कि शादी से पहले गर्भवती होना शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करता है। इससे पहले सुप्रीम कोर्ट इस पूरे मामले में गुजरात हाई कोर्ट के रवैए पर टिप्पणी की और कहा पूछा कि गुजरात हाई कोर्ट में क्या हो रहा है? सुप्रीम कोर्ट ने सुनवाई के दौरान के कहा था कि बहुत कीमती वक्त बर्बाद हो गया है। ऐसे मामलों में फौरन फैसला होना चाहिए।
गुजरात की 25 साल साल की रेप पीड़िता गर्भवती ने अबॉर्शन के लिए गुजरात हाई कोर्ट से अनुमति मांगी थी। गुजरात हाई कोर्ट ने पीड़िता की अर्जी को 17 अगस्त को खारिज कर दिया था। इसके बाद पीड़िता ने सुप्रीम कोर्ट में अर्जी लगाई थी। 19 अगस्त को छुट्टी होने बाद भी जस्टिस बी वी नागरत्ना ने सुनवाई करते हुए कहा था कि ऐसे मामलों में जब एक एक दिन अहम होता है तो फिर सुनवाई की तारीख क्यों टाली गई? गुजरात हाई कोर्ट ने 11 अगस्त को इस का तत्काल सुनवाई नहीं करते हुए अगली तारीख 12 दिन बाद की दी थी।
सुप्रीम कोर्ट में पीड़िता के वकील ने कहा था हमने 7 अगस्त को हाई कोर्ट को एप्रोच किया था। इसके बाद जस्टिस बी वी नागरत्ना ने इस मामले की सुनवाई 21 को करने का फैसला किया था।
गुजरात हाईकोर्ट में आखिर क्या हो रहा है? भारत में कोई भी अदालत सुप्रीम कोर्ट के आदेश के खिलाफ कोई भी फैसला नहीं सुना सकती है। ये संवैधानिक सिद्धांत के खिलाफ है।
हाई कोर्ट ने नहीं दी थी अनुमति
सुप्रीम कोर्ट ने अपने आदेश में कहा कि अजीब बात है कि हाई कोर्ट ने मामले को 12 दिन बाद (मेडिकल रिपोर्ट प्राप्त होने के बाद) 23 अगस्त को सूचीबद्ध किया, इस तथ्य को नजरअंदाज करते हुए कि देरी का हर दिन महत्वपूर्ण था और बहुत महत्व रखता था।” 17 अगस्त को गुजरात हाई कोर्ट द्वारा लिए गए फैसले को चुनौती देते हुए एक विशेष अनुमति याचिका दायर किए जाने के बाद सुप्रीम कोर्ट का ध्यान इस मामले पर आकर्षित हुआ। अपने विवादित आदेश में हाई कोर्ट ने याचिकाकर्ता की 26 सप्ताह की गर्भावस्था को समाप्त करने की अनुमति देने से इनकार कर दिया था। रेप पीड़िता आदिवासी युवती ने गर्भ खत्म करने के लिए हाई कोर्ट में गुहार लगाई थी। इसी मामले की सुनवाई करते हुए जस्टिस समीर दवे ने मनुस्मृति पढ़ने की सलाह दी थी और कहा था कि हमारे समाज में महिलाएं 17 साल की उम्र में मां बन जाती थीं।
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