दोषी राजनेताओं के चुनाव लड़ने पर आजीवन प्रतिबंध: केंद्र सरकार का जवाब

हाल ही में सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र सरकार से यह स्पष्ट करने को कहा था कि क्या आपराधिक मामलों में दोषी सांसदों और विधायकों को आजीवन चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए। इस पर केंद्र सरकार ने हलफनामा दाखिल कर अपनी स्थिति स्पष्ट की है।
केंद्र सरकार का पक्ष
केंद्र सरकार ने अपने जवाब में कहा कि अपराध में दोषी ठहराए गए राजनेताओं को सजा पूरी करने के बाद आजीवन चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता। सरकार का तर्क है कि संसद ने इस विषय पर स्पष्ट नियम बनाए हैं और दोषी जनप्रतिनिधियों को चुनाव लड़ने से रोकने के लिए पहले से ही प्रावधान मौजूद हैं।
सरकार के अनुसार, मौजूदा कानूनों के तहत अगर किसी व्यक्ति को किसी आपराधिक मामले में दो या अधिक वर्षों की सजा होती है, तो वह सजा पूरी होने के बाद छह साल तक चुनाव नहीं लड़ सकता। याचिकाकर्ता द्वारा प्रस्तुत याचिका में कई पहलू अस्पष्ट रूप से रखे गए हैं और इसे खारिज किया जाना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट की चिंताएं
सुप्रीम कोर्ट ने इस मुद्दे पर केंद्र सरकार और चुनाव आयोग से जवाब मांगते हुए महत्वपूर्ण सवाल उठाए थे। अदालत ने पूछा था कि जब किसी सरकारी कर्मचारी को दोषी ठहराए जाने के बाद जीवन भर के लिए सेवा से बाहर कर दिया जाता है, तो फिर एक दोषी व्यक्ति संसद या विधानसभा में कैसे लौट सकता है? साथ ही, यह भी सवाल उठाया गया कि जो लोग कानून तोड़ते हैं, वे कानून बनाने का काम कैसे कर सकते हैं?
याचिकाकर्ता की दलीलें
2016 में वरिष्ठ वकील अश्विनी उपाध्याय द्वारा सुप्रीम कोर्ट में एक जनहित याचिका दाखिल की गई थी। इसमें जनप्रतिनिधित्व अधिनियम 1951 की धारा 8 और 9 की संवैधानिक वैधता को चुनौती दी गई थी। याचिकाकर्ता ने कहा कि राजनीतिक दलों को यह स्पष्ट करना चाहिए कि वे स्वच्छ छवि वाले उम्मीदवार क्यों नहीं चुन पा रहे हैं। उन्होंने यह भी मांग की कि दोषी राजनेताओं पर आजीवन प्रतिबंध लगाया जाए और विभिन्न अदालतों में उनके खिलाफ लंबित मामलों का शीघ्र निपटारा किया जाए।
मुद्दे का प्रभाव और भविष्य की राह
यह मुद्दा देश की राजनीति में गंभीर बहस का विषय बन चुका है। एक ओर जहां कुछ लोग यह मानते हैं कि दोषी राजनेताओं को आजीवन चुनाव लड़ने से प्रतिबंधित किया जाना चाहिए, वहीं दूसरी ओर कुछ का मानना है कि एक व्यक्ति जिसने अपनी सजा पूरी कर ली है, उसे दूसरा मौका मिलना चाहिए।
सुप्रीम कोर्ट इस महत्वपूर्ण मुद्दे पर क्या निर्णय लेता है, यह देखना दिलचस्प होगा। यदि अदालत कोई कड़ा फैसला सुनाती है, तो यह भारतीय राजनीति में स्वच्छता लाने की दिशा में एक बड़ा कदम साबित हो सकता है। वहीं, अगर मौजूदा व्यवस्था बनी रहती है, तो राजनीति में आपराधिक पृष्ठभूमि वाले व्यक्तियों की भागीदारी पर सवाल उठते रहेंगे।
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