रूस-यूक्रेन युद्ध को तीन साल से अधिक समय हो गया है, और अब यह युद्ध न सिर्फ दो देशों के बीच की जंग रह गई है, बल्कि एक वैश्विक संघर्ष की तस्वीर ले चुका है। इस युद्ध में अब कई देशों के नागरिक रूस की ओर से लड़ते हुए देखे जा रहे हैं, जिससे सवाल उठ रहा है कि क्या रूस अब अपनी ही सेना पर भरोसा नहीं कर पा रहा?
ज़ेलेंस्की का बड़ा खुलासा: चीनी नागरिक रूसी सेना में शामिल यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोडिमिर ज़ेलेंस्की ने 9 अप्रैल को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस में दावा किया कि यूक्रेनी सेना ने दो चीनी नागरिकों को हिरासत में लिया है, जो रूस की ओर से युद्ध में भाग ले रहे थे। यही नहीं, उन्होंने कहा कि कुल 155 चीनी नागरिक यूक्रेनी धरती पर लड़ाई में शामिल हैं। कीव इंडिपेंडेंट के मुताबिक, खुफिया दस्तावेज़ों से पता चला है कि अप्रैल की शुरुआत तक कम से कम 163 चीनी नागरिक रूस की सेना में शामिल हो चुके थे।
हालांकि चीन ने इस दावे को तुरंत खारिज कर दिया और इसे निराधार बताया, लेकिन यह पहली बार नहीं है जब विदेशी नागरिक रूस की ओर से युद्ध लड़ते हुए पाए गए हैं। इससे पहले भारत, नेपाल, श्रीलंका और कई अफ्रीकी देशों के लोगों को जबरन या धोखे से रूस की सेना में शामिल करने की खबरें सामने आ चुकी हैं।
रूस की सेना: ताकतवर लेकिन थकी हुई? रूस की सेना को दुनिया की दूसरी सबसे बड़ी सेना माना जाता है, जिसमें लगभग 1.5 मिलियन सक्रिय सैनिक और 2 मिलियन रिजर्व हैं। इसके बावजूद रूस अगर भाड़े के सैनिकों और विदेशी नागरिकों की मदद ले रहा है, तो यह उसके सैन्य ढांचे की कमजोरी और मनोबल में गिरावट को दर्शाता है।
युद्ध के शुरुआती दिनों में ऐसा लग रहा था कि रूस यूक्रेन को कुछ ही हफ्तों में हरा देगा, लेकिन यूक्रेन ने न सिर्फ डटकर मुकाबला किया, बल्कि रूस को कई मोर्चों पर पीछे भी हटना पड़ा। अब रिपोर्ट्स आ रही हैं कि कई रूसी सैनिक बीमारी, थकान या डिप्रेशन का बहाना बनाकर युद्ध क्षेत्र से भाग रहे हैं।
उत्तर कोरिया से भी मिली मदद रूस ने हाल ही में उत्तर कोरिया के साथ रक्षा डील की है, और रिपोर्ट्स के अनुसार उत्तर कोरिया ने अपने सैनिकों को रूस भेजा है जो यूक्रेनी सेना के खिलाफ मोर्चा संभाल रहे हैं। यह कदम बताता है कि रूस अब पारंपरिक सेना से आगे बढ़कर भाड़े के सैनिकों और विदेशी समर्थन पर निर्भर होता जा रहा है।
रूस के लिए शर्मनाक स्थिति? एक ओर रूस खुद को अमेरिका जैसी सैन्य महाशक्ति मानता है, वहीं दूसरी ओर उसे यूक्रेन जैसे अपेक्षाकृत छोटे देश के खिलाफ लड़ाई में दुनिया भर से किराए के सैनिक बुलाने पड़ रहे हैं। यह स्थिति रूस की साख पर सवाल खड़ा करती है और यह दर्शाती है कि चाहे ताकत जितनी भी हो, अगर मनोबल और समर्थन न हो, तो युद्ध जीतना आसान नहीं होता।
युद्ध अब केवल गोला-बारूद की लड़ाई नहीं रहा यूक्रेन-रूस युद्ध अब साफ दिखा रहा है कि 21वीं सदी में युद्ध केवल हथियारों से नहीं, बल्कि राजनीतिक इच्छाशक्ति, मनोबल और वैश्विक समर्थन से लड़े जाते हैं। रूस की सेना की वर्तमान स्थिति और विदेशी सैनिकों की भूमिका इस बात की पुष्टि करती है कि हर बड़ी ताकत को भी कमजोर किया जा सकता है—अगर जज्बा और रणनीति मजबूत हो।
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