दिल्ली सरकार की सीसीटीवी परियोजना में भ्रष्टाचार: सत्येंद्र जैन के खिलाफ एसीबी ने दर्ज की एफआईआर

दिल्ली सरकार की भ्रष्टाचार निरोधक शाखा (एसीबी) ने आम आदमी पार्टी (आप) के वरिष्ठ नेता और पूर्व मंत्री सत्येंद्र जैन के खिलाफ एक बड़ा मामला दर्ज किया है। यह मामला दिल्ली में 571 करोड़ रुपए की सीसीटीवी परियोजना में भ्रष्टाचार और रिश्वतखोरी से जुड़ा है। एसीबी ने भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम, 1988 की धारा 17 ए के तहत सत्येंद्र जैन के खिलाफ एफआईआर दर्ज की है।
क्या है पूरा मामला?
दिल्ली में सुरक्षा व्यवस्था मजबूत करने के लिए सरकार ने 571 करोड़ रुपये की लागत से सीसीटीवी कैमरे लगाने की परियोजना शुरू की थी। इस परियोजना के तहत भारत इलेक्ट्रॉनिक्स लिमिटेड (बीईएल) को ठेका दिया गया था। हालांकि, इस परियोजना में कई अनियमितताएं पाई गईं।
एसीबी प्रमुख मधुर वर्मा के अनुसार, सत्येंद्र जैन पर आरोप है कि उन्होंने 7 करोड़ रुपए की रिश्वत लेकर 16 करोड़ रुपए के जुर्माने को माफ कर दिया। यह जुर्माना सीसीटीवी लगाने में देरी के कारण लगाया गया था, लेकिन जैन ने बिना सक्षम प्राधिकारी से अनुमोदन लिए इसे माफ कर दिया।
रिश्वतखोरी और भ्रष्टाचार के आरोप
जांच में पता चला कि बीईएल को पहले से खराब सीसीटीवी कैमरों के बावजूद 1.4 लाख नए कैमरों का अतिरिक्त ऑर्डर दिया गया। आरोप है कि ठेकेदारों ने अधिक लाभ कमाने के लिए रिश्वत का भुगतान किया और इस घोटाले को छिपाने के लिए परियोजना की लागत को बढ़ाया गया।
एसीबी ने बीईएल के एक अधिकारी से पूछताछ की, जिसने इन आरोपों की पुष्टि की और शिकायत दर्ज करवाई। अब इस घोटाले से जुड़े पीडब्ल्यूडी और बीईएल के दस्तावेजों की जांच की जा रही है।
केंद्रीय गृह मंत्रालय की कार्रवाई
इस मामले को लेकर केंद्रीय गृह मंत्रालय ने राष्ट्रपति से सत्येंद्र जैन पर मुकदमा चलाने की अनुमति मांगी है। यह कार्रवाई प्रवर्तन निदेशालय (ईडी) द्वारा एकत्र किए गए साक्ष्यों के आधार पर की जा रही है। जैन के खिलाफ एफआईआर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम की धारा 7/13 (1) (ए) और भारतीय दंड संहिता (आईपीसी) की धारा 120 बी (आपराधिक साजिश) के तहत दर्ज की गई है।
क्या होगा आगे?
इस मामले में एसीबी की जांच जारी है और बीईएल व अन्य संबंधित विभागों से दस्तावेज जुटाए जा रहे हैं। यदि आरोप साबित होते हैं, तो सत्येंद्र जैन को कड़ी कानूनी कार्रवाई का सामना करना पड़ सकता है।
यह मामला दिल्ली सरकार की पारदर्शिता और ईमानदारी पर गंभीर सवाल खड़े करता है। दिल्ली के नागरिकों को सरकार से जवाबदेही और निष्पक्ष जांच की उम्मीद है। देखना यह होगा कि क्या यह मामला न्याय की दिशा में आगे बढ़ता है या फिर राजनीतिक गलियारों में उलझकर रह जाता है।
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