अमेरिका में फलस्तीन समर्थक गतिविधियों में भाग लेने वाले एक्टिविस्ट और कोलंबिया यूनिवर्सिटी के छात्र महमूद खलील को लेकर अब अमेरिकी इमिग्रेशन कोर्ट ने बड़ा फैसला सुनाया है। लुइसियाना के लासेल इमिग्रेशन कोर्ट में जज जेमी कॉमन्स ने शुक्रवार को दिए अपने फैसले में खलील को अमेरिका से डिपोर्ट करने की बात कही है। इस फैसले के बाद अमेरिका में छात्र समुदाय, मानवाधिकार कार्यकर्ताओं और राजनीतिक हलकों में बहस तेज हो गई है।
कौन है महमूद खलील?
महमूद खलील एक फलस्तीनी मूल का छात्र है जो सीरिया के एक शरणार्थी शिविर में पैदा हुआ था। उसके पास अल्जीरिया की नागरिकता है और हाल ही में वह अमेरिका का वैध स्थायी निवासी बना था। कोलंबिया यूनिवर्सिटी में पढ़ाई कर रहा खलील फलस्तीन के समर्थन में चल रहे छात्र विरोध आंदोलनों का प्रमुख चेहरा बन गया था। उसकी पत्नी एक अमेरिकी नागरिक है, जिससे उसकी अमेरिका में गहरी सामाजिक जड़ें हैं।
गिरफ्तारी और विरोध
करीब एक महीने पहले न्यूयॉर्क शहर में महमूद खलील को उस समय गिरफ्तार किया गया जब वह फलस्तीन समर्थक प्रदर्शनों में सक्रिय भूमिका निभा रहा था। गिरफ्तारी के बाद न्यूयॉर्क की सड़कों पर सैकड़ों लोगों ने उसकी रिहाई की मांग करते हुए प्रदर्शन किया। इन प्रदर्शनों में खलील को अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता का प्रतीक माना गया।
कोर्ट का फैसला और ट्रंप समर्थकों की प्रतिक्रिया
जज जेमी कॉमन्स ने खलील की डिपोर्टेशन को जायज ठहराया है, हालांकि इस फैसले से खलील को तुरंत डिपोर्ट नहीं किया जा सकता। फिर भी इसे ट्रंप समर्थकों द्वारा एक “राजनीतिक जीत” के रूप में देखा जा रहा है। यह फैसला उस समय आया है जब अमेरिका में आगामी चुनावों से पहले अप्रवासियों और राष्ट्रनीति के मुद्दे फिर से गरमा गए हैं।
अमेरिकी विदेश मंत्री का रुख
अमेरिकी विदेश मंत्री मार्को रुबियो ने पिछले महीने 1952 के इमिग्रेशन और नेशनलिटी एक्ट का हवाला देते हुए कहा था कि महमूद खलील की गतिविधियां अमेरिकी विदेश नीति के खिलाफ हैं और इससे यहूदी छात्रों के लिए अमेरिका में शत्रुतापूर्ण माहौल पैदा हो रहा है। हालांकि रुबियो ने यह भी स्वीकार किया कि खलील ने कोई कानून नहीं तोड़ा है, लेकिन “अमेरिकी हितों को नुकसान पहुंचाने” के आधार पर उनकी कानूनी स्थिति को खत्म किया जा सकता है।
खलील की प्रतिक्रिया
अदालत में बयान देते हुए खलील ने कहा, “कोर्ट के लिए उचित प्रक्रिया और मौलिक निष्पक्षता से अधिक जरूरी कुछ भी नहीं है, लेकिन आज हमने देखा कि ये दोनों सिद्धांत कहीं नजर नहीं आए। मुझे मेरे परिवार से एक हजार मील दूर लाकर पेश किया गया, यह केवल मेरी आवाज को दबाने की कोशिश है।”
यह सिर्फ एक छात्र की कहानी नहीं
महमूद खलील का मामला अमेरिका में अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता, छात्र आंदोलन और अप्रवासी अधिकारों को लेकर एक महत्वपूर्ण बहस बन चुका है। कोर्ट के इस फैसले का असर केवल खलील तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि यह आने वाले समय में उन सभी छात्रों और कार्यकर्ताओं पर प्रभाव डालेगा जो सामाजिक-राजनीतिक मुद्दों पर अपनी आवाज बुलंद करते हैं।
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