अमेरिका और चीन के बीच चल रही टैरिफ वॉर एक बार फिर वैश्विक सुर्खियों में है। अमेरिका ने चीन पर 145 प्रतिशत का टैरिफ थोप दिया है, और चीन भी पीछे हटने को तैयार नहीं है। ये टैरिफ युद्ध अब केवल व्यापार तक सीमित नहीं रह गया है, इसका सीधा असर दुनिया की अर्थव्यवस्था पर भी पड़ रहा है। लेकिन इस बार बात सिर्फ आर्थिक मोर्चे की नहीं है—अमेरिका और चीन पर्यावरणीय संकट के भी बड़े जिम्मेदार बनकर उभरे हैं।
268 मिलियन टन प्लास्टिक कचरे में सबसे बड़ा योगदान 2022 में दुनिया भर में 268 मिलियन टन प्लास्टिक कचरा उत्पन्न हुआ। यह आंकड़ा अपने आप में भयावह है, लेकिन हैरानी की बात ये है कि इसमें अकेले चीन और अमेरिका का हिस्सा लगभग 121.6 मिलियन टन था—यानी कुल कचरे का लगभग 45 प्रतिशत।
चीन: 81.5 मिलियन टन
अमेरिका: 40.1 मिलियन टन
भारत: 9.5 मिलियन टन
यूरोपीय संघ: 30 मिलियन टन
उत्पादन में भी आगे, रिसाइकलिंग में पीछे नेचर जर्नल में प्रकाशित एक रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में लगभग 400 मिलियन टन प्लास्टिक का उत्पादन हुआ, जिसमें:
अमेरिका: 42% हिस्सा
चीन: 32% हिस्सा
भारत: 5% हिस्सा
लेकिन रिसाइकलिंग के मोर्चे पर अमेरिका सबसे पीछे रहा।
यूरोपीय संघ: 20% प्लास्टिक रिसाइकल
अमेरिका: सिर्फ 5%
भारत: तुलनात्मक रूप से बेहतर, लेकिन सटीक आँकड़ा नहीं
प्रति व्यक्ति खपत में अमेरिका अव्वल यदि प्रति व्यक्ति प्लास्टिक खपत की बात करें, तो अमेरिका सबसे ऊपर है।
अमेरिका: 216 किलोग्राम प्रति व्यक्ति
जापान: 129 किलोग्राम
यूरोपीय संघ: 87 किलोग्राम
भारत: बहुत कम, सिर्फ 6% वैश्विक उपयोग, जबकि जनसंख्या 17% से अधिक
कचरे का क्या होता है? रिपोर्ट के अनुसार, 2022 में पैदा हुए प्लास्टिक कचरे में से:
40% लैंडफिल में
34% जला दिया गया
सिर्फ 9% को रिसाइकल किया गया
1950 से 2015 के बीच ये लैंडफिल की दर 79% तक थी, जो अब थोड़ी घटी है, लेकिन खतरा बना हुआ है।
भारत की स्थिति: कम योगदान, बड़ा बोझ भारत ने 2022 में वैश्विक प्लास्टिक उत्पादन में सिर्फ 5% योगदान दिया और 6% उपभोग किया, जबकि उसकी आबादी 17% से अधिक है। भारत ने 1.6 मिलियन टन मध्यवर्ती प्लास्टिक और 1.2 मिलियन टन प्लास्टिक निर्यात भी किया।
बदलाव की जरूरत अमेरिका और चीन जैसे बड़े देश सिर्फ वैश्विक व्यापार नहीं, बल्कि पर्यावरणीय संतुलन को भी प्रभावित कर रहे हैं। भारत जैसे विकासशील देशों पर इसका असर दोहरी मार की तरह है—ना केवल टैरिफ युद्ध का आर्थिक झटका, बल्कि पर्यावरणीय बोझ का भी सामना।
अगर वाकई दुनिया को बेहतर बनाना है, तो इन महाशक्तियों को न केवल अपने आर्थिक एजेंडे पर लगाम लगानी होगी, बल्कि पर्यावरण संरक्षण को भी प्राथमिकता देनी होगी।
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